श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता का दौर बरकरार, स्पीकर ने कहा लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हूं
जयसूर्या ने सोशल मीडिया पर वायरल एक पत्र की जांच के लिए सीआइडी में शिकायत भी दर्ज कराई है।
कोलंबो, प्रेट्र। पड़ोसी देश श्रीलंका में राजनीतिक संकट बना हुआ है। सियासी अस्थिरता के लिए राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। सिरिसेन और प्रधानमंत्री म¨हदा राजपक्षे की पार्टी के निशाने पर संसद के स्पीकर और अपदस्थ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे हैं। लेकिन स्पीकर ने स्पष्ट कर दिया है कि वह निजी हमलों के बावजूद लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।
स्पीकर कारू जयसूर्या ने बुधवार को कहा कि वह हर हाल में लोकतंत्र की रक्षा करेंगे। म¨हदा राजपक्षे सरकार की तरफ से उनके खिलाफ किए जा रहे निजी हमलों और गलत आरोपों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। स्पीकर ने कहा है कि जो पार्टी संसद में अपना बहुमत तक साबित नहीं कर पाई वह नियमित रूप से प्रेस कांफ्रेंस और विरोध प्रदर्शन कर उनके खिलाफ आधारहीन आरोप लगा रही है।
जयसूर्या ने सोशल मीडिया पर वायरल एक पत्र की जांच के लिए सीआइडी में शिकायत भी दर्ज कराई है। दावा किया जा रहा है कि इस पत्र को स्पीकर ने प्रधान न्यायाधीश को भेजा है जिसमें उन्होंने प्रधान न्यायाधीश से जानना चाहा है कि क्या राष्ट्रपति इस अवस्था में अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं। जयसूर्या के मुताबिक उन्होंने ऐसा कोई पत्र ही नहीं भेजा है और सीआइडी से उसकी जांच करने का अनुरोध किया है।
मंत्रालयों को फंड रोकने की मांग
अपदस्थ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) ने संसद में प्रस्ताव पेश कर सभी मंत्रालयों को जारी किए जाने वाले धन पर रोक लगाने की मांग है। यूएनपी का कहना है कि सरकार गैरकानूनी है। पार्टी ने अधिकारियों को भी अवैध सरकार के गैरकानूनी आदेशों का पालन करने पर चेताया है और कहा है कि ऐसा करने पर वह मुश्किल में फंस सकते हैं।
देश आर्थिक अराजकता की कगार पर
विक्रमसिंघे की सरकार में वित्त मंत्री रहे मंगला समरवीरा ने कहा है कि राष्ट्रपति के फैसले से देश आर्थिक अराजकता की कगार पर पहुंच गया है। उसके सामने अपने तात्कालिक कर्ज नहीं चुका पाने का खतरा पैदा हो गया है। गौरतलब है कि सिरिसेन ने 26 अक्टूबर को विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। लेकिन राजपक्षे दो-दो बार संसद में अपना बहुमत साबित करने में नाकाम रहे हैं।