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भारतवंशी रामकलावन सेशेल्स के राष्ट्रपति निर्वाचित, बिहार से जुड़ी हैं जड़ें, पीएम मोदी ने दी बधाई

रामकलावन के परदादा 130 साल पहले 1883 में बिहार के मोतीहारी जिले के परसौनी गांव से कलकत्ता (अब कोलकाता) होते हुए मारीशस पहुंचे थे। जहां वह गन्ने के खेत में काम करने लगे। कुछ समय बाद वह सेशेल्स चले गए थे।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 10:15 PM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 06:36 AM (IST)
भारतवंशी रामकलावन सेशेल्स के राष्ट्रपति निर्वाचित, बिहार से जुड़ी हैं जड़ें, पीएम मोदी ने दी बधाई
सेशेल्स के निर्वाचित राष्ट्रपति वैवेल रामकलावन। (एएफपी)

विक्टोरिया, एजेंसियां। भारतवंशी वैवेल रामकलावन हिंद महासागर के द्वीपीय देश सेशेल्स के राष्ट्रपति निर्वाचित घोषित किए गए हैं। 43 साल बाद विपक्ष का कोई नेता सेशेल्स का राष्ट्रपति चुना गया है। कोरोना महामारी से ध्वस्त हो चुकी पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था में जान डालने के लिए उन्होंने न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने का संकल्प दोहराया है। रामकलावन की जड़ें बिहार से जुड़ी हैं। वह पादरी भी रह चुके हैं। सेशेल्स चुनाव आयोग के प्रमुख डैनी लुकास ने रविवार को कहा कि रामकलावन को 54 फीसद मत मिले हैं। उन्होंने डैनी फॉरे को मात दी है। पीएम नरेंद्र मोदी ने वैवेल रामकलावन को सेशेल्स का राष्ट्रपति निर्वाचित किए जाने पर बधाई दी। 

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पूर्वी अफ्रीकी देश में 43 साल बाद विपक्ष का कोई नेता राष्ट्रपति चुना गया

निवर्तमान राष्ट्रपति फॉरे को सिर्फ 43 फीसद मत ही हासिल हुए। पूर्वी अफ्रीकी देश सेशेल्स की आबादी एक लाख से कम है। राष्ट्रपति चुनाव में गुरुवार से शनिवार तक हुए मतदान में 75 फीसद लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। सेशेल्स में 1977 के बाद पहली बार विपक्ष का कोई नेता राष्ट्रपति निर्वाचित हुआ है। फॉरे की यूनाइडेट सेशेल्स पार्टी पिछले 43 साल से सत्ता में थी। रामकलावन की पार्टी का नाम लिनयोन डेमोक्रेटिक सेसेलवा पार्टी है। 

बिहार से जुड़ी हैं रामकलावन की जड़ें

रामकलावन ने फॉरे के साथ मिलकर काम करने का वादा किया है। आमतौर पर अफ्रीकी देशों में सत्ता का हस्तांतरण सामान्य तरीके से नहीं होता। जीत के बाद रामकलावन ने कहा, 'फॉरे और मैं अच्छे दोस्त हैं। एक चुनाव का यह मतलब नहीं है कि अपनी मातृभूमि में किसी का योगदान खत्म हो जाता है।' उन्होंने कहा, 'इस चुनाव में न कोई पराजित हुआ है और न कोई विजयी। यह हमारे देश की जीत है।' रामकलावन जब विजयी भाषण दे रहे थे, तब फॉरे उनकी बगल में ही बैठे थे। 

बिहार के परसौनी गांव के रहने वाले थे रामकलावन के परदादा 

रामकलावन के परदादा 130 साल पहले 1883 में बिहार के मोतीहारी जिले के परसौनी गांव से कलकत्ता (अब कोलकाता) होते हुए मारीशस पहुंचे थे। जहां वह गन्ने के खेत में काम करने लगे। कुछ समय बाद वह सेशेल्स चले गए थे। सेशेल्स में ही 1961 में रामकलावन का जन्म हुआ था। वर्ष 2018 में रामकलावन भारतवंशी (पीआइओ) सांसदों के पहले सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली आए थे। तब वह अपने पूर्वजों के गांव परसौनी भी गए थे। उस समय वह सेशेल्स की संसद नेशनल असेंबली के सदस्य थे।


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