गहरे समुद्र में भी बढ़ा रेडियोएक्टिव कार्बन का स्तर, समुद्री जीवों पर पड़ रहा हानिकारक असर
पिछली सदी में हुए ताबड़तोड़ परमाणु परीक्षणों के कारण वातावरण में रेडियोएक्टिव कार्बन की मात्रा बढ़ गई थी। जिसका असर समुद्र में कई किलोमीटर नीचे तक पहुंच गया है।
बीजिंग, पीटीआइ। इंसानों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण का असर समुद्र की गहराई तक उम्मीद से कहीं ज्यादा तेजी से पहुंच रहा है। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की सबसे गहरी समुद्री गर्त मानी जाने वाली मारियाना ट्रेंच के जीवों में रेडियोएक्टिव कार्बन की मौजूदगी पाई है। पश्चिमी प्रशांत महासागर में मारियाना द्वीप समूह से 200 किलोमीटर पूर्व में स्थित इस मारियाना ट्रेंच की गहराई करीब 11 किलोमीटर है। यह रेडियोएक्टिव कार्बन पिछली सदी में किए गए परमाणु परीक्षणों के कारण वातावरण में फैला था।
जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, समुद्र की सतह पर रहने वाले जीव वातावरण में होने वाले प्रदूषण से सीधे प्रभावित होते हैं। मरने के बाद ये जीव नीचे समुद्र के तल तक पहुंच जाते हैं। वहां समुद्री गर्त में रहने वाले जीवों के लिए यही मृत जीव भोजन होते हैं। इसी खाद्य श्रृंखला के जरिये वातावरण का प्रदूषण उम्मीद से कहीं ज्यादा जल्दी समुद्री गर्त तक पहुंच जाता है।
चाइनीज अकेडमी ऑफ साइंसेज के वैज्ञानिक निंग वांग ने कहा, 'रेडियोएक्टिव कार्बन वाले पानी को समुद्र के तल तक पहुंचने की प्रक्रिया में सैकड़ों साल लग जाते हैं। लेकिन खाद्य चक्र का हिस्सा बनकर यह कार्बन बहुत तेजी से वहां तक अपनी पहुंच बना लेता है।' एक अन्य वैज्ञानिक वीडोंग सन ने कहा, 'ऊपरी सतह और तल के बीच जैविक व्यवस्था के जरिये मजबूत चक्र बना हुआ है। इस चक्र के चलते इंसानों की आदत समुद्र में 11,000 मीटर नीचे बसे जीवों पर भी असर डाल सकती है। पहले ऐसा अनुमान नहीं था, लेकिन इसे आसानी से समझा जा सकता है। इसलिए भविष्य में हमें अपने व्यवहार को लेकर सतर्क रहना होगा।'
इन नतीजों से वैज्ञानिकों को यह समझने में भी मदद मिली है कि गहरे समुद्र के कम पोषक वातावरण में जीव अपना पोषण कैसे करते हैं। वहां बहुत ज्यादा दबाव होता है और तापमान बहुत कम होता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि वहां पाए जाने वाले जीवों का मेटाबॉलिज्म बहुत धीरे काम करता है। यह धीमापन ही जटिल वातावरण में इन जीवों को जीवित रहने में मदद करता है।
क्या है रेडियोएक्टिव कार्बन?
कार्बन-14 एक रेडियोएक्टिव कार्बन है। वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन से आकाशीय किरणों का संपर्क होने से प्राकृतिक तौर पर इसका निर्माण होता है। प्रकृति में सामान्य कार्बन की तुलना में इसकी उपस्थिति बेहद कम है। हालांकि लