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US प्रतिबंधों से एक और देश बर्बादी की कगार पर, 25000 में बिक रही रोटी, वेनेजुएला जैसे हालात

अमेरिकी प्रतिबंधों से इस देश में भुखमरी जैसे हालात हैं। खाने-पीने की चीजें कम से कम तीन-चार गुना महंगी हो चुकी हैं। जानें- स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया और कैसे जूझ रहा ये देश।

By Amit SinghEdited By: Published: Wed, 03 Jul 2019 01:08 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jul 2019 01:25 PM (IST)
US प्रतिबंधों से एक और देश बर्बादी की कगार पर, 25000 में बिक रही रोटी, वेनेजुएला जैसे हालात
US प्रतिबंधों से एक और देश बर्बादी की कगार पर, 25000 में बिक रही रोटी, वेनेजुएला जैसे हालात

नई दिल्ली, एजेंसी। United States (US) की दादागीरी ने एक और समृद्ध देश को बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया है। अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से इस देश की अर्थ व्यवस्था इतनी खस्ताहाल हो चुकी है कि यहां लोगों को पेट भरने और पीने के पानी के लिए भी जूझना पड़ रहा है। यहां 25000 की एक रोटी बिक रही है। अर्थव्यवस्था के मामले में इस देश की स्थिति भी वेनेजुएला जैसी होने को है। बस अंतर इतना है कि इस देश के लोग अमेरिका के खिलाफ एकजुट हैं और सरकार देशवासियों को राहत पहुंचाने के लिए हर संभव मदद कर रही है।

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यहां हम बात कर रहे हैं अकूत तेल भंडार वाले देश ईरान की। इस देश की कुल राष्ट्रीय आय का आधा हिस्सा कच्चे तेल के निर्यात से हुआ करता था। अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से ईरान की तेल निर्यात से होने वाली आय लगभग बंद हो चुकी है। अपने परमाणु कार्यक्रमों की वजह से ईरान को लगभग 40 साल से लगातार विभिन्नत तरह के अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। 12 जून 2019 को अमेरिकी ड्रोन को मार गिराने के बाद ईरान पर प्रतिबंध और कड़े कर दिए गए हैं। दरअसल, अमेरिका नहीं चाहता है कि ईरान परमाणु शक्ति बने। अमेरिका के अनुसार, ईरान का परमाणु शक्ति बनना पूरी दुनिया के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।

40 साल में सबसे खराब दौर में ईरानी अर्थव्यवस्था
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से ईरान की अर्थव्यवस्था अपने 40 साल के इतिहास में सबसे खराब दौर से गुजर रही है। इसका असर ईरान के आम लोगों और उनकी दैनिक जरूरतों पर भी पड़ रहा है। खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के कारण ईरान में इन दिनों महंगाई चरम पर है। एक रोटी जो साल भर पहले तक 1000 ईरानी रियाल (1.64 रुपये) में मिलती थी, आज उसकी कीमत 25000 ईरानी रियाल (40.91 रुपये) हो गई है। इसी तरह खाने-पीने की अन्य चीजें भी कम से कम तीन से चार गुना तक महंगी हो चुकी हैं।

ईरान पर हमला करने वाला था अमेरिका
12 जून को अमेरिकी सर्विलांस ड्रोन गिराए जाने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर हमले का आदेश दे दिया था, लेकिन अंतिम क्षणों में वह इससे पीछे हट गए। उन्होंने इस संबंध में ट्वीट कर कहा था, 'मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है। मैंने हमले को दस मिनट पहले रोक दिया।' ड्रोन को गिराने के बाद ईरान ने दावा किया था कि यह जासूसी ड्रोन उसके वायु क्षेत्र में उड़ रहा था। वहीं अमेरिका का कहना था कि ड्रोन अंतरराष्ट्रीय वायु क्षेत्र में था। इस ड्रोन की कीमत 13 करोड़ डॉलर (करीब 900 करोड़ रुपये) थी। ट्रंप ने पहले ईरान में कुछ लक्ष्यों जैसे रडार और मिसाइल ठिकानों पर हमले की मंजूरी दी थी। हालांकि, हमले से ठीक पहले उसी शाम फैसले को रद कर दिया गया था। हालांकि, ऑब्‍जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का कहना है कि यूएस कांग्रेस नहीं चाहती है कि अमेरिका ईरान से किसी भी युद्ध में फंसे। इतना ही नहीं, राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप भी कहीं न कहीं युद्ध नहीं चाहते हैं। इसको लेकर उनकी कोई नीति भी अब तक साफ नहीं हुई है।  

तेल टैंकरों पर हमले से बढ़ी तनातनी
होर्मुज जलडमरूमध्य (स्ट्रेट) के पास ओमान की खाड़ी में गत 13 जून को दो तेल टैंकरों को निशाना बनाया गया था। इस के लिए अमेरिका ने ईरान को जिम्मेदार ठहराया था, जबकि ईरान ने अपना हाथ होने से इनकार किया था। इसी क्षेत्र में गत 12 मई को भी चार तेल टैंकरों को निशाना बनाया गया था। तब सऊदी अरब ने हमले में ईरान का हाथ बताया था।

