इस ग्रह पर होती है 'लोहे की बारिश', इन प्लेनेट्स पर बरसते हैं हीरे, जानें ब्रह्मांड के अनोखे रहस्य
अंतरिक्ष में एक ग्रह है जहां आसमान से लोहा बरसता है। यहां दिन में तापमान 2400 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है जिससे लोहा भाप बनकर उड़ जाता है। जानें अनोखे ग्रहों के बारे में...
लंदन, पीटीआइ। पृथ्वी में एक ओर जहां कई इलाके बारिश, बाढ़, सूखे और तूफान का कहर झेलते हैं, वहीं आपको जानकर हैरानी होगी कि अंतरिक्ष में एक ग्रह ऐसा भी है जहां आसमान से लोहा बरसता है। दरअसल, खगोलविदों ने एक ऐसे गर्म और विशालकाय एक्सोप्लैनेट का पता लगाया है, जिसमें हर शाम लोहे के कण बारिश की तरह बरसते हैं। एक्सोप्लैनेट वे ग्रह होते हैं जो सौरमंडल के बाहर मौजूद होते हैं। ये ग्रह सूर्य की जगह किसी और तारे की परिक्रमा करते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक खगोलविद लगभग 3700 से ज्यादा एक्सोप्लैनेट की पहचान कर चुके हैं, जिनमें 53 में जीवन की संभावनाएं भी हैं। एक अध्ययन में बताया गया है कि खगोलवेत्ताओं की यह खोज सौरमंडल के बाहर स्थित सबसे गर्म ग्रहों की जलवायु का अध्ययन करने के बेहतर तरीके बता सकती है।
लोहा भी बन जाता है भाप
स्विट्जरलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ जिनेवा के शोधकर्ताओं का कहना है कि डब्ल्यूएएसपी-76बी नामक इस विशाल एक्सोप्लैनेट की पृथ्वी से दूरी का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां से हमारे ग्रह तक प्रकाश भी पहुंचने में लगभग 640 साल का समय लेगा। यहां एक दिन में तापमान 2400 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जिसके कारण लोहे का भी वाष्पीकरण हो जाता है। यह अध्ययन 'जर्नल नेचर' में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि तेज हवाओं के झौंके लोहे की वाष्प को रात में ठंडा कर देते हैं और बाद में यही वाष्प संघनित होकर बरस जाती है।
टेडली लॉक है डब्ल्यूएएसपी-76बी
जिनेवा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस अध्ययन के सह-लेखक डेविड एहरेनरिच ने कहा, 'ऐसा कहा जा सकता है कि यह ग्रह हर दिन शाम को बरसाती हो जाता है, लेकिन यहां केवल 'लोहे की बारिश' होती है। शोधकर्ताओं ने कहा यह घटना यह बताती है कि यहां दिन में कैसा तापमान कितना गर्म रहता होगा, वहीं यहां की रातें ठंडी होती है। उन्होंने बताया कि पृथ्वी के चंद्रमा की तरह ही डब्ल्यूएएसपी-76बी भी ज्वारबंधन (टेडली लॉक) है, जिसका अर्थ है कि अपनी धुरी के चारों ओर घूमने में उतना ही समय लगता है जितना कि तारे के चारों ओर चक्कर लगाने में लगता है।
43 घंटे में पूरा करता है अपने तारे की परिक्रमा
अध्ययन में बताया गया है कि सूर्य से पृथ्वी तक पहुंचने वाले विकिरण के मुकाबले इस ग्रह को अपने तारे से हजार गुना ज्यादा विकिरण की मार झेलनी पड़ती है। यह ग्रह अपने तारे के इतना करीब है कि इसे एक चक्कर पूरा करने में सिर्फ 43 घंटे लगते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, इसकी सतह इतनी गर्म हो सकती है कि अणु परमाणु में खुद-ब-खुद विभक्त (अलग) हो जाते हैं और लोहे जैसी धातु वायुमंडल में वाष्पित हो जाती है।
हवाएं कम करती हैं तापमान
वैज्ञानिकों ने कहा कि इस ग्रह पर दिन-रात की अपनी एक अलग केमस्ट्री है। यहां दिन और रात के बीच के अत्यधिक अंतर के कारण अत्यधिक गर्म हवाएं चलती हैं, जिससे तापमान लगभग 1500 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पहली बार रासायनिक रूपांतरों को चिन्हित करते हुए कहा, इस ग्रह की एक खासियत यह है कि यहां सुबह के समय रात में हुई 'लोहे की बारिश' के सुबूत दिखाई ही नहीं देते हैं। उन्होंने कहा कि यह किसी बड़ी पहेली से कम नहीं है।
ऐसे लगाया पता
खगोलविदों ने चिली के अटाकामा रेगिस्तान में यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला (ईएसओ) के उच्च रिजॉल्यूशन स्पेक्ट्रोग्राफ, ईएसपीआरईएसएसओ का उपयोग करते हुए यह अपनी तरह की पहली खोज की है। स्पेन के सेंटर फॉर एस्ट्रोबायोलॉजी से इस अध्ययन की एक अन्य सह-लेखक मारिया रोजा जैपेटेरो ओसोरियो ने कहा, ' शोध से पता चलता है कि डब्ल्यूएएसपी -76 बी के वातावरण में लौह वाष्प प्रचुर मात्रा में मौजूद है।
नेप्च्यून और यूरेनस में होती है हीरों की बारिश
इससे पहले वैज्ञानिकों ने यह भी दावा किया था कि हमारे सोलर सिस्टम में शामिल दो प्लैनेट्स नेप्च्यून और यूरेनस में हीरों की बारिश होती है। वैज्ञानिकों का अनुमान था कि इन दोनों ग्रहों के अंदरूनी भागों में एट्मॉस्फियरिक प्रेशर बहुत ज्यादा होता है, जिसकी वजह से हाइड्रोजन और कार्बन के बॉन्ड टूट जाते हैं। इसी वजह से यहां हीरों की बरसात होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये हीरे धीरे-धीरे इन प्लैनेट्स की बर्फीली सतह पर जमा हो रहे हैं। बता दें कि इन दोनों ग्रहों की संरचना पृथ्वी से काफी अलग है। इन ग्रहों पर हाइड्रोजन और हीलियम जैसी गैसों का दबदबा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन प्लैनेट्स के भीतरी भाग यानी सतह से लगभग 6200 मील अंदर अत्यधिक दबाव होता है। यही वजह है कि इन ग्रहों पर हीरे की बारिश होती है।