विश्व हिंदी सम्मेलन: संवादहीनता से भारी अव्यवस्था, पोस्टर पर गलत लिखे वरिष्ठ लेखकों के नाम
हिंदी के वरिष्ठ लेखकों के नाम पोस्टर पर गलत लिखे गए। अज्ञेय से लेकर श्रीलाल शुक्ल तक के नाम गलत लिखे गए और किसी लेखक की फोटो ही गलत लग गई।
पोर्ट लुई (अनंत विजय)। मुझे मेरे सत्र के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, मुझे डेढ़ घंटे तक इस कक्ष से उस कक्ष तक घुमाया गया कि सत्र का आयोजन वहां नहीं, वहां होगा। आखिरकार डेढ़ घंटे के बाद सत्र के लिए जगह मिली और सत्र शुरू हो सका। मुझे कुछ नहीं मालूम कि मुझे क्या करना है। कोई ये बताने वाला भी नहीं है कि मैं अपने होटल तक कैसे पहुंचूंगा।’ ये कहना है विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत सरकार के प्रतिनिधिमंडल में शामिल प्रख्यात लेखक नरेंद्र कोहली का। ऐसी ही अव्यवस्थाओं के चलते सत्र में श्रोताओं के उपस्थिति कम हो गई। वक्ताओं को समय कम मिला।
सम्मेलन के दूसरे दिन बाल साहित्य पर आयोजित एक सत्र में मंच पर बैठे वक्ताओं से श्रोताओं की संख्या कम थी। इसी तरह से एक और बुजुर्ग लेखक और मशहूर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप को भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा और वो एक मित्र से ये कहते सुने गए कि इतना अपमान उनका किसी आयोजन में नहीं हुआ। उनको हर दिन बस में बैठाकर सम्मेलन स्थल तक ले जाया जाता है और वहां से वापस वो किस बस में लौटेंगे, इसके लिए उनको जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
दरअसल पोर्ट लुई पर उतरते ही प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को इसका अहसास होने लगा था, जब चार सदस्यों को उनके होटल के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाई थी। वहां मौजूद अफसरों ने उनको कहा कि आप लोग होटल चलें, वहां कमरे मिल जाएंगे। मेरेडियन होटल में पहुंचे इन चारों सदस्यों को घंटों इंतजार करना पड़ा। इसके बाद मेरेडियन होटल में सभी लेखकों को लॉबी में पौने तीन बजे जमा होने के लिए कहा गया ताकि वो बस से गंगा आरती के कार्यक्रम के लिए गंगा तालाब रवाना हो सकें। लेकिन बस पहुंची पांच बजे और जब प्रतिनिधिमंडल के सदस्य गंगा तालाब पहुंचे तो वहां आरती खत्म हो चुकी थी।
दरअसल होटल और आयोजन स्थल पर तैनात विदेश मंत्रालय के अफसरों को कार्यक्रमों के बारे में ब्रीफ नहीं किया गया था। इस वजह से वो प्रतिनिधमंडल के सदस्यों को सटीक जानकारी देने में असमर्थ नजर आ रहे हैं। सम्मेलन को लेकर इसके आयोजकों में संवादहीनता की स्थिति ने अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर दी। हर कोई एक-दूसरे से जानकारी मांगता नजर आ रहा है।
एक और गड़बड़ी अफसरों ने की जब हिंदी के वरिष्ठ लेखकों के नाम पोस्टर पर गलत लिखे गए। अज्ञेय से लेकर श्रीलाल शुक्ल तक के नाम गलत लिखे गए और किसी लेखक की फोटो ही गलत लग गई। परामर्श समिति के सदस्य कमल किशोर गोयनका की नजर उन नामों पर पड़ी और उद्घाटन के एक दिन पहले उन्होंने विदेश मंत्रालय के अफसरों को ईमेल से इस बारे में जानकारी दी। इसके बाद सही नाम लिखवाए गए। एक बोर्ड पर तो गोपालदास नीरज जी का नाम सम्मेलन के दूसरे दिन तक ठीक नहीं करवाया जा सका।
नाम ना छापने की शर्त पर परामर्श समिति के एक सदस्य ने बताया कि विदेश मंत्रलय के अफसरों ने सब कुछ इतना गोपनीय रखा और किसी से जानकारी साझा नहीं की, इसकी वजह से तमाम तरह की परेशानियां पैदा हो रही हैं।