नए परमाणु रिक्टर बनाने या पुराने को रिप्लेस करने की फिलहाल कोई योजना नहीं- जापान
जापान का कहना है कि उसकी पुराने परमाणु संयंत्रों को बदलने या नया संयत्र लगाने की कोई योजना नहीं है। आपको बता दें कि 2011 की सुनामी के बाद उसके कई परमाणु संयंत्रों को बंद कर दिया गया था।
टोक्यो (रायटर्स)। जापान फिलहाल नए न्यूक्लियर रिएक्टरों के निर्माण के बारे में कोई योजना नहीं बना रहा है। ये अहम बयान जापान के उद्योग मंत्री कोइची हागीउडा ने दिया है। पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा जापान की ऐसी कोई योजना नहीं है जिसमें पुराने न्यूक्लियर रिएक्टरों की जगह नए रिएक्टरों का निर्माण किया जाए। आपको बता दें कि जापान में फूमिओ किशिदा को नया प्रधानमंत्री बनाया गया है। योशिदे सुगा के इस्तीफा देने के बाद सोमवार को संसद के विशेष सत्र में किशिदा के नाम पर मुहर लगाई गई। उनकी सरकार में हागीउडा को उद्योग मंत्री बनाया गया है।
आपको बता दें कि जापान के मार्च 2011 में आई सुनामी और भूकंप से जापान का फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र नष्ट हो गया था। रूस के चर्नोबल हादसे के बाद फुकुशिमा दूसरे सबसे बड़े परमाणु हादसा था। गौरतलब है कि विश्व में जापान ही वो एक मात्र देश है जिसने परमाणु हमले का दंष भी झेला था। हालांकि इसके बाद भी जापान ने अपनी ऊर्जा पूर्ति को पूरा करने के लिए इसी ताकत का इस्तेमाल भी किया। वर्ष 2011 की सुनामी से पहले जापान में 30 प्रतिशत बिजली का उत्पादन परमाणु संयंत्रों से होता था।
हादसे के वक्त जापान में 54 परमाणु रिएक्टर थे। इनमें से 12 रिएक्टर स्थायी रूप से बंद कर दिए गए और अन्य को भी बंद करने की प्रक्रिया काफी समय से चल रही है। हालांकि ब्लूमबर्ग को दिए एक इंटरव्यू में फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के संचालक व जापान की सबसे बड़ी यूटीलिटी कंपनी टेपको के अध्यक्ष टोमोआकी कोबायाकावा ने कहा था कि बिना परमाणु ऊर्जा के देश 2030 तक कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन आधा करने का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता। उनका ये भी कहना था कि देश को परमाणु ऊर्जा की सख्त जरूरत है इसलिए बंद पड़े संयंत्रों को चालू करना चाहिए।
सुनामी और भूकंप से बर्बाद हुए फुकुशिमा संयंत्र से खतरा अब भी कम नहीं हुआ है। सरकार की कोशिश है कि इसमें मौजूद रेडियोएक्टिव हैवी वाटर को समुद्र में डाला जाए। इससे निकलने वाली पानी को संजो कर रखने के लिए अब जगह भी लगातार खत्म हो रही है। हालांकि इसके विरोध में देश के कई कोने से आवाज भी उठ रही है। इसके बावजूद सरकारी अपनी मजबूरी जता रही है। विरोध करने वालों का कहना है कि यदि ये पानी समुद्र में छोड़ा जाता है कि तो इससे समुद्री जीवन नष्ट हो जाएगा। इनका ये भी कहना है कि इसका प्रतिकूल प्रभाव पूरी दुनिया को देखना पड़ सकता है।