सलाइवा टेस्ट कोरोना के एसिम्टोमैटिक मरीजों की जल्द कर सकता है पहचान : अध्ययन
शोधकर्ताओं का मानना है कि खुद लिए गए सलाइवा के नमूनों से कोरोना वायरस के बिना लक्षण वाले मरीजों की जल्द और बड़े पैमाने पर जांच करने में मदद मिल सकती है। इससे वायरस के संपर्क में आने का खतरा कम रहता है।
टोक्यो, पीटीआइ। एक अध्ययन में सामने आया है कि खुद लिए गए सलाइवा के नमूनों की वजह से कोरोना वायरस के एसिम्टोमैटिक (बिना लक्षण वाले) मरीजों की जल्द और बड़े पैमाने पर जांच करने में मदद मिल सकती है। जर्नल, क्लिनिकल इंफेक्शियस डिजीज में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि जापान में लगभग 2,000 लोगों के नासॉफिरिन्जियल स्वैब और सलाइवा के नमूने लिए गए, जिनमें कोरोना वायरस के लक्षण नहीं थे। इसके बाद इन नमूनों का परिक्षण और तुलना की गई।
जापान के होकाइदो विश्वविद्यालय के टेकानोरी तेशिमा ने कहा कि समुदायों और अस्पतालों में कोरोना वायरस के प्रकोप को रोकने के लिए जरूरी है कि बिना लक्षण वाले संक्रमित व्यक्तियों का तेजी से पता लगाया जना चाहिए।
अधिकांश नमूनों का दो अलग-अलग तरह से परीक्षण किया गया। पहला कोरोना वायरस का सबसे सटीक पता लगाने वाले पीसीआर टेस्ट और दूसरा आमतौर पर अधिक तेजी से वायरस का पता लगाने वाले आरटी-एलएएमपी परीक्षण शामिल है। हालांकि इन दोनों के बीच निगेटिव और पॉजिटिव मामलों संख्या में ज्यादा फर्क नहीं है। इसमें से नासॉफिरिन्जियल स्वाब से की गई जांच में 77-93 फीसद संक्रमण का पता चला, जबकि सलाइवा की जांच में 83-97 फीसद संक्रमण का पता चला।
शोधकर्ताओं ने कहा कि दोनों ही परीक्षण बिना संक्रमण वाले 99.9 फीसद से अधिक लोगों की पहचान करने में सक्षम रहे। तेशिमा ने कहा कि नासॉफिरिन्जियल और सलाइवा नमूनों में सार्स-कोव -2 में उच्च संवेदनशीलता और विशिष्टता पाई जाती है। सलाइवा का परीक्षण आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले नासॉफिरिन्जियल स्वाब परीक्षण से ज्यादा असरदार है।
तेशिमा ने कहा कि सलाइवा का खुद लिया गया सेंपल परीक्षार्थियों के लिए दर्द रहित है और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह दूसरे लोगों से संपर्क को खत्म करता है, जिससे वायरस के संपर्क में आने का खतरा कम हो जाता है।