इराक की गलियों का साधारण-सा गुंडा जानें कैसे बना बर्बर आतंकी संगठन का क्रूर सरगना
1971 में उत्तरी बगदाद के समारा कस्बे के तोबची नामक बेहद पिछड़े इलाके में बगदादी पैदा हुआ। इसके बचपन का नाम अवाद अल समार्राई था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अबू बकर अल बगदादी और आइएस। जितना क्रूर सरगना उतना ही बर्बर संगठन। अमेरिकी स्पेशल ऑपरेशन में मारा गया बगदादी दुनिया में आतंक का सबसे बड़ा नाम बन गया था। इसकी विचारधारा और भाषण कला से प्रभावित होकर दुनिया के कोने-कोने से युवा इस आतंकी संगठन के लड़ाके बनते गए। इराक की गलियों का साधारण-सा गुंडा सरीखा यह सख्स अपनी क्रूरता और धार्मिक कट्टरवाद के चलते दुनिया का सबसे खतरनाक आदमी बन गया।
शुरुआती जीवन
1971 में उत्तरी बगदाद के समारा कस्बे के तोबची नामक बेहद पिछड़े इलाके में बगदादी पैदा हुआ। इसके बचपन का नाम अवाद अल समार्राई था। इसके परिवार वाले सुन्नी इस्लाम के सलाफी स्कूल के उपासक थे। अबू 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के दौरान इस्लामिक विद्वान था। उसी अराजक दौर में उसने अपने करीब 30 साथियों के साथ अमेरिकी नीतियों के खिलाफ एक समूह बनाकर सशस्त्र संघर्ष शुरू किया।
अमेरिकी फौजों ने जेल में डाला
2005 में अमेरिकी फौजों ने बगदादी को दक्षिणी इराक में पकड़ा। वह चार साल जेल में रहा। उसी दौरान जेल में ही वह अलकायदा के अन्य नेताओं के संपर्क में आया। 2010 में वह इराक में अलकायदा का सबसे बड़ा नेता बनकर उभरा।
संगठन का मकसद
इसका मकसद इराक और सीरिया के सुन्नी बहुल हिस्सों को मिलाकर एक इस्लामिक राष्ट्र बनाना था। सीरिया में शिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बशर अल असद सत्ता में हैं। यह समुदाय सीरिया में अल्पसंख्यक है। बहुसंख्यक सुन्नी समुदाय लंबे समय से सत्ता से बाहर है। मार्च, 2013 में इसने सीरियाई शहर रक्का पर नियंत्रण कर लिया। आइएस के कब्जे में आने वाली यह पहली प्रांतीय राजधानी थी। जनवरी, 2014 में इसने इराकी शिया नेतृत्व और अल्पसंख्यक सुन्नी समुदाय के बीच तनाव का फायदा उठाते हुए सुन्नी शहर फालुजा पर नियंत्रण कर अपने सैन्य अभियान को धार दी। तुर्की और सीरियाई सीमा के निकटवर्ती शहरों पर इसका नियंत्रण हुआ। इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल और तिकरित पर कब्जा इसकी अब तक की सबसे सैन्य सफलताएं रहीं।
खलाफत साम्राज्य की मंशा
सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान अलकायदा से अलग होकर 2013 में अबू बकर ने इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आइएसआइएस) का गठन किया। इसको इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट के नाम से भी जाना जाता है। बाद में यह आतंकी इस्लामिक स्टेट नाम से चर्चित हुआ। इसका आशय एक ऐसे इस्लामी शासन से है जो सभी शक्तियों से लैस राजनीतिक-धार्मिक नेता यानी खलीफा द्वारा शासित हो। खलीफा को मुहम्मद साहब के प्रतिनिधि और सभी मुस्लिमों के नेता के रूप में देखा जाता है। आखिरी खिलाफत शासन को 1924 में तुर्की में समाप्त किया गया था। हालांकि उसको बचाने के लिए खिलाफत आंदोलन भी चलाया गया था।
उदय की वजह
2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला कर सद्दाम हुसैन को अपदस्थ कर दिया। देश के अल्पसंख्यक सुन्नी समुदाय के रहनुमा सद्दाम की तानाशाही के दौरान सुन्नियों का वर्चस्व था। उनकी पराजय के साथ ही वह वर्चस्व समाप्त हो गया। 2006 में देश के बहुसंख्यक शिया समुदाय के नूरी अल मलीकी को प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्होंने धीरे-धीरे सुन्नियों की सत्ता में पहुंच के सारे रास्ते बंद करने शुरू कर दिए। उनकी राजनीतिक ताकत को पूरी तरह खत्म करने की कोशिश की गई। उन्होंने राजनीतिक सहयोगियों को सैन्य पद देने शुरू कर दिए।
2011 में अमेरिकी सेना के जाने के बाद नूरी अल मलीकी ने गैर शियाओं को पूरी तरह हाशिये पर डाल दिया। इससे जातीय कुर्द भी भड़के और सुन्नियों में पहले से ही व्याप्त असंतोष उबलने लगा। उनकी छवि एक विभाजक नेता की बनी जो विभिन्न जातीय समूहों में बंटे देश को एकता के सूत्र में बांधने में नाकाम रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि असंतुष्ट सुन्नी समुदाय आइएसआइएस के पूर्ववर्ती अलकायदा से जुड़ने लगा। यही वजहें अबू बकर अल बगदादी और उसके संगठन आइएस को खाना और पानी मुहैया कराती रहीं।
जुल्म की दास्तां
इराक और सीरिया के एक चौथाई हिस्से को शामिल करते हुए बगदादी ने 2014 में इस्लामिक स्टेट या खिलाफत साम्राज्य घोषित किया। अपने मंसूबे को हकीकत बनाने के लिए उसने पांचों महाद्वीपों में हमले की रणनीति बनाई। पश्चिम एशिया के सबसे प्राचीन धर्म को मानने वाले यजीदी समुदाय का नरसंहार करना शुरू किया। उत्तर पश्चिम इराक के सिंजर पर्वतीय इलाके में इस समुदाय के हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इनकी महिलाओं को या तो मार दिया गया या फिर उन्हें यौन दासी बना लिया गया।
विदेशियों के सिर कलम
इस दुर्दांत संगठन के हाथ कोई विदेशी नागरिक लग जाता था, तो बातचीत के बाद जिंदा छोड़ने की गुंजायश कम ही रहती थी। अंतरराष्ट्रीय दबावों की परवाह किए बिना सिर कलम करने में यह संगठन देर नहीं करता था।
2.5 करोड़ डॉलर का ईनाम
बगदादी के पकड़े जाने पर अमेरिका ने 2.5 करोड़ डॉलर का ईनाम रखा था। यह ईनामी राशि अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन और उसके उत्तराधिकारी आयमन अल जवाहिरी के बराबर थी।
खाड़ी देशों से मदद
इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया को शुरुआती दौर में खाड़ी के अमीर सुन्नी देशों कुवैत और सऊदी अरब से सीरियाई शिया नेतृत्व बशर अल असद के खिलाफ मोर्चा लेने में आर्थिक मदद मिली।
मारे जा चुके दाएं-बाएं हाथ
अमेरिकी हवाई हमलों में बगदादी के सारे प्रमुख सिपहसलार मारे जा चुके हैं। इनमें अबू उमर अल शिशनी, अबू मुस्लिम अल तुर्कमानी, अबू अली अल-अनबारी, अबू सैयाफ और संगठन के प्रवक्ता अबू मोहम्मद अल अदनानी शामिल हैं।
दुनिया भर में हमले
समूह ने दुनिया के दर्जनों शहरों पर खुद की विचारधारा से प्रेरित हमले करवाने का दावा किया है। इनमें पेरिस, नीस, ओरलैंडो, मानचेस्टर, लंदन, बर्लिन शामिल थे। तुर्की, ईरान, सऊदी अरब और मिस्न के शहर तो हमेशा इसके निशाने पर ही रहते थे।
साम्राज्य का विस्तार
इस्लामिक स्टेट 2016 में अपने शीर्ष पर था। तब इसका साम्राज्य उत्तरी सीरिया से लेकर टिगरिस और यूफेरेट्स नदी घाटियों होते हुए बगदाद के बाहर तक फैला था।
खतरा टला नहीं
दुनिया भले ही यह दावा करे कि उसने बगदादी को खत्म करके उसके छद्म साम्राज्य को नेस्तनाबूद कर दिया है। समूह में युवाओं की भर्तियों के चैनल को तोड़ दिया गया है या लड़ाकों को दूसरे देशों में हमले के लिए प्रशिक्षित करने में मददगार तंत्र और बुनियादी सुविधाओं को ध्वस्त कर दिया गया हो, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस विचारधारा का इतनी आसानी से अंत नहीं होने वाला है। माना जाता है कि इसके स्लीपर सेल पूरी दुनिया में तैनात हैं। इसके कई लड़ाके छापामार युद्ध रणनीति अपनाने लगे हैं।
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