उइगर मुस्लिमों के खिलाफ चीन के उत्पीड़न का सच आया सामने, जानें- क्या है मामला
चीन में गिरफ्तार हर पांचवां व्यक्ति शिंजियांग प्रांत का रहने वाला था। जबकि चीन की आबादी में यहां का हिस्सा सिर्फ दो फीसद है।
बीजिंग, एएफपी। चीन अपने पश्चिम उत्तरी शिंजियांग प्रांत में अल्पसंख्यक उइगर मुस्लिमों के उत्पीड़न को लेकर दुनिया भर में यूं ही बदनाम नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक चीन ने धार्मिक चरमपंथ और आतंकवाद को दबाने के नाम पर इस स्वायत्त क्षेत्र को कैदखाने में तब्दील कर दिया है।
स्थानीय अभियोजक दफ्तर के आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में यहां बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया। चीन में गिरफ्तार हर पांचवां व्यक्ति शिंजियांग प्रांत का रहने वाला था। जबकि, चीन की आबादी में यहां का हिस्सा सिर्फ दो फीसद है।
वर्ष 2017 के शिंजियांग वार्षिकांक के मुताबिक सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाने के आरोप में 2017 में 60,510 लोगों को गिरफ्तार किया गया। जबकि, एक दशक पहले यानी 2007 में यह संख्या मात्र 1,710 थी। 2017 में सामाजिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के 50 हजार के करीब मामले दर्ज किए गए थे। जबकि, 2007 में यह संख्या सिर्फ 1,764 थी।
एमनेस्टी इंटरनेशनल के चीनी शोधकर्ता पैट्रिक पून का कहना है कि सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तारियों में वृद्धि से साफ है कि उइगर और अन्य मुस्लिमों को निशाना बनाने के लिए न्यायिक व्यवस्था को भी हथियार बनाया गया।
मुस्लिमों खासकर उइगर मुसलमानों वाले शिंजियांग प्रांत में हाल के वर्षो में धार्मिक चरमपंथ और आतंकवाद को दबाने के लिए चीन ने सख्त कदम उठाए हैं। इसको लेकर दुनिया भर में चीन की निंदा भी होती है। लेकिन चीन अपनी नीति को सही ठहराता है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां गुपचुप तरीके से केस चलाकर लोगों को 20-20 साल कैद तक की सजा सुना दी जाती है और परिजनों को कुछ पता तक नहीं चलता।
शिंजियांग के हालात पर लिखने वाले प्रोफेसर डोनाल्ड सी. क्लार्क ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि यहां के जजों से निष्पक्ष न्याय की उम्मीद ही बेमानी है।
चीन में मानवाधिकरों पर काम करने वाली फ्रांसिस इव के मुताबिक अगस्त, 2016 में चेन क्यांगो की प्रांत के कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख बनने के बाद से गिरफ्तारियों में भारी वृद्धि हुई। विरोधियों के प्रति क्वांगो ने बहुत ही सख्त रवैया अपनाया था। वकील भी मानते हैं कि यहां आतंकवाद, खासकर अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों की सही सुनवाई तक नहीं होती। ऐसे मामलों में फैसला जज नहीं करते, बल्कि सरकार या कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से पहले से लिए गए फैसले सुनाते हैं।
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