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तीन साल में 30 करोड़ किमी की दूरी तय करने के बाद अब रायगु पर उतरने की तैयारी

जापान का हायाबुसा-2 अंतरिक्ष यान अब पृथ्वी से 30 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित एस्टरॉयड (क्षुद्रग्रह) रायगु पर उतरने के लिए तैयार है। इस माह की शुरुआत में किसी भी दिन इस यान के रायगु पर उतरने की उलटी गिनती शुरू हो जाएगी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 02 Sep 2018 09:33 PM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2018 07:00 AM (IST)
तीन साल में 30 करोड़ किमी की दूरी तय करने के बाद अब रायगु पर उतरने की तैयारी
तीन साल में 30 करोड़ किमी की दूरी तय करने के बाद अब रायगु पर उतरने की तैयारी

नई दिल्‍ली (जागरण स्‍पेशल)। जापान का हायाबुसा-2 अंतरिक्ष यान अब पृथ्वी से 30 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित एस्टरॉयड (क्षुद्रग्रह) रायगु पर उतरने के लिए तैयार है। इस माह की शुरुआत में किसी भी दिन इस यान के रायगु पर उतरने की उलटी गिनती शुरू हो जाएगी। आपको बता दें कि रायगु तक पहुंंचने के लिए इस यान ने तीन साल की यात्रा की है। जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी ने रायगु से जीवन की उत्पत्ति से पर्दा उठाने वाले नमूने एकत्रित करने के लिए दिसंबर, 2014 में यह अभियान लांच किया था। छह साल तक चलने वाले इस अभियान का नाम फाल्कन पक्षी पर रखा गया है जिसे जापानी भाषा में हायाबुसा कहा जाता है।

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ऐसे होगी क्षुद्रगृह पर उतरने की तैयारी
वैज्ञानिकों का मानना है कि एस्टरॉयड सौरमंडल विकसित होने के शुरुआती समय में ही बन गए थे। रायगु पर जैविक पदार्थ, पानी और जीवन की उत्पत्ति के लिए जरूरी तत्व भारी मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं। वहां के नमूनों से पृथ्वी पर जीवन संभव होने के कारणों का पता लगाया जा सकता है। बड़े फ्रिज के आकार वाले हायाबुसा-2 में सोलर पैनल लगे हैं। अभी कुछ महीनों तक यह एस्टरॉयड से 20 किलोमीटर ऊपर रहकर उसका चक्कर लगाएगा और उतरने से पहले उसकी सतह का नक्शा तैयार करेगा। इसके बाद क्षुद्रग्रह के एक क्रेटर को ब्लास्ट कर मलबा जमा किए जाएंगे। इसके बाद बचे हुए करीब 18 महीने में यह एस्टरॉइड के नमूने (सैंपल) एकत्रित कर 2020 के अंत तक पृथ्वी पर लौट आएगा। 

वन बाय वन स्‍टेप
स्माल कैरी ऑन इंपैक्टर (SCI): यह रायगु पर एक क्रेटर बनाएगा। इसके बाद हायाबुसा क्रेटर के बनने के बाद वहां आए बदलाव को देखेगा। इसके बाद इस क्रेटर से यहां के सैंपल लिए जाएंगे।

नियर इंफ्रारेड स्‍पैक्‍ट्राेमीटर (NIRS3) एंड थर्मल इंफ्रारेड इमेजर: यहां से लिए गए सैंपल में मौजूद कंपोजिशन की जांच की जाएगी। इसके आधार पर ही इस छुद्रग्रह पर पानी की संभावनाओं का आंकलन और फिर जांच की जाएगी। इसमें लगे इमेजर यहां के तापमान की जानकारी लेंगे।

स्माल रोवर मिनरवा MINERVA-II: यह रोवर इस छुद्रग्रह पर उछलकर लगातार यहां की अलग-अलग जगहों से सैंपल कलैक्शन का काम करेगा।

स्माल लैंडर मस्कट: छुद्रग्रह पर उतरने के बाद यह केवल एक बार अपनी पोजीशन में बदलाव करेगा। यह इसकी सतह की बारीकी से जांच करेगा। इसमें फ्रांस का डीएलआर और जर्मनी का सीएनईएस लगा है।

