44 सालों में पशु-पक्षियों, मछलियों की 60 फीसद आबादी खत्म, संकट की घड़ी
नेचर नामक रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से 2014 के बीच कशेरुकी प्राणियों की 60 फीसद आबादी खत्म हो चुकी है। 2010 तक ये आबादी 48 फीसद बाकी थी।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। मछली, सरीसृप, पक्षियों और स्तनधारी जीवों (कशेरुकी प्राणी) के लिए इंसान अब खतरा साबित हो रहा है। वर्ल्ड वाइल्ड फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की लिविंग प्लानेट रिपोर्ट ऑफ द ग्लोबल फंड फॉर नेचर नामक रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से 2014 के बीच कशेरुकी प्राणियों की 60 फीसद आबादी खत्म हो चुकी है। 2010 तक ये आबादी 48 फीसद बाकी थी।
विशेषज्ञों ने 1970 के 2014 बीच 4005 कशेरुकी प्राणियों की 16704 प्रजातियों की आबादी के विश्लेषण के आधार पर चेतावनी दी है कि अगर इन्हें संरक्षित करने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए तो जल्द ही ये विलुप्त होने के कगार पर होंगी, जो मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए भी खतरा होगा।
इंसानों से खतरा
दुनियाभर से शामिल 59 वैज्ञानिकों के पैनल ने 20 सालों के अध्ययन पर इस रिपोर्ट को तैयार किया है। इसके मुताबिक घटते जंगल, बढ़ता प्रदूषण, इंसानी आबादी का घनत्व, पर्यावरण असंतुलन और प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित मानव उपभोग मुख्य वजह है। पृथ्वी के तकरीबन एक चौथाई हिस्से पर इंसानी गतिविधियां की वजह से कशेरुकी प्राणियों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। इसके अलावा विलुप्त जीवों का शिकार भी अहम कारण है।
संकट की घड़ी
2010 तक कशेरुकी प्राणियों की आबादी 48 फीसद थी जो 2014 में घटकर 40 फीसद रह गई है। सबसे अधिक खतरा ताजे पानी में रहने वाले जीवों के लिए बढ़ रहा है। नदियों और झीलों के प्रदूषण की वजह से 83 फीसद जलीय जीव आबादी खत्म हो चुकी है।
प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग
वैश्विक स्तर पर प्रकृति सालाना तकरीबन ताजा हवा, स्वच्छ पानी, खाद्य सामग्री और ऊर्जा के रूप में 125 लाख करोड़ डॉलर की सेवाएं प्रदान करती है। लेकिन पिछले 50 सालों में प्राकृतिक संसाधनों की खपत तकरीबन 190 फीसद तक बढ़ी है और इंसानों द्वारा बढ़ता दळ्रुपयोग खतरा बन रहा है।
घटते जंगल व वनस्पति
पिछले 50 सालों में 20 फीसद अमेजन के जंगल और 30 से 50 फीसद मैंग्रोव (कच्छ वनस्पति) नष्ट हो चुकी हैं। वहीं 30 सालों में 50 फीसद उथले पानी में समुद्री शैवाल खत्म हुए हैं।
तो लगेंगे लाखों साल
मानव सभ्यता की शुरुआत से अभी तक 83 फीसद स्तनधारी जीव और 50 फीसद पेड़-पौधे खत्म हो चुके हैं। पृथ्वी को दोबारा पहले जैसा बनाने में 50 से 70 लाख साल लगेंगे।