जापान में मोदी के हर कदम पर क्यों है ड्रैगन की नजर, जानें- क्या है चीन की चिंताएं
भारत-जापान की समीपता से आखिर क्यों चिंतित हो रहा है ड्रैगन। चीन और जापान की मीडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दौरे को किस रूप में देखती हैं।
नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल ]। जापान और भारत की निकटता ने एशिया प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण एशियाई राजनीति को काफी प्रभावित किया है। इस क्षेत्र में चीन की लगातार बढ़ती दिलचस्पी और दखलअंदाजी के चलते जापान और भारत की दोस्ती एक नया समीकरण पैदा कर सकती है। इसके अलावा केंद्र सरकार की मेक इन इंडिया के लिए भारत निश्चित रूप से जापान की ओर देखता रहा है। आइए जानते हैं कि भारत-जापान की निकटता से आखिर क्यों चिंतित हो रहा है ड्रैगन। इसके साथ यह देखेंगे कि चीन और जापान की मीडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दौरे को किस रूप में देखती हैं।
अौर करीब आ रहे जापान और भारत
एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्व और उसकी उत्तर कोरिया से निकटता ने जापान की चिंता बढ़ाई है। उधर, दक्षिण एशिया क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव और पाकिस्तान के साथ चीनी प्रेम ने भारत को भी चिंतित किया है। पाकिस्तान के जरिए दक्षिण एशिया में चीनी पहुंच ने इस क्षेत्र के परंपरागत शक्ति संतुलन को ध्वस्त किया है। इससे भारत की सामरिक चिंता बढ़ी है। यह भारत के लिए खतरे की घंटी है। इसके अलावा चीन की नजर नेपाल और भुटान पर भी है। जिस तरह से चीन दक्षिण एशिया के इन मुल्कों पर डोरे डाल रहा है, उससे दक्षिण एशिया का परंपरागत शक्ति संतुलन खतरे में पड़ गया है।
इस तरह से भारत-जापान की समान चिंताओं के चलते दोनों देश एक दूसरे के निकट आए हैं। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि दोनों देशों के मधुर संबंधों से इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को सीमित किया जा सकता है। इसके अलावा दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग का दायरा भी बढ़ रहा है। जापान के तकनीकी कुशलता का लाभ भारत को मिल सकता है। हालांकि, इन संबंधों को एक अन्य पहलू भी है जापान के अपने सांस्कृतिक और राजनीतिक कारण के चलते दोनों देशों के संबंध बहुत आगे नहीं बढ़ सके हैं।
मोदी की यात्रा पर जापानी मीडिया भी उत्साहित
जापानी मीडिया में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा को लेकर खासा उत्साह है। जापान टाइम्स के मुताबिक दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग के लिए यह एक बेहतर वक्त है। अमेरिका और भारत के मुधर संबधों का हवाला देते हुए अखबार ने लिखा है कि टु-प्लस-टु डयलॉग का जापान भी हिस्सा हो सकता है। अब इसकी उम्मीद बढ़ी है। इसके साथ ही परमाणु हथियारों के जरूरी उपकरण और इसकी टेक्नलॉजी भारत को देने पर भी दोनों देश राजी हो सकते है। इसके साथ यह भी उम्मीद बढ़ी है कि हिंद महासागर में भारत और अमेरिकी नौ सेना के बीच होने वाले सैन्य अभ्यास में जापान भी हिस्सा ले सकता है।
चीन ने खड़े किए कान, एशिया अफ़्रीका ग्रोथ कॉरिडोर पर नजर
उधर, चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि मोदी की यात्रा पर यहां की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की पैनी नजर है। चीन का पूरा ध्यान भारत की एशिया अफ़्रीका ग्रोथ कॉरिडोर योजना पर टिकी है। दरअसल, एशिया अफ़्रीका ग्रोथ कॉरिडोर योजना को चीन वन बेल्ट वन रोड योजना की प्रतिक्रिया के रूप में देखता है। चीन और पाकिस्तान की वन बेल्ट वन रोड योजना की भारत सख्त विरोधी रहा है। उसने इस योजना को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में काफी जोरशोर से उठाया है।
इसके अलावा चीन की नजर भारत और जापान के नए समुद्री मार्ग पर भी है। इस मार्ग के जरिए एशिया और प्रशांत महासागर के देशों को अफ़्रीका से जोड़ने की योजना है। चीन का मानना है कि भारत और जापान का यह कदम चीनी प्रभाव को कम करने के लिए हो सकता है। ग्लोबल टाइम्स चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माना जाता है।
दूसरे विश्व युद्ध के पहले जानी दुश्मन हुए चीन और जापान
दूसरे विश्व युद्ध के पहले चीन और जापान के संबंध तल्ख रहे हैं। दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध से पहले जापान और चीन के बीच हुए युद्ध में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। चीन अपनी इस हार को आज तक नहीं भूला सका है। इस जंग में जापान को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। चीन ने इसके बाद से ही उसे निचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। इसके अलावा जापान और अमेरिका की गाढ़ी दोस्ती भी चीन को अक्सर खटकती रहती है। ऐसे में जापान का भारत के साथ मधुर संबंधों की पहल उसे खटक सकती है।