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रिश्तों की ऐतिहासिक डोर: सदियों पुराने हैं भारत और आसियान देशों के संबंध

69वां गणतंत्र इसलिए भी खास है कि आसियान के 10 देशों के राष्ट्राध्यक्ष भारतीय शौर्य, एकता, आर्थिक महाशक्ति के साक्षी बन रहे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 26 Jan 2018 01:21 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jan 2018 10:18 AM (IST)
रिश्तों की ऐतिहासिक डोर: सदियों पुराने हैं भारत और आसियान देशों के संबंध
रिश्तों की ऐतिहासिक डोर: सदियों पुराने हैं भारत और आसियान देशों के संबंध

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। गणतंत्र दिवस के मौके पर राजपथ पर भारत की आन बान और शान को पूरी दुनिया ने देखा। 69वां गणतंत्र इसलिए भी खास है कि आसियान के 10 देशों के राष्ट्राध्यक्ष भारतीय शौर्य, एकता, आर्थिक महाशक्ति के साक्षी बन रहे हैं। इन देशों का भारत सदियों पुराना संबंध रहा है। ये बात अलग है कि भारत के पड़ोस में होते हुए भी आर्थिक संबंध उतने प्रगाढ़ नहीं बन सके। भारत सरकार की लुक इस्ट पॉलिसी और एक्ट लुक इस्ट पॉलिसी ने इन देशों के साथ संबंध में मजबूती आई है। सिंगापुर के राष्ट्रपति ने मलय को बताते हुए कहा कि ये शब्द संस्कृत से ही निकला है जिसका अर्थ लॉयन सिटी होता है। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के रास्ते में स्थित होने की वजह से भारत, आशियान देशों के लिए किस तरह महत्पूर्ण है। इसमें दो मत नहीं कि आसियान देशों के साथ भारत के संबंध पहले से मजबूत हुये हैं। लेकिन हम भारत और आसियान देशों के बीच संबंधों की साक्षी बने बोरोबुदुर, अंगकोरवाट और इंडोनेशिया की करेंसी पर भगवान गणेश की तस्वीर के बारे में बात करेंगे और बताएंगे कि इन देशों के साथ रिश्ता क्यों है खास।

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बोरोबुदुर, भारत और आसियान

बोरोबुदुर दो शब्दों के जोड़ से उत्पन्न हुआ है। बोरो अर्थात् बड़ा और बुदुर अर्थात् बुद्ध, यानि बड़ा बुद्ध। जावा प्रदेश की भाषा में बुदुर का एक अर्थ पर्वत भी है। बड़े पर्वत का आभास कराता बोरोबुदुर मंदिर इस नामकरण पर खरा उतरता है। कुछ जानकारों का मानना है कि बोरो शब्द बौद्ध मठ अथवा बौद्ध विहार का अपभ्रंश है। बोरोबुदुर दो ज्वालामुखियों व दो नदियों के बीच स्थित है, इस कारण इसकी जमीन अत्यधिक उपजाऊ है।

बोरोबुदुर मंदिर इंडोनेशिया के जावा प्रांत में मगेलांग नगर में 9वीं शताब्दी का बौद्ध मंदिर है। यह मंदिर 6 वर्गाकार चबूतरों पर बना है जिनमें तीन चबूतरों का ऊपरी भाग वृत्ताकार है। इस मंदिर में बुद्ध की कुल 504 प्रतिमाएं हैं,जिनमें केंद्र में स्थित प्रमुख गुंबद के चारों ओर स्तूप वाली 72 बुद्ध प्रतिमाएं हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा और विश्व के महानतम बौद्ध मंदिरों में से एक है।

इस बौद्ध मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में शैलेंद्र राजवंश के दौरान हुआ था। मंदिर की बनावट में जावा की स्थापत्यकला की छाप स्पष्ट दिखाई देती है जो इंडोनेशिया की स्थानीय पंथ ती पूर्वज पूजा और बौद्ध अवधारणा की मेल है। मंदिर में गुप्त काल का भी प्रभाव दिखाई देता है। इस तीर्थस्थल की यात्रा स्मारक के नीचे से शुरू होती है। और स्मारक के चारों ओर बौद्ध धर्म के तीन प्रतीकात्मक स्तरों कामधातु(इच्छा की दुनिया), रूपध्यान( रूपों की दुनिया) और अरूपध्यान( निराकार दुनिया) से होते हुए शीर्ष पर पहुंचता है।

बुद्ध से संबंधित मुद्राएं जो यहाँ देखी जा सकतीं हैं वे कुछ इस तरह है।

भूमिस्पर्श मुद्रा – पृथ्वी साक्षी है, यह उनके महाज्ञान प्राप्ति का प्रतीक है।

वरद मुद्रा – दान व परोपकार, दानवीर बुद्ध का प्रतीक है।

अभय मुद्रा –साहस व निर्भयता, दर्शाता है कि बुद्ध हमारी रक्षा कर रहे हैं।

ध्यान मुद्रा – एकाग्रता व ध्यान, ध्यानमग्न बुद्ध

धर्म चक्र परिवर्तन मुद्रा – गतिमान धर्म चक्र, बुद्ध के सारनाथ में दिए पहले प्रवचन का प्रतीक है।

वितर्क मुद्रा – तर्क और पुण्य, तर्क का दूसरा पहलू जो बुद्ध आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

अंगकोर वाट मंदिर, भारत और इंडोनेशिया

कल का कंपूचिया आज है कंबोडिया 

पौराणिक काल का कंबोजदेश कल का कंपूचिया और आज का कंबोडिया है। पहले हिंदू रहा और फिर बौद्ध हो गया। कई कालखंड में 27 राजाओं ने राज किया। कोई हिंदू रहा, कोई बौद्ध। यही वजह है कि पूरे देश में दोनों धर्मों के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। भगवान बुद्ध तो हर जगह हैं। लेकिन शायद ही कोई ऐसी खास जगह हो, जहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से कोई न हो और फिर अंगकोर वाट की बात ही निराली है। ये दुनिया का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर है।