पश्चिम एशिया में तैनात हैं अमेरिकी युद्धपोत
ईरान से खतरे के मद्देनजर मई 2019 से ही पश्चिम एशिया में कई अमेरिकी युद्धपोत और एक विमानवाहक पोत तैनात हैं। अमेरिका ने यहां बमवर्षक विमान और मिशाइलें भी तैनात कर रखी हैं।

भारत को भी झेलने पड़े थे ऐसे प्रतिबंध
यहां यह भी जानना जरूरी है कि ईरान से पहले कुछ इसी तरह के प्रतिबंध भारत को भी झेलने पड़े थे। 1998 में बेहद गोपनीय तरीके से पोखरण परमाणु परीक्षण कर भारत ने अमेरिका समेत पूरी दुनिया को चौंका दिया था। ईरान के पहले अमेरिका, भारत के भी परमाणु शक्ति बनने के खिलाफ था। अब अमेरिका ने ईरान से तेल का आयात पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। हालांकि, ईरान के पास तेल का अकूत भंडार है और उसके पास तेल की अनाधिकारिक बिक्री के रास्ते अब भी खुले हुए हैं।

US की देन है वेनेजुएला का राजनीतिक-आर्थिक संकट
मालूम हो कि लैटिन अमेरिकी देश वेनेजुएला दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। कभी दुनिया का सबसे खुशहाल रहा ये देश भी अमेरिकी प्रतिबंधों और राजनीतिक दखलअंदाजी की वजह से लंबे समय से राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। कई वर्षों से आर्थिक संकट से जुझ रहे वेनेजुएला में संकट तब और गहरा गया जब मौजूदा राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्ष के जुआन गुएडो ने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया। जुआन गुएडो के इस विद्रोह को अमेरिका व यूरोप के कई देशों ने समर्थन दे दिया। हालांकि, रूस और चीन मौजूदा राष्ट्रपति मादुरो के साथ हैं। इस वजह से इस देश में भीषण राजनीतिक संकट पैद हो गया। दोनों नेताओं के समर्थन में वेनेजुएला में लंबे समय से गृह युद्ध जैसे हालात चल रहे हैं। काफी संख्या में यहां के लोग पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते वेनेजुएला में तेल का निर्यात लगभग पूरी तरह से ठप है और महंगाई चरम पर है। जानकारों के मुताबिक, वेनेजुएला में मुद्रास्फीति दर अगले साल तक एक करोड़ को पार कर जाएगी।

मौजूदा संकट से ऐसे निपट रहा ईरान
ईरान के मौजूदा संकट से निपटने के लिए सरकार ने निम्न व मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए रियायती दरों पर खाने-पीने की चीजों की आपूर्ति की व्यवस्था कर रखी है। इससे लोगों को काफी राहत है। खाने-पीने के उत्पादों की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने 68000 ऐसे व्यापारियों को लाइसेंस जारी कर दिया है, जो ट्रक या खच्चरों के जरिए इराक से खाने-पीने का सामान ला रहे हैं। ईरान की सरकार ने इनके लिए सीमा शुल्क पूरी तरह से खत्म कर दिया है।

अमेरिकी प्रतिबंध पर ईरानी नागरिकों की प्रतिक्रिया
प्रतिबंधों और तेल से होने वाली आय बंद होने की वजह से एक साल में डॉलर के मुकाबले ईरानी रियाल की कीमत तीन गुना से ज्यादा गिरी है। ईरानी रियाल और डॉलर के बीच इस तरह का रिश्ता है कि एक बढ़ता है तो दूसरा गिरता है। मतलब डॉलर जितना मजबूत होगा, ईरानी रियाल उतना ही कमजोर होता जाएगा। ईरान में इस वक्त मुद्रास्फीति दर 37 फीसद पहुंच चुकी है। अमेरिकी प्रतिबंधों को ईरानी सरकार ही नहीं, वहां के आम लोग भी अनुचित मानते हैं। ईरानी लोग अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सनकी तानाशाह मानते हैं, जो बिना सोचे-समझे फैसले लेते हैं।

ईरान-इराक युद्ध से भी खराब हालात
ईरान के मौजूदा हालात 1979 की इस्लामी क्रांति से भी खराब हैं। इस्लामी क्रांति के दौरान ईरान-इराक युद्ध अपने चरम पर था। ईरान पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका था। उस वक्त भी ईरानी नागरिक भविष्य को लेकर इतने चिंतित नहीं थे, जितना की आज अमेरिकी प्रतिबंधों से चिंतिंत हैं।

ट्रंप ने फिर दी ईरान को चेतावनी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को एक बार फिर चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि अमेरिका, ईरान के साथ बहुत बुरा करने की स्थिति में है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ईरान को कभी भी परमाणु हथियार तैयार नहीं करने देगा। अमेरिका ने ये चेतावनी तब दी है, जबकि सोमवार को ईरान ने 2015 की न्यूक्लियर डील से खुद को अलग करने की घोषणा की थी। अमेरिका का आरोप है कि ईरान 2015 की न्यूक्लियर डील में तय सीमा से अधिक यूरेनियम जुटा रहा है। इसके बाद सोमवार को ही ट्रंप ने इंटरनेशल मीडिया से बातचीत में ये चेतावनी जारी की थी।


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