शारजाह में कैदियों सा जीवन बिता रहा एक भारतीय परिवार
भारतीय परिवार में सात लोग हैं, जिनमें से केवल चार सदस्यों के पास ही पासपोर्ट व वीजा हैं।
दुबई, प्रेट्र। शारजाह में एक भारतीय परिवार कैदियों सा जीवन बिता रहा है। परिवार में सात लोग हैं, जिनमें से केवल चार सदस्यों के पास ही पासपोर्ट व वीजा हैं। पति भारतीय मूल से है तो पत्नी श्रीलंका की। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि करें तो क्या।
खलीज टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि 60 वर्षीय मधुसूदानन केरल से हैं। उनकी 55 वर्षीय पत्नी रोहिणी श्रीलंका की हैं। परिवार में चार लड़कियां अशवाथी (29), संगीता (25), शांति (23), गौरी (22) व एक पुत्र मिथुन (21) है। मधुसूदानन 1979 में एक कामगार के तौर पर भारत से यूएई आए थे। रोहिणी से उनका विवाह 1988 में हुआ। दुर्भाग्य से उनका सामना पहली बार इसके तीन साल बाद हुआ। जब उनकी नौकरी चली गई। 1989 में पहली लड़की का जन्म हुआ तो उनकी दूसरी नौकरी भी जाती रही। वह बेटी के पासपोर्ट के लिए आवेदन भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि वह खुद गैरकानूनी तौर पर वहां रह रहे थे। कुछ दिनों बाद उन्हें नौकरी तो मिल गई, लेकिन पत्नी को काम से हटा दिया गया।
1992 में उनके घर में दूसरी बेटी का जन्म हुआ। दंपती का कहना है कि एक संस्था की मदद से उन्होंने किसी तरह से चार बच्चों के लिए पासपोर्ट का जुगाड़ कर लिया। केवल सबसे बड़ी बेटी को यह सुविधा नहीं मिल सकी है। उनका कहना है कि 2003, 2007 व 2013 में उन्हें जनरल एमनेस्टी के जरिये अपने वतन लौटने का मौका दिया गया था। उनका कहना है कि वह परिवार को बिखरने से बचाना चाहते हैं। मधुसूदानन का कहना है कि वह तो भारत में जाकर बस जाएंगे, लेकिन पत्नी का क्या होगा। वह तो श्रीलंका की रहने वाली है। उसके पास भारतीय पासपोर्ट भी नहीं है। बच्चे मां के बगैर नहीं रह सकते।
फिलहाल दंपती यूएई सरकार से गुहार लगा रहा है कि उन्हें पासपोर्ट व वीजा जारी किए जाएं। उनका कहना है कि हालात इतने ज्यादा बदतर हो चुके हैं कि वह एक ब्रेड के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। कोई भी बच्चा कभी स्कूल ही नहीं जा सके, जिससे उन्हें काम मिलने का सवाल ही नहीं होता। रोहिणी ने बच्चों को घर पर इतनी शिक्षा तो दे रखी है कि वो अनपढ़ न कहे जाएं, लेकिन काम के लिए स्कूली सर्टिफिकेट तो जरूरी हैं?