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तालिबान ने वार्ता से पहले रखी विदेशी सेना वापसी की शर्त, इस्तांबुल में 24 अप्रैल को शांति सम्मेलन की मेजबानी करेगा तुर्की

तालिबान ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा कि अफगानिस्तान से विदेशी सेना की वापसी से पहले फिलहाल कोई शांति वार्ता नहीं की जाएगी। अमेरिका ने तालिबान से एक मई तक सेना की वापसी का समझौता किया था।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 14 Apr 2021 07:47 PM (IST)Updated: Wed, 14 Apr 2021 07:47 PM (IST)
तालिबान ने वार्ता से पहले रखी विदेशी सेना वापसी की शर्त, इस्तांबुल में 24 अप्रैल को शांति सम्मेलन की मेजबानी करेगा तुर्की
अफगानिस्तान में ढाई हजार अमेरिकियों के साथ सात हजार अन्य देशों के सैनिक हैं।

काबुल, एजेंसियां। तालिबान ने चेतावनी दी है कि वह विदेशी सेनाओं की अफगानिस्तान से वापसी के बाद ही किसी शांति वार्ता में शरीक होगा। अमेरिका ने तालिबान से एक मई तक सेना की वापसी का समझौता किया था।

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तालिबानी प्रवक्ता वारदक ने कहा- अफगान से विदेशी सेना की वापसी से पहले नहीं होगी शांति वार्ता

मंगलवार को अमेरिका ने तालिबान को संकेत दिया था कि ट्विन टावर पर हमले की 11 सितंबर को 20वीं वर्षगांठ से पहले अमेरिकी सैनिकों की वापसी कर ली जाएगी। इस संकेत के मिलने के बाद तालिबान ने सीधे चेतावनी जारी कर दी है। तालिबानी प्रवक्ता मुहम्मद नईम वारदक ने कहा है कि अफगानिस्तान से विदेशी सेना की वापसी से पहले फिलहाल कोई शांति वार्ता नहीं की जाएगी।

इस्तांबुल में 24 अप्रैल को होने वाली वार्ता में भाग लेने की तालिबान नहीं की पुष्टि

इससे पहले संयुक्त राष्ट्र यह घोषणा कर चुका है कि तुर्की के इस्तांबुल में 24 अप्रैल को अफगानिस्तान से संबंधित सभी पक्षों के साथ वार्ता शुरू होगी। यह वार्ता 4 मई तक चलेगी। इस वार्ता में शामिल होने की पुष्टि अफगानिस्तान ने कर दी है, लेकिन तालिबान के भाग लेने की अभी पूरी तरह पुष्टि नहीं हुई है।

अमेरिका ने कहा- नाटो की सेना की वापसी भी अमेरिकी सेना के साथ ही होगी

इधर, अमेरिका ने कहा है कि नाटो की सेना की वापसी भी अमेरिकी सेना के साथ ही होगी। वर्तमान में अफगानिस्तान में अमेरिका के ढाई हजार सैनिकों के साथ ही सात हजार गैर-अमेरिकी सेना है।

अफगानिस्तान हिंसा में नागरिकों के मरने की संख्या 29 फीसद बढ़ी: संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार साल के पहले तीन महीनों में अफगानिस्तान की हिंसा में 573 नागरिक मारे गए और 1210 घायल हो गए। मरने वालों की संख्या पिछले साल की तुलना में 29 फीसद की वृद्धि है।

मौजूदा संविधान पर है लोगों की आस्था: जनमत सर्वेक्षण

अफगान शांति वार्ता की कोशिशों के बीच हाल ही में हुए एक जनमत सर्वेक्षण ने सबका ध्यान खींचा है। इसके नतीजों को तालिबान के लिए एक झटका माना जा रहा है। स्थानीय रिसर्च एजेंसी पीस एंड डेमोक्रेसी (पीएचडी) की तरफ से कराए गए इस सर्वे में सामने आया कि अफगानिस्तान के 83 फीसद लोग चाहते हैं कि देश में इस्लामी गणतांत्रिक व्यवस्था लागू रहे, लेकिन 90 फीसदी लोगों ने देश के मौजूदा संविधान में आस्था जताई। यहां यह गौर करने वाली बात है कि तालिबान देश के मौजूदा संविधान को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। वह देश में पूर्ण इस्लामी व्यवस्था चाहता है। इस सर्वे के लिए 40 हजार लोगों से बातचीत की गई है। उनमें ज्यादातर लोगों ने माना कि तालिबान के पास अफगानिस्तान पर शासन करने की कोई योजना नहीं है। इसलिए बहुमत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को तालिबान पर दबाव बनाना चाहिए ताकि वह शांति समझौते को मानने के लिए मजबूर हो।

अफगान सम्मेलन की मेजबानी करेगा तुर्की, भारत भी आमंत्रित 

तुर्की ने मंगलवार को घोषणा की कि इस महीने वह अफगानिस्तान के विभिन्न संघर्षरत पक्षों के बीच इस्तांबुल में 10 दिनों के शांति सम्मेलन की मेजबानी करेगा। तुर्की के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि सम्मेलन में तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा तुर्की, कतर और संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी शामिल होंगे। इस सम्मेलन में भारत को भी आमंत्रित किया गया है। सम्मेलन 24 अप्रैल से चार मई तक होगा।

शांति योजना के लिए अमेरिकी प्रयास खटाई में पड़ता दिख रहा

यह अचानक घोषणा तब की गई है जब तालिबान के एक प्रवक्ता ने सोमवार को कहा कि धार्मिक मिलिशिया तुर्की में इस हफ्ते होने वाले शांति सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेगी, जिससे शांति योजना के लिए अमेरिकी प्रयास खटाई में पड़ता दिख रहा था।

अंतर अफगान वार्ता में तेजी लाना ही बैठक का उद्देश्य

तुर्की के विदेश मंत्रालय ने सम्मेलन में भाग लेने वालों के बारे में विस्तृत सूचना नहीं दी। इसने कहा कि बैठक का उद्देश्य अंतर अफगान वार्ता में तेजी लाना है जो दोहा में चल रही है और उचित एवं स्थायी राजनीतिक समाधान तलाशना है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि सम्मेलन के सह आयोजक एक संप्रभु, स्वतंत्र और एकीकृत अफगानिस्तान का समर्थन करते हैं।


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