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अफगान दूत ने UN को बताया, तालिबान के शासन में लाखों लोग जी रहे हैं डर के साए में

अफगान सरकार के एक वरिष्ठ राजनयिक ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के एक आपातकालीन सत्र को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने तालिबान की कार्रवाइयों के लिए जवाबदेही की मांग की जिसमें अनिश्चित और भयानक स्थिति का वर्णन किया गया।

By Avinash RaiEdited By: Published: Tue, 24 Aug 2021 07:24 PM (IST)Updated: Tue, 24 Aug 2021 07:24 PM (IST)
अफगान दूत ने UN को बताया, तालिबान के शासन में लाखों लोग जी रहे हैं डर के साए में
अफगान दूत ने यूएन को बताया कि तालिबान के तहत लाखों लोग डर के साए में जी रहे हैं

जिनेवा, रायटर। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर काबिज होने के बाद से देश के आम नागरिक डरे हुए हैं। अफगान सरकार के एक वरिष्ठ राजनयिक ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के एक आपातकालीन सत्र को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने तालिबान की कार्रवाइयों के लिए जवाबदेही की मांग की, जिसमें "अनिश्चित और भयानक" स्थिति का वर्णन किया गया।

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जिनेवा में अफगानिस्तान की स्थिती को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का एक आपातकालीन सत्र चल रहा है। आपातकालीन सत्र को संबोधित करते हुए, राजदूत नासिर अहमद अंदिशा ने सदस्य देशों से तालिबान और अन्य लोगों को एक कड़ा संदेश भेजने का आह्वान किया। उन्होंने आगे कहा कि देश में घर-घर जाकर तलाशी ली जा रही है और जबरन शादी की खबरों के बीच लाखों लोगों को अपनी जान का डर सता रहा हैं।

राजदूत नासिर अहमद अंदिशा ने कहा कि जमीनी हकीकत अनिश्चित और भयावह है। इस पर गंभीरता से ध्यान देने, जिम्मेदारी और जवाबदेही की जरूरत है। उन्होंने जबरन शादी की घटनाओं का हवाला देते हुए कहा कि मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिए तालिबान के शुरुआती वादों के बावजूद प्रतिबंध और उल्लंघन हो रहे है। पत्रकारों को डराने व धमकाने के साथ-साथ घर-घर जाकर तलाशी की खबरें भी है।

राजदूत नासिर अहमद अंदिशा ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से कहा कि मानवाधिकार परिषद वेट एंड सी नहीं कर सकती है और उन्हें करना भी नहीं चाहिए। हमें ध्यान और कार्रवाई करने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत के प्रतिनिधि इंद्र मणि पांडे ने कहा कि हम अफगानिस्तान में शांति, स्थिरता और नागरिकों की सुरक्षा चाहते है।

अफगानिस्तान वर्तमान में परिषद का सदस्य नहीं है, बल्कि एक पर्यवेक्षक है जिसके पास मतदान का अधिकार नहीं है। परिषद का गठन 47 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से मिलकर हुआ, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में मानवाधिकारों को बढ़ावा देना है।


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