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युद्ध के मुंहाने पर अमेरिका और ईरान, वे घटनाएं जिन्‍होंने किया 'आग में घी' डालने का काम

अमेरिका (America) और ईरान (Iran) के बीच इन दिनों तनाव इतना बढ़ गया है कि दोनों युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं। उन घटनाओं पर एक नजर जिनकी वजह से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 23 Jun 2019 08:59 AM (IST)Updated: Sun, 23 Jun 2019 09:09 AM (IST)
युद्ध के मुंहाने पर अमेरिका और ईरान, वे घटनाएं जिन्‍होंने किया 'आग में घी' डालने का काम
युद्ध के मुंहाने पर अमेरिका और ईरान, वे घटनाएं जिन्‍होंने किया 'आग में घी' डालने का काम

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। अमेरिका (America) और ईरान (Iran) के रिश्ते हमेशा से तल्ख रहे हैं, लेकिन इन दिनों तनाव इतना बढ़ गया है कि दोनों युद्ध के मुंहाने पर खड़े हैं। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे (Shinzo Abe) के राजदूत बनकर तेहरान जाने की कवायद भी फेल हो चुकी है। ईरान द्वारा अमेरिकी ड्रोन (American Drone) मार गिराने के बाद अमेरिका हमला करने जा रहा था कि अंतिम समय में खुद को रोका। चिंगारी सुलग उठी है। वैश्विक मामलों पर गहरी नजर रखने वालों की मानें तो कभी भी यह ज्वालामुखी के धधक उठने का सबब बन सकती है। आइए उन घटनाओं पर नजर डालते हैं जिनकी वजह से पश्चिम एशिया में अस्थिरता का माहौल बढ़ता ही जा रहा है।

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परमाणु करार तोड़ ट्रंप ने की शुरुआत
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय ईरान और अमेरिका के बीच की गई परमाणु समझौते को डोनाल्ड ट्रंप (US President Donald Trump) ने आठ मई, 2018 को तोड़ दिया। ऐसा कर उन्होंने अपने चुनावी वायदे को पूरा भी किया। इस कदम ने दुनिया के ताकतवर देशों के बीच एक तनाव पैदा करने का काम किया। हालांकि, अमेरिका के डील से हटने के बाद भी फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, चीन और ईरान ने इस करार से बंधे रहने का फैसला किया था।

ईरान पर प्रतिबंधों के साथ बढ़ा तनाव
ईरान की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से सात अगस्त, 2018 को अमेरिकी प्रशासन ने वे सभी प्रतिबंध फिर से उस पर लगा दिए जिन्हें परमाणु करार के तहत हटा लिया गया था। इसके बाद से ही अमेरिका और ईरान में तनातनी बनी हुई है। ईरान ने कहा है कि वह अमेरिका की ओर से आने वाले हर खतरे का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है।

आइजीआरसी आतंकी संगठन घोषित, तल्खी और बढ़ी
अमेरिका ने आठ अप्रैल, 2019 को ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉप्र्स (आइजीआरसी) को आतंकी संगठन घोषित किया। यह पहली बार था जब किसी दूसरे देश के सरकारी सुरक्षा एजेंसी के साथ ऐसा किया गया हो। बदले में ईरान ने भी अमेरिकी सेना को आतंकी समूह की संज्ञा दी। इससे तल्खी और बढ़ी।

तेल टैंकरों पर हमले ने किया आग में घी का काम
तेल व्यापार के सबसे अहम जलमार्ग होरमूज की खाड़ी में 13 मई, 2019 को चार अमेरिकी तेल टैंकरों पर हमला किया गया। मेरिका के सुरक्षा सलाहकार बॉलटन ने इसके लिए ईरान को दोषी बताया लेकिन ईरान ने आरोपों को खारिज कर दिया। इसके बाद 24 मई को अमेरिकी प्रशासन ने इस क्षेत्र में अपनी स्थिति और मजबूत करने के उद्देश्य से 1500 और सैनिकों को भेजने का फैसला किया।

ईरान ने ड्रोन मार गिराया
ईरान ने 20 जून को अमेरिका का ड्रोन मार गिराया। दोनों देशों ने इस बात की पुष्टि तो की लेकिन अमेरिका का कहना था कि जब अंतरराष्ट्रीय जल सीमा पर उनका ड्रोन था, तब उसे गिराया गया जबकि ईरान ने दलील दी कि उसकी वायु सीमा में प्रवेश करने पर ही ड्रोन को निशाना बनाया गया। ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्बास मौसवी ने कहा है कि हम अपनी सीमा की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। अमेरिका चाहे कोई भी फैसले करे लेकिन ईरान अपनी सीमाओं का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं करेगा। हम हर खतरे का जवाब देने को तैयार हैं।

ईरान का जवाबी हमला होगा घातक
'अमेरिका को यह इल्म है कि अगर वह ईरान पर हमला करता है तो ईरान का जवाबी हमला कितना घातक होगा। ईरान इस बार अमेरिका को जवाब देने के साथ ही उसके यूएई जैसे मित्र देशों को भी निशाना बना सकता है। वह यह जोखिम नहीं उठा सकते।'
- मोहम्मद मरांडी, अमेरिकन स्टडीज डिपार्टमेंट के प्रमुख, यूनिवर्सिटी ऑफ तेहरान

ट्रंप के एजेंडे में अभी 2020 का चुनाव
'ट्रंप के एजेंडे में अभी 2020 का चुनाव है। वे एक और टर्म चाहते हैं। उन्होंने चुनाव के दौरान किए वादे निभाए हैं। चाहें परमाणु करार तोड़ना हो और आर्थिक प्रतिबंधों से ईरान की कमर तोड़नी हो। अब ऐसे में वह युद्ध कर खाड़ी क्षेत्र में कोई अस्थिरता पैदा करना नहीं चाहते। युद्ध से हमलावर देश की अर्थव्यवस्था, स्थिरता और विकास की गति भी बाधित होती है। वह ऐसा कर कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहते।'
- महजूब जवेरी, निदेशक, गल्फ स्टडीज सेंटर, कतर यूनिवर्सिटी

...तो लड़ना ही पड़ेगा युद्ध
'दोनों देश समझते हैं कि वे जिस मुहाने पर खड़े हैं, वहां सर्जिकल स्ट्राइक जैसे ऑपरेशंस से बात नहीं बनेगी। हथियार उठता है तो युद्ध लड़ना ही पड़ेगा। ऐसे में जो हालात हैं, उसमें इन विकल्पों को छोड़ अगर कूटनीति के रास्ते को अपनाया जाए तो वह ज्यादा कारगर साबित होगा, दोनों के लिए।'
- एंड्रिएस क्रेग, लेक्चरर, स्कूल ऑफ सिक्योरिटी स्टडीज, किंग्स कॉलेज लंदन

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