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बांग्लादेश आम चुनाव में कट्टरपंथी सियासत पर विकास और उदारवाद का पलड़ा भारी

भयंकर गरीबी और भूखमरी के दौर को पीछे छोड़ बांग्लादेश विकास की नई मंजिलों को हासिल कर रहा है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 09 Oct 2018 09:36 PM (IST)Updated: Tue, 09 Oct 2018 10:31 PM (IST)
बांग्लादेश आम चुनाव में कट्टरपंथी सियासत पर विकास और उदारवाद का पलड़ा भारी
बांग्लादेश आम चुनाव में कट्टरपंथी सियासत पर विकास और उदारवाद का पलड़ा भारी

संजय मिश्र, ढाका। बांग्लादेश में आम चुनाव की तेज होती सरगर्मी के बीच बीएनपी की कट्टरपंथी सियासत पर शेख हसीना के विकास और उदारवाद का पलड़ा भारी दिख रहा है। आर्थिक विकास की वजह से बांग्लादेश में बदल रही सामाजिक तस्वीर को आवामी लीग जहां अपनी ताकत मान रही है। वहीं मुख्य विरोधी पार्टी बीएनपी अंतरिम सरकार के अधीन चुनाव कराने की अपनी मांग से अभी पीछे नहीं हटी है। इसीलिए चुनाव में उसके भाग लेने की तस्वीर अभी साफ नहीं हुई है।

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बांग्लादेश में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत और स्थाई आधार देने के लिहाज से अहम माने जा रहे इस चुनाव में आवामी लीग भारत की तरह वर्तमान सरकार के अधीन ही चुनाव कराने की नई व्यवस्था बदलने के लिए तैयार नहीं है। वहीं बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी कार्यवाहक सरकार के नेतृत्व में चुनाव कराने की पुरानी व्यवस्था बहाल करने की जिद पर कायम है और ऐसा नहीं होने पर चुनाव का बहिष्कार करने की धमकी दे रही है।

खालिदा जिया की पार्टी ने इसी मुद्दे पर 2014 में हुए चुनाव का बहिष्कार किया था। हालांकि बीएनपी को अपनी सियासी प्रासंगिकता कायम रखने के लिए चुनाव में शामिल होने का अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं का दबाव भी है।

पीएम हसीना को चुनौती देने के लिए अभी हाल ही में बने सात पार्टियों के विपक्षी गठबंधन के सम्मेलन में बीएनपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी को इसी दबाव का नतीजा माना जा रहा है। बीएनपी इन दलों को साथ लेकर हसीना को शिकस्त देने की कसरत कर रही है तो चुनाव बहिष्कार की धमकी को आवामी लीग पर दबाव बनाने का हथियार बना रही है।

यहां की एक स्थानीय पार्टी गणो फोरम के अध्यक्ष डा कमाल हुसैन की अगुआई में सात दलों का यह मोर्चा बीएनपी के साथ मिलकर शेख हसीना को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए आक्रामक सियासी दांव चल रहा है।

विपक्षी मोर्चा हसीना पर देश में लोकतंत्र को तानाशाही में तब्दील करने का आरोप लगा रहा है। जबकि अवामी लीग और उसके गठबंधन दलों के साथी बीएनपी पर जमाते इस्लामी और पाकिस्तान समर्थक रजाकारों के कट्टरपंथी एजेंड़े को बांग्लादेश में फिर से बहाल करने की कोशिश में लगे होने का दावा कर रहे हैं।

जमाते इस्लामी के लोगों को ही बांग्लादेश के संस्थापक शेख मजिर्बुर रहमान की हत्या के लिए जिम्मेदार माना जाता है। जबकि रजाकारों ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान 1971 में पाकिस्तानी सेना के पक्ष में नरसंहार को अंजाम दिया था।

बांग्लादेश के सूचना मंत्री हसनूल हक इनु ने विदेशी पत्रकारों से बातचीत में साफ कहा कि बीएनपी और सात पार्टियों का गठजोड़ कट्टरपंथी जमाते इस्लामी व रजाकारों का एजेंडा देश में लागू करना चाहते हैं। इसीलिए तानाशाही के आरोपों से पीएम हसीना डरने वाली नहीं और बांग्लादेश का धर्मनिरपेक्ष चरित्र बदलने की कोई चाल हम कामयाब नहीं होने देंगे।

इनू ने कहा कि कार्यवाहक सरकार के अधीन चुनाव कराने के दुष्परिणाम बांग्लादेश ने देख लिया है और हम अब अपने लोकतंत्र को अस्थिर नहीं होने देंगे। विपक्षी पार्टी को सत्ता के बूते कथित तौर पर कुचलने को लेकर पीएम हसीना की पश्चिमी मीडिया में आलोचना को इनू ने सिरे से खारिज करते हुए कहा कि पश्चिमी देशों को अपना गिरेबान भी देख लेना चाहिए। उनका कहना था कि पूर्व पीएम खालिदा जिया को सरकार ने नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के मामले में अदालत ने दोषी करार देते हुए पांच साल की सजा दी है। बीएनपी खालिदा की रिहाई को भी चुनाव में शामिल होने की शर्त से जोड़ रही है।

सूचना मंत्री के साथ बांग्लादेश के विदेश मंत्री अबू हसन महमूद अली कहते हैं कि हसीना ने बीते दस साल में देश के आर्थिक विकास को ऐसे मुकाम पर ला दिया है जहां से 2030 तक हम मध्यम वर्ग और 2041 तक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने के ट्रैक पर हैं।

भयंकर गरीबी और भूखमरी के दौर को पीछे छोड़ बांग्लादेश विकास की नई मंजिलों को हासिल कर रहा और इसलिए 2018 का यह चुनाव बीएनपी के कट्टरपंथ और शेख हसीना के उदारवादी प्रगतिशील लोकतंत्र के बीच है।


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