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अफगानिस्तान में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मतदाताओं ने डाले वोट, तालिबान की धमकी बेसअर

तालिबान आतंकियों की धमकी को दरकिनार कर अफगानी मतदाता लोकतंत्र में अपना भरोसा दिखाते हुए मतदान केंद्रों तक पहुंचे।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 28 Sep 2019 11:18 PM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2019 11:18 PM (IST)
अफगानिस्तान में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मतदाताओं ने डाले वोट, तालिबान की धमकी बेसअर
अफगानिस्तान में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मतदाताओं ने डाले वोट, तालिबान की धमकी बेसअर

काबुल, एजेंसी। तालिबान आतंकियों की धमकी को दरकिनार कर शनिवार को अफगानी मतदाता लोकतंत्र में अपना भरोसा दिखाते हुए मतदान केंद्रों तक पहुंचे। मतदाताओं की सुरक्षा के लिए हजारों सुरक्षा कर्मियों को भी तैनात किया गया था। मतदान के दौरान कुछ जगहों पर हिंसा की खबरें भी हैं।

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तालिबान हमलों में दो की मौत

अधिकारियों के मुताबिक, अलग-अलग जगहों पर तालिबान के हमलों में दो लोगों के मारे जाने की खबर है। दो महीने चले चुनाव अभियानों के दौरान व्यापक हिंसा फैलाने वाले तालिबान आतंकियों ने शनिवार को हुए पहले दौर के मतदान में भी कई जगहों पर हमले किए।

तालिबान का दावा है कि उसने देशभर में सैक़़डों हमले किए। कुंदूज, नांगरहार, काबुल, बामियान और कंधार समेत कई प्रांतों में हिंसा की घटनाएं देखी गई। अधिकारियों के मुताबिक, हमलों में दो लोगों के मारे जाने और 27 लोगों के घायल होने की खबर है।

गनी ने काबुल हाई स्कूल में किया मतदान

उन्होंने बताया कि कई मतदान केंद्रों पर लंबी कतारों के चलते शाम पांच बजे तक मतदान कराया गया। पहले यह समय तीन बजे तक निर्धारित था। पिछले चुनाव की तुलना में शुरुआत में मतदाताओं की संख्या कम रही। हालांकि धीरे-धीरे मतदाताओं ने मतदान केंद्रों का रख किया। चुनाव में राष्ट्रपति अशरफ गनी और अफगानिस्तान के मुख्य कार्यकारी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। गनी ने काबुल हाई स्कूल में मतदान किया।

उन्होंने कहा कि युद्ध ग्रस्त देश में शांति के लिए जनसमर्थन से एक नेता चुनना सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, 'शांति का रोडमैप तैयार है। मैं चाहता हूं कि लोग हमें अनुमति और अधिकार दें, जिससे हम इस दिशा में आगे ब़़ढ सकें।'

निराशा के बीच उम्मीद की किरण

अफगानिस्तान में कुल 96 लाख पंजीकृत मतदाता हैं। हालांकि पिछले 18 साल से चल रही युद्ध की स्थिति ने उनका भरोसा तोड़ दिया है कि कोई नेता देश को जोड़ पाएगा और लोगों का जीवनस्तर सुधार पाएगा। मानवाधिकार समूह से जुड़े लोगों का कहना है कि मतदान प्रतिशत कम रहने का अनुमान है। खासकर महिलाएं ने बहुत कम हिस्सा लिया। इन चुनौतियों के बाद भी कई मतदाताओं ने लंबी कतारों में लगकर लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में योगदान दिया।

बदलाव चाहते हैं तो वोट देना होगा

55 वर्षीय मोइनुद्दीन ने कहा, 'मैं जानता हूं कि मतदान के लिए निकलने में खतरा है, लेकिन बम और हमले तो हमारी रोजाना की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। मैं डरा हुआ नहीं हूं। अगर हम बदलाव चाहते हैं तो हमें वोट देना होगा।' एक अन्य मतदाता ने कहा, 'मैं चुनाव आयोग से केवल इतना निवेदन करता हूं कि वह निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करे।'

पिछले चुनाव नतीजों पर रहा था विवाद

2014 के चुनाव में गनी और अब्दुल्ला दोनों ने जीत का दावा किया था। मतदान में धांधली के बहुत आरोप लगे थे। उस दौरान हिंसा भी बहुत ज्यादा हुई थी। इस कारण से नतीजों के बाद संवैधानिक संकट पैदा हो गया था। इसके बाद अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हस्तक्षेप करते हुए सुलह कराया और अब्दुल्ला को सरकार में सहायक भूमिका दी गई।

अधिकारियों का दावा है कि इस बार मतदाताओं की पहचान की प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी है और निष्पक्ष चुनाव कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। हालांकि मतदान की प्रक्रिया में बहुत ज्यादा वक्त लगने के कारण कुछ लोगों में नाराजगी भी देखी गई। एक मतदाता पर औसतन साढ़े तीन मिनट लगा। शुरुआत में कुछ मतदाताओं को मतदान में पांच मिनट से ज्यादा वक्त भी लगा था।

तालिबान ने काटी अंगुली, फिर भी नहीं मानी हार

तालिबान आतंकियों ने 2014 में मतदान करने के कारण सफीउल्लाह सफी के दाएं हाथ की पहली अंगुली काट दी थी। हालांकि इतने के बाद भी आतंकी उनकी हिम्मत नहीं तोड़ पाए। सफी ने शनिवार को फिर मतदान किया। 36 वर्षीय सफी ने ट्विटर पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें दाएं हाथ की कटी हुई अंगुली और बाएं हाथ की अंगुली पर मतदान की स्याही लगी थी। सफी ने बताया, '2014 में मतदान के अगले दिन मैं काबुल से खोस्त शहर की ओर जा रहा था। रास्ते में तालिबान आतंकियों ने मुझे रोका और स़़डक से दूर अपनी कथित अदालत में ले गए। वहां उन्होंने मेरी स्याही लगी अंगुली काट दी।'


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