'Black Panther' के साथ सऊदी अरब के सिनेमाघरों में खत्म हुई 35 वर्ष पुरानी खामोशी
सऊदी अरब के सिनेमाघरों में आखिरकार 35 वर्ष पुरानी खामोशी टूट गई। ब्लैक पैंथर की रिलीज के साथ टूटी यह खामोशी वहां के लिए कोई छोटी घटना नहीं थी।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। सऊदी अरब के सिनेमाघरों में आखिरकार 35 वर्ष पुरानी खामोशी टूट गई। ब्लैक पैंथर की रिलीज के साथ टूटी यह खामोशी वहां के लिए कोई छोटी घटना नहीं थी। 1980 के दशक में सऊदी अरब में सिनेमाघर बंद करवा दिए गए थे। हॉलीवुड की मूवी ब्लैक पैंथर के रिलीज होने के साथ ही यह प्रतिबंध भी पूरी तरह से खत्म हो गया। आपको बता दें कि इस्लाम में फिल्में देखना कथिततौर पर गलत माना जाता रहा है। कई मुल्ला और मौलवी इसके सख्त खिलाफ रहते हैं। ऐसे में उस धरती पर जहां इस्लाम पैदा हुआ इतना बड़ा फैसला इसके बदलाव की कहानी को ही बयां कर रहा है। हालांकि जब हम सऊदी अरब में बदलाव की बात करते हैं तो यह अब कोई नई नहीं रह गई है। बीते दो वर्षों से सऊदी अरब ने जिस तर्ज पर अपने यहां बदलाव की बयार चलाई है उससे एक नए सऊदी अरब की उम्मीद जरूर जगी है।
बदलाव के पीछे ये शख्स
यहां पर लगातार हो रहे बदलावों को लेकर एक इंसान की जोर-शोर से चर्चा भी हो रही है। यह और कोई नहीं बल्कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान हैं। वह सऊदी अरब में हो रहे बदलाव के लिए पूरी तरह से समर्पित दिखाई दे रहे हैं। यही वजह है कि एक के बाद एक फैसले लेकर वह सऊदी अरब की कट्टरवादी छवि से पीछा छुड़ाते हुए साफ दिखाई देते हैं। बुधवार को भी इस बदलाव की एक झलक सिनेमाघरों के खुलने से दिखाई दी। इसके साथ ही आखिरकार सऊदी अरब के नागरिकों को भी पॉपकार्न खाते हुए सिनेमा का लुत्फ उठाने का मौका मिला गया। हॉलीवुड मूवी ‘ब्लैक पैंथर’ का पहला शो यूं तो केवल खास मेहमानों के लिए ही था, लेकिन इन खास मेहमानों में महिलाएं भी शामिल थीं। आम लोगों के लिए टिकट की बिक्री गुरुवार से शुरू हुई। वे शुक्रवार से फिल्में देख सकेंगे। इस फिलम को कुछ आपत्तिजनक सीन हटाने के बाद यहां प्रदर्शित किया गया था। अन्य फिल्मों को भी प्रदर्शन के पहले सेंसर प्रक्रिया से गुजरना होगा।
1980 के दशक में बंद हुए थे सिनेमाघर
गौरतलब है कि 1980 के दशक में सऊदी अरब के सिनेमाघरों में फिल्म दिखाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान द्वारा किए जा रहे सामाजिक बदलावों के मद्देनजर यहां सिनेमाघर खोला गया है। सऊदी नागरिक इस बदलाव को नए युग के आगाज के तौर पर देख रहे हैं। सरकार का लक्ष्य 2030 तक दो हजार स्क्रीन के साथ 300 सिनेमाघर शुरू करने का है। अनुमान लगाया जा रहा है कि थिएटर शुरू होने से अर्थव्यवस्था को 24 अरब डॉलर की मदद मिलने के साथ 30 हजार से अधिक को रोजगार मिलेगा। सऊदी अरब ने महिलाओं को आजादी देने के संदर्भ में हाल के दिनों में कई बड़े कदम उठाए हैं।
अबाया से मुक्ति
दरअसल, सऊदी अरब ने अब नए दौर के साथ चलने का जो फैसला लिया है वह वास्तव में काबिले तारीफ है। इसके तहत अब यहां की महिलाओं को अबाया पहनने से भी शायद मुक्ति मिल जाए। सऊदी युवराज और उपप्रधानमंत्री मुहम्मद बिन सलमान का कहना है कि यदि महिलाएं शालीन तरीके से कपड़े पहनें तो उन्हें अबाया पहनने की जरूरत नहीं है। अबाया के मुद्दे पर युवराज का कहना है, 'शरीयत में साफ तौर पर लिखा गया है कि महिलाओं को पुरुषों की तरह ही शालीन कपड़े पहनने चाहिए। इसमें अबाया या हिजाब का जिक्र नहीं है। इसे पहनने या ना पहनने का चुनाव भी महिलाओं का होना चाहिए।
