संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों से आजाद हुए ईरान ने दिए खतरनाक संकेत, जानें मध्य पूर्व में कैसे रहेंगे हालात
बीते 18 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN Security Council) के रिजोल्यूशन 2231 के तहत ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों की सीमा समाप्त हो गई। इसके बाद अब ईरान पारंपरिक हथियार खरीदने और बेचने के लिए आजाद हो गया है। जानें इसका क्या होगा असर...
साइप्रस, एएनआइ। बीते 18 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN Security Council) के रिजोल्यूशन 2231 के तहत ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों की सीमा समाप्त हो गई। इसके बाद अब ईरान पारंपरिक हथियार खरीदने और बेचने के लिए आजाद हो गया है। जानकार इसे अमेरिका के खिलाफ ईरान की एक बड़ी डिप्लोमेटिक जीत बता रहे हैं। इस घटनाक्रम के चलते खाड़ी के कई देश चिंतित हैं। कई देशों ने सुरक्षा परिषद को ईरान पर लगाए गए हथियार प्रतिबंध की मियाद को आगे बढ़ाए जाने का समर्थन किया था।
इस प्रतिबंध के हटने से ईरान टैंक, हेलिकॉप्टर, बख्तरबंद वाहन, लड़ाकू विमान और हैवी अर्टिलरी यानी तोपें इत्यादि की खरीद बिक्री कर सकता है। अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि ईरान को हथियारों की बिक्री अभी भी संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों (United Nations Resolutions) का उल्लंघन करती है। अमेरिका ने ऐसे सौदों में शामिल व्यक्तियों और संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी है लेकिन दूसरे देशों के समर्थन के बिना अमेरिकी प्रतिबंधों का असर केवल आंशिक ही रहेगा।
बर्लिन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर पीस रिसर्च एंड सिक्योरिटी पॉलिसी (Institute for Peace Research and Security Policy) के वरिष्ठ शोधकर्ता ओलिवर मीयर (Oliver Meier) का कहना है कि ईरान को पारंपरिक हथियारों के स्थानान्तरण पर सीमित प्रभाव पड़ेगा। गौरतलब है कि बीते 14 अक्टूबर को ही ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा था कि अब ईरान अपने हथियारों को किसी को भी बेच सकता है जिसे वह पसंद करता है और किसी से भी हथियार खरीद सकता है।
सनद रहे बीते 19 अक्टूबर को ईरानी रक्षा मंत्री आमिर हातमी मास्को रवाना हुए थे। रिपोर्टों के मुताबिक, वह रूस से S-400 सिस्टम, टी-90 टैंक, सुखोई-57 स्टील्थ फाइटर जेट और कई अन्य मिसाइल सिस्टमों की खरीद पर बातचीत करने वाले थे। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि ईरान हथियारों को खरीदने के बजाए आर्म्स की बिक्री पर ज्यादा जोर देगा। ईरानी सरकार भी स्पष्ट कर चुकी है कि उसकी योजना खरीदार बनने की नहीं है। उक्त बयान यह बताने के लिए काफी हैं कि ईरान चीन और रूस जैसे देशों का एक बड़ा हथियार खरीदार नहीं बनने वाला है।
यही नहीं ईरान का रक्षा बजट भी प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले छोटा है। लेकिन यदि ईरान अपनी सैन्य क्षमता को और हथियारों के साथ मजबूती देता है तो इससे मध्य पूर्व में हथियारों की खतरनाक होड़ बढ़ेगी। अमेरिका, यूरोपीय यूनियन के देश और दूसरे हथियार आपूर्तिकर्ता ईरान के प्रतिद्वंद्वियों को ज्यादा अत्याधुनिक हथियारों की आपूर्ति करेंगे। ईरान की नीतियां भी किसी से छिपी नहीं हैं। यही नहीं रूस और चीन भी अच्छी तरह से जानते हैं कि अमेरिका ईरान को हथियारों की बिक्री के बारे में काफी संवेदनशील है। इसे देखते हुए इसकी संभावना कम ही है कि रूस और चीन ईरान को परिष्कृत हथियार बेचेंगे।