विलंब से लॉन्‍च हुआ था हायाबुसा-2 
हायाबुसा 2 को सबसे पहले 30 नवंबर 2014 को लॉन्‍च किया जाना था, लेकिन कुछ गड़बड़ी की वजह से इसमें विलंब हुआ था, जिसके बाद यह 3 दिसंबर 2014 को लॉन्‍च किया गया था। जापान के स्‍पेस प्रोग्राम द्वारा इस मिशन को 2006 में एप्रूव किया गया था। इसके बाद 2009 में इस मिशन को पहली बार दुनिया के सामने रखा गया था। इस पूरे प्रोजेक्‍ट पर करीब 16.4 बिलियन येन का खर्च आएगा। इसका टारगेट रायगु था, जिसको 162173 JU3 के नाम से पहचाना जाता रहा हे। हायाबुसा 2 अपने तय समय पर इस क्षुद्रगृह पर पहुंचा। करीब डेढ़ वर्ष तक यह यहां पर अपने काम को अंजाम देगा और 2020 में वापस पृथ्‍वी पर लौट आएगा। हायाबुसा में गाइडेंस नेविगेशन सिस्‍टम के अलावा एल्‍टीट्यूड कंट्रोल सिंस्‍टम लगा है।

वीए-2 रोबोट 
क्षुद्रग्रह की सतह की जांच के लिए एमआइएनईआर वीए-2 नामक रोवर रोबोट और फ्रांस और जर्मनी द्वारा बनाए मोबाइल एस्टरॉइड सर्फेस स्काउट (मैस्कॉट) को उतारा जाएगा। उल्लेखनीय है कि जापान के वैज्ञानिकों ने इससे पहले हायाबुसा-1 लांच किया था। इस अभियान के दौरान ज्यादा नमूने नहीं जुटाए जा सके थे। बावजूद इसके वह किसी एस्टरॉयड से पृथ्वी पर नमूने लाने वाला पहला अभियान बना था। हायाबुसा-1 का सात साल लंबा अभियान 2010 में समाप्त हो गया था। ऑस्ट्रेलिया में इसमें आग लगी थी जिसके बाद वह रेगिस्तान में गिर गया था।

क्‍या होते हैं क्षुद्रगृह 
क्षुद्रग्रह या ऐस्टरौएड दरअसल, एक खगोलिय पिंड होते है जो ब्रह्माण्ड में विचरण करते रहते हे। यह आपने आकार में ग्रहो से छोटे और उल्का पिंडो से बड़े होते है। 1819 में पहली बार रग्यूसेप पियाजी ने सेरेस नामक क्षुद्रगृह को खोजा था। इस खोज से पहले इसको एक गृह माना जाता था। इनकी गति के कारण इन्‍हें आसानी से सितारों से अलग पहचाना जा सकता है। क्षुद्रगृह को अर्थ है 'तारा-जैसे, तारा-आकार'। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत क्षुद्रग्रह शब्‍द का प्रचलन शुरू हुआ था। 

क्षुद्रग्रह को खोजने का दावा
आपको यहां बता दें कि वर्ष 2017 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा) ने पहली बार हमारे सौर मंडल के बाहर से आए किसी क्षुद्रग्रह को खोजने का दावा किया है। वैज्ञानिकों का कहना था कि खोज से कुछ समय पहले यह हमारे सौरमंडल से गुजरा था। यह गहरे लाल रंग और सिगार के आकार का था। यह किसी अन्य सौरमंडल के तारों के बीच से आया था। वैज्ञानिकों ने इसे ‘ओउमुआमुआ’ नाम दिया था। इसकी लंबाई हमारे सौरमंडल में आज तक खोजे गए किसी भी क्षुद्रग्रह से बहुत ज्यादा है।

बड़ी खोज
18 अक्तूबर को हवाई में पैनएसटीएआरआरएस 1 टेलिस्कोप ने इसे कैद किया
400 मीटर चौड़ाई और इसका करीब 10 गुणा ज्यादा लंबाई है इस क्षुद्रग्रह की
40 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से गुजरा था हमारे सौरमंडल से
20 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर था पृथ्वी की कक्षा से गुजरते समय

बनेगा इतिहास
क्षुद्र ग्रह के पास पहुंच चुके हायाबुसा-2 यान से रयुगु क्षुद्र ग्रह पर दो अलग-अलग दिनों दो छोटे-छोटे रोबोट उतारे जाएंगे।
पहला रोबोट 21 दिसंबर को छोड़ा जाएगा। यह ग्रह की सतह पर पहुंचकर वहां की तस्वीरें भेजेगा।
जर्मनी और फ्रांस द्वारा निर्मित मैस्कट नामक दूसरा रोबोट तीन अक्टूबर को छोड़ा जाएगा। यह क्षुद्र ग्रह की सतह का परीक्षण करेगा। 


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