अंगकोर वाट मंदिर

विश्व विरासत में शामिल अंगकोर वाट मंदिर-समूह को अंगकोर के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने बारहवीं सदी में बनवाया था। चौदहवीं सदी में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने पर शासकों ने इसे बौद्ध स्वरूप दे दिया। बाद की सदियों में यह गुमनामी के अंधेरे में खो गया। एक फ्रांसिसी पुरातत्वविद ने इसे खोज निकाला। आज यह मंदिर जिस रूप में है, उसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का बहुत योगदान है। मगर इसके बारे में कई अलग-अलग कहानियां भी प्रचिलित हैं। जैसे मान्यता है कि देवराज इन्द्र ने अपने बेटे के लिए महल के तौर पर इस मंदिर का निर्माण करवाया था। वहीं 13वीं शताब्दी में एक चीनी यात्री का कहना था कि इस मंदिर का निर्माण महज एक ही रात में किसी अलौकिक सत्ता के हाथ से हुआ था। लेकिन असल में इस मंदिर का इतिहास बौद्ध और हिन्दू धर्मों से जुड़ा हुआ है।

एएसआई ने संरक्षण का काम किया

1986 से 93 तक एएसआई ने संरक्षण का काम किया था। अंगकोर वाट की दीवारें रामायण और महाभारत की कहानियां कहती हैं। सीताहरण, हनुमान का अशोक वाटिका में प्रवेश, अंगद प्रसंग, राम-रावण युद्ध, महाभारत जैसे अनेक दृश्य बेहद बारीकी से उकेरे गए हैं। अंगकोर वाट के आसपास कई प्राचीन मंदिर और उनके भग्नावशेष मौजूद हैं। इस क्षेत्र को अंगकोर पार्क कहा जाता है। अतीत की इस अनूठी विरासत को देखने हर साल दुनिया भर से दस लाख से ज्यादा लोग आते हैं।

आगोश में समेटे है सवा तीन सौ से ज्यादा मंदिर 

सियाम रीप क्षेत्र अपने आगोश में सवा तीन सौ से ज्यादा मंदिर समेटे हुए है। शिव और विष्णु के अलावा ब्रह्मा का ता प्रोम का ब्रह्मा मंदिर तो है ही, बायन का मंदिर एक मात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें धर्म बदलने पर मूर्तियों में बहुत तोड़-फोड़ हुई। इसको बनवाने वाला राजा जयवर्मन षष्टम शुद्ध बौद्ध था, इसलिए उसने बुद्ध की मूर्तियां बायन मंदिर में लगवाईं।

इंडोनेशिया की करेंसी पर गणेश की तस्वीर

इंडोनेशिया एक मुस्लिम राज्य है और वहां की 87.5 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम है जबकि 3 प्रतिशत हिंदू। इंडोनेशिया में कई जगह पर हिंदुत्व से जुड़े हुए साक्ष्य आसानी से मिल जाते हैं। हिंदू और मुस्लिम के बीच कोई फर्क नहीं किया जाता। इसका एक उदहारण देखने को मिला था जब जुलाई 2010 में एलके आडवाणी वर्ल्ड सिंधी कॉन्फ्रेंस के लिए जकार्ता गए थे। वहां हिंदूओं के प्रति मुस्लिम की इज्जत और मुस्लिम के प्रति हिंदू की इज्जत देखकर हैरान हो गए थे।

वहां भारत के साथ सांस्कृतिक संबंध को इंडोनेशियाई रुपिया के 20,000 के नोट से समझा जा सकता है। इस नोट पर भगवान गणेश की भी तस्वीर छपी है। इस नोट के पीछे के हिस्से पर बच्चों से भरी कक्षा की तस्वीर है। ऐसा माना जाता है कि इंडोनेशिया के द्वीप समूह में पहली शताब्दी में हिंदुत्व का जोर ज्यादा था। यही वजह है कि तभी से चली आ रही प्रथा के अनुसार अभी भी वहां हिंदू देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। वहां भगवान गणेश को कला, शास्त्र और बुद्धिजीवी का भगवान माना जाता है। ऐसे ही की हजर देवान्तर का इंडोनेशिया के स्वतंत्रता में अहम हिस्सा था और वो पढ़ाई के लिए जागरुकता फैलाने में तत्पर आगे रहते थे। नोट के पीछे बनी कक्षा की तस्वीर नोट की थीम शिक्षा को दर्शाती है।

पूरे इंडोनेशिया में रामायण और महाभारत की कहानी हर कोई जानता है।वहां के जकार्ता स्क्वेर में कृष्णा-अर्जुन के पुतले भी लगे हैं।इंडोनेशिया की सेना भी अपना रक्षक हिंदू भगवान हनुमान को मानते हैं। बाली टूरिज्म का लोगो भी भारतीय शास्त्रों में से ही लिया गया है। वहां के एक कॉलेज के लोगो पर भी भगवान गणेश हैं। इसके साथ ही एक और कथा प्रचलित है कि 1997 में कई एशियाई देशों की मुद्रा का अवमूल्यन हो रहा था। अवमूल्यन को रोकने के सभी प्रयास विफल रहे थे। किसी ने सुझाव दिया कि वे अच्छे भाग्य के लिए गणेश की छवि नोट पर लगाएं। सौभाग्य से यह काम किया गया और यह प्रथा तभी से कायम है। गणेश की छवि नोट पर छापी जाने लगी है और वहां के मूल निवासियों ने इसे स्वीकार कर लिया है।


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