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अफगानिस्तान में हिंदू-सिख अल्पसंख्यकों का बुरा हाल, आइएस की धमकियों के डर से देश छोड़ रहे हैं लोग

अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों का पलायन पिछले कई वर्षो में तेज हुआ है। इसका मुख्य कारण मुस्लिम बहुल देश में उनके साथ होने वाला भेदभाव है। अल्पसंख्यकों खासतौर पर हिंदू और सिखों को हर स्तर पर भेदभाव झेलना पड़ता है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 27 Sep 2020 07:56 PM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 07:56 PM (IST)
अफगानिस्तान में हिंदू-सिख अल्पसंख्यकों का बुरा हाल, आइएस की धमकियों के डर से देश छोड़ रहे हैं लोग
अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों का पलायन पिछले कई वर्षो में तेज हुआ है।

काबुल, एपी। अफगानिस्तान में रहने वाली अल्पसंख्यक हिंदू और सिखों की आबादी तेजी से कम हो रही है। कभी ढाई लाख लोगों की इन समुदायों की आबादी अब घटकर महज 700 रह गई है। ऐसा खासतौर से आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (IS) की धमकियों के चलते हो रहा है। लोग अपना जन्मस्थान छोड़कर देश से बाहर जा रहे हैं।

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अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों का पलायन पिछले कई वर्षो में तेज हुआ है। इसका मुख्य कारण मुस्लिम बहुल देश में उनके साथ होने वाला भेदभाव है। अल्पसंख्यकों खासतौर पर हिंदू और सिखों को हर स्तर पर भेदभाव झेलना पड़ता है। उन्हें सरकार की ओर से भी कोई प्रश्रय नहीं मिलता। हालात तब और बदतर हो गए जब बीते कुछ वर्षो में वहां आतंकी संगठन आइएस का प्रभाव बढ़ा। सुन्नी मुसलमानों के संगठन आइएस के निशाने पर हर जगह गैर मुस्लिम रहते हैं।

अपना नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर सिख समुदाय के सदस्य ने बताया- जो हालात हैं उनमें हम ज्यादा दिनों तक अफगानिस्तान में नहीं रह सकते। मार्च में गुरुद्वारे पर आइएस ने हमला कर जब 25 सिख मारे थे, उनमें सात इस व्यक्ति के रिश्तेदार थे।

उन्होंने बताया कि धमकियों के चलते वह अपना जन्मस्थान छोड़कर भारत आ गए हैं। घर में अकेली मां रह गई हैं जिनकी चिंता लगी रहती है। वह अफगानिस्तान से आए हिंदुओं और सिखों के जत्थे के साथ आए हैं, जो उन्हीं की तरह भयभीत हैं।

दशकों से भेदभाव झेल रहे अल्पसंख्यक समुदाय को नहीं मिलती सरकार से सांत्वना

हिंदू और सिख, अलग धर्मो को मानने वाले समुदाय हैं। उनके पूजास्थल और धर्मग्रंथ अलग हैं। लेकिन अफगानिस्तान में वे अपने मंदिर और गुरुद्वारे साझा करते हैं। साथ उठते-बैठते और पूजा करते हैं। एक-दूसरे के दुख-सुख में साथ होते हैं। चुनौतीपूर्ण हालात में उनके बीच भेद खत्म कर दिए हैं। दशकों से भेदभाव झेल रहे इन समुदायों को किसी सरकार से सांत्वना नहीं मिलती। कोई भी सरकार और उनका सरकारी अमला इन अल्पसंख्यकों की मुश्किलें नहीं सुनता। इसी का नतीजा है अब वहां से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है।


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