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अफगान में सिखों व हिंदुओं पर हमले के पीछे बड़ी साजिश की आशंका

आइएसआइ उस इलाके में अपने समर्थक तालिबान लड़ाकों के साथ मिल कर भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए पहले भी इस तरह के हमले करवा चुकी है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Mon, 02 Jul 2018 09:43 PM (IST)Updated: Mon, 02 Jul 2018 09:44 PM (IST)
अफगान में सिखों व हिंदुओं पर हमले के पीछे बड़ी साजिश की आशंका
अफगान में सिखों व हिंदुओं पर हमले के पीछे बड़ी साजिश की आशंका

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। अफगानिस्तान के जलालाबाद में सिखों व हिंदुओं से भरी बस पर हमले के पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों की हरकत की आशंका है। आइएसआइ उस इलाके में अपने समर्थक तालिबान लड़ाकों के साथ मिल कर भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए पहले भी इस तरह के हमले करवा चुकी है।

तकरीबन दो दशक पहले जब अफगानिस्तान में तालिबान शासन था तब हिंदुओं व सिखों के खिलाफ जबरदस्त अभियान चलाया गया था। खुफिया सूत्रों की मानें तो भारत अफगानिस्तान सरकार के साथ मिल जलालाबाद के आस पास के इलाकों में कई विकास कार्यो पर काम करने की मंशा बनाए हुए है, यह हमला उसे नुकसान पहुंचाने के लिए ही किया गया है।

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जलालाबाद शहर में सिखों व हिंदुओं से भरी एक बस को निशाना बना कर किये गये आत्मघाती हमले से भारत का खुफिया और कूटनीतिक सर्किल बेहद सकते में है। इस हमले में मारे गये 19 लोगों में से 17 सिख या हिंदु हैं। खूंखार आतंकी संगठन आइएसआइएस ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है लेकिन देश की खुफिया एजेंसियों को शक है कि इसमें पड़ोसी देश पाकिस्तान की एजेंसियों का भी हाथ हो सकता है।

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ पहले भी दूसरे आतंकी संगठनों की मदद से भारत से जुड़े ठिकानों पर कई बार घातक हमले करवा चुकी है। वैसे इस हमले में मारे जाने वाले लगभग तमाम सदस्य स्थाई तौर पर अफगानिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक हैं।

पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक ने इस पर अपना दुख व्यक्त किया है। पीएम मोदी ने कहा है कि यह अफगानिस्तान के बहुसांस्कृतिक विरासत पर किया गया हमला है। मारे गये लोगों व घ्महले में घायल लोगों के प्रति संवेदना जताने के साथ ही उन्होंने इस दुख की घड़ी में अफगानिस्तान सरकार को हर तरह की मदद देने की बात भी कही है।

खुफिया एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि अफगानिस्तान में जब पाकिस्तान समर्थक तालिबान का शासन था तभी से वहां रहने वाले सिख व हिंदु अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले हो रहे हैं। ये अल्पसंख्यक आम तौर पर पाकिस्तान-अफगानिस्तान की सीमा पर रहते हैं और इन्हें हर तरह के आतंकी संगठनों के हिंसा का सामना करना पड़ता है। तालिबान सरकार के शासन के दौरान बड़ी संख्या में वहां से अल्पसंख्यकों का पलायन हो गया।

आज से तकरीबन 25 वर्ष पहले वहां एक लाख अल्पसंख्यक रहते थे लेकिन उनकी संख्या अभी महज एक हजार रह गई है। जिस इलाके में इस बार हमला किया गया है वहां आइएसआइएस और तालिबान के बीच एक तरह से वर्चस्व की लड़ाई हो रही है। यहां से कुछ ही दूरी पर नंगरहर का वह इलाका है जिसे आइएसआइएस का गढ़ माना जाता है।

यहां पर पिछले वर्ष अमेरिका ने बेहद शक्तिशाली बम 'मदर ऑफ आल बम- एमओएबी' भी गिराया था। सूत्रों के मुताबिक इस इलाके में आइएसआइएस से ज्यादा तालिबान की लोकप्रियता बढ़ी है। साथ ही यह बात भी सभी को मालूम हो कि इस पूरे इलाके में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ और पाकिस्तान की सेना तालिबान को भरपूर मदद करती है।


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