तलाकशुदा मां को मिला अधिकार
सऊदी अरब की सत्तारुढ़ सरकार ने देश की महिलाओं के लिए एक आदेश जारी कर उन्हें अपने बच्चों को अपने पास रखने की इजाजत दे दी है। ऐसे मामले में ये वैसे बच्चे आते हैं जिनके माता-पिता के बीच कोई विवाद नहीं है।
महिला कर सकेंगी ड्राइविंग
सऊदी अरब शासन की नीति में बड़े बदलाव की शुरुआत पिछले साल सितंबर में हुई थी जब सऊदी किंग सलमान बिल अब्दुल्ला अल साद ने एक ऐतिहासिक आदेश जारी किया था। इसके तहत इस साल जून से महिलाएं कार चला सकेंगी।
महिलाओं को मिला वोटिंग का अधिकार
अगर हाल के कुछ वर्षों की बात की जाए तो यह सऊदी अरब की बदलती छवि को साफतौर पर देखा और समझा जा सकता है। इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि पहले सऊदी अरब में की महिलाओं ने पहली बार 2012 के ओलंपिक गेम्स में हिस्सा लिया था। इसके अलावा दिसंबर 2015 में सऊदी अरब ने पहली बार महिलाओं को वोटिंग का अधिकार दिया।
आर्मी में शामिल होंगी महिलाएं
रूढ़िवादी देश सऊदी अरब में महिलाओं के सुधार के लिए कई पहल की जा रही हैं। इसी क्रम में पहली बार यहां की महिलाओं को आर्मी में शामिल होने की अनुमति मिली है। पिछले हफ्ते की इस घोषणा के बाद महिलाओं की ओर से आवेदन आने शुरू हो गए हैं। इससे पहले सऊदी अरब ने स्टेडियम में बगैर किसी पुरुष साथी के अकेली महिला को फुटबाल मैच देखने और फिर विदेशों से अकेली महिला को सऊदी अरब आने मंजूरी दी थी।
योग को खेलकूद का दर्जा
बीते वर्ष सऊदी अरब ने योग को खेल का दर्जा देकर मुस्लिम कट्टरपंथियों के मुंह पर न सिर्फ तमाचा मारा था बल्कि उनके मुंह पर ताले भी जड़ दिए थे। सऊदी अरब ने भारत की पांच हजार साल पुरानी योग पद्धति को खेलकूद दर्जा देकर न सिर्फ सराहनीय काम किया बल्कि दुनिया में मौजूद इस्लामिक राष्ट्रों की सोच में बदलाव लाने की भी नींव रखी है। इस फैसले के तहत सरकार अब योग शिक्षकों को भी लाइसेंस जारी करेगी। इस फैसले के बाद कहीं भी योग को सीखा और सिखाया जा सकेगा। हम आपको ये भी बता दें कि योग को यह दर्जा दिलाने के पीछे नाऊफ अल मारावी हैं, जो इसके लिए काफी समय से जद्दोजहद कर रही थीं। यह इसलिए भी बेहद खास हो जाता है, क्योंकि सऊदी अरब इस्लाम की जन्मस्थली है और योग को एक धर्म विशेष से जोड़कर इस पर लंबे समय से राजनीति होती आई है। सऊदी अरब उन 18 देशों में शामिल था, जो 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र में रखे प्रस्ताव का सह प्रायोजक नहीं थे। ऐसे में सऊदी अरब का यह फैसला अहम है।
विजन 2030
इस मिशन का मकसद पहले ही सऊदी अरब, क्रॉउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पूरी तरह से साफ कर चुके हैं। उनके विजन 2030 एजेंडे को लागू करने के लिए भविष्य में दूसरे आर्थिक और सामाजिक सुधारों को भी लागू किया जा सकता है। सऊदी अरब महिलाओं को लेकर जिस तरह से अपने फैसले उनके हक में ले रहा है और अपनी कट्टरवादी सोच को बदल रहा है उसका पूरी दुनिया में स्वागत किया जा रहा है। उनके इन कदमों को हर तरफ से सराहना मिल रही है। अमेरिका इनकी तारीफ करते हुए कहा है कि यह देश को सही दिशा में ले जाने के लिए बेहतरीन कदम है।
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