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थाइलैंड की गुफा में फंसे बच्‍चों को बचाने उतरे गोताखोर, लंबा चल सकता है अभियान

थाईलैंड की गुफा में फंसे सभी बच्‍चों का सपना देश की राष्ट्रीय फुटबाल टीम में जगह बनाने का है। उनके फौलादी इरादों ने उन्हें पूरी दुनिया के दिलों में जगह दे दी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 08 Jul 2018 05:17 PM (IST)Updated: Sun, 08 Jul 2018 05:18 PM (IST)
थाइलैंड की गुफा में फंसे बच्‍चों को बचाने उतरे गोताखोर, लंबा चल सकता है अभियान
थाइलैंड की गुफा में फंसे बच्‍चों को बचाने उतरे गोताखोर, लंबा चल सकता है अभियान

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। चिंता न करो मां, हम वापस आएंगे बहादुर बच्चे 11 से 16 साल की आयु वाले ये 12 किशोर जिस स्पोट्र्समैनशिप को फुटबाल के मैदान में दिखाते थे, इतने खराब हालात में फंसने के बावजूद उनके इस जज्बे में रत्ती भर कमी नहीं आई है। इन सभी का सपना देश की राष्ट्रीय फुटबाल टीम में जगह बनाने का है। हो सकता है कि उनका यह सपना देर से पूरा हो, लेकिन उनके फौलादी इरादों ने उन्हें पूरी दुनिया के दिलों में जगह दे दी है। उनके इस हौसले का खुलासा उस खत से भी होता है जिसे एक खिलाड़ी ने अपने परिजनों को लिखा है। थाईलैंड की गुफा में फंसे एक बच्चे ने लिखा है कि गुफा में हवा थोड़ी ठंडी है, लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। मेरे जन्मदिन की पार्टी देना मत भूलना। हम सब ठीक हैं। बता दें कि जिस दिन ये बच्चे गुफा में लापता हुए थे, उसी दिन उनमें से एक बच्चे का जन्मदिन था। वे उसका जन्मदिन मनाने के लिए गुफा में गए थे लेकिन अचानक भारी बारिश होने से वे गुफा में फंस गए।

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गोताखोरों ने शुरू किया गुफा में जाना 
आपको यहां पर ये भी बता दें कि इन बच्‍चों को बचाने में जुटे एक बचावकर्मी की मौत हो चुकी है। इस बीच चियांग राय की इस गुफा में बच्‍चों को सकुशल बाहर निकालने के लिए गोताखोरों का अंदर जाना शुरू हो कर दिया है। वहीं चियांग के गवर्नर का कहना है कि यह कहपाना फिलहाल मुश्किल है कि बच्‍चों का  निकलना कितनी देर बात शुरू होगा। उन्होंने एक बयान जारी कर कहा है कि गुफा के मुश्किल हालातों को देखते हुए अभी यह कहपाना काफी मुश्किल है कि बच्चों का पहला ग्रुप कब तक बाहर आएगा। उनके मुताबिक फिलहाल गोताखोर बच्चों तक दवा समेत दूसरी चीज पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।   

गुफा में फंसे हैं ये बच्‍चे 

अदुल सैम आन (14)
म्यांमार में जन्म हुआ। अच्छी शिक्षा के लिए थाईलैंड में एक ईसाई अध्यापक के पास पहुंचे। विनीत स्वभाव और बेधड़क अंग्रेजी बोलने के चलते सबको चमत्कृत करते हैं। अंग्रेजी के अलावा थाई, बर्मीज और चीनी भाषा पर भी अच्छी पकड़ है। ये टीम में अकेले हैं जो ब्रिटिश गोताखोरों की बातचीत समझते हैं। खोजे जाने पर इन्होंने ही सबसे पहले गोताखोरों से कहा कि उन्हें भोजन की जरूरत है। फुटबाल जुनून है। पियानो और गिटार भी बजाते हैं।

सोमपोंग जाइवोंग (13)
इस मिडफील्डर को पोंग नाम से जाना जाता है। इनकी इच्छा है कि फीफा विश्वकप इंग्लैंड टीम जीते। सभी खेल पसंद हैं। लीवरपूल को सपोर्ट करते हैं। थ्री लायंस के कप्तान हैरी केन इनके पसंदीदा हैं।

दुआंगपेच प्रामथेप (13)
टीम के कप्तान हैं। पूरे समूह के प्रेरक हैं। टीम उनके नेतृत्व और विनोदी स्वभाव की कायल है।

मोंगकोल बूनपियाम (14)
फुटबाल के साथ-साथ पढ़ाई में भी अव्वल है। पिछले साल टीम में शामिल हुए।

इक्कारत वांगसूकचैन (14)
टीम के दो गोलकीपरों में से एक हैं। टीम इन्हें ब्यू के नाम से पुकारती है।

नाट्टावुट ताकमसई (14)
इस खिलाड़ी को टीम के सदस्य टली उपनाम से बुलाते हैं।

पीपत बोधी (15)
ये टीम के सदस्य नहीं हैं। गोलकीपर इक्कारत इनके अच्छे मित्र हैं। दोस्त के साथ कुछ समय बिता सकें, इसलिए टीम में आने के लिए प्रैक्टिस सत्र में शामिल हुए हैं।

प्राजक सुथम (14)
ये भी टीम के गोलकीपर हैं। दोस्त और परिवार वाले इन्हे नोट उपनाम से बुलाते हैं। शांत स्वभाव के हैं। फुटबाल को जीने वाले इस खिलाड़ी के घर में इनके पदकों को बहुत संभालकर रखा गया है।

चनीन विबूनरुंगरुयंग (11)
टीम में टाइटन नाम से लोकप्रिय हैं। टीम के सबसे कम उम्र खिलाड़ी हैं। पिछले चार साल से यह फुटबाल खेल रहे हैं।

पीरापट सोमपियांगजय (16)
इस राइट विंग मिड फील्डर को टीम के लोग नाइट कहकर बुलाते हैं।

पॉर्नचाई कामलुआंग (16)
इनकी मां को विश्वास है कि उनका बेटा जरूर वापस आएगा। यह उसका पुनर्जन्म सरीखा होगा। वह कहती हैं, इस बार वह वापस आया तो फिर कभी किसी गुफा या पानी के करीब भी उसे फटकने नहीं दूंगी।

पानुमास साएंगडी (13)
टीम के डिफेंडर हैं। मिक नाम से चर्चित हैं। इनको इनकी मां और बाबा ने पाल-पोसकर बढ़ा किया है। जब से ये फंसे हैं तब से इन लोगों ने खाना-पीना छोड़ दिया है। इनकी फिटनेस और मूवमेंट गजब की है।

इक्कापोल चांटावांग- कोच (25)
महज 12 साल के थे, तभी एक महामारी की चपेट में इनके सात साल के भाई, मां और पिता चल बसे। दुख और अकेलेपन को दूर करने के लिए बौद्ध मठ की शरण में गए। यहां इन्हें मानसिक ताकत मिली।

विषम हालात
ब्रिटिश गोताखोरों ने बच्चों के गायब होने के दस दिन बाद पिछले सोमवार को उनका पता लगाया। गुफा के मुहाने से वे चार किमी अंदर फंसे हैं। थाई और अंतरराष्ट्रीय गोताखोरों की टीम तब से उन्हें भोजन, ऑक्सीजन और मेडिकल सुविधाएं पहुंचा रही हैं। गुफा का ऑक्सीजन स्तर तेजी से घटना चिंता की बात है। हालांकि हवा आने-जाने के लिए नई लाइन बना दी गई है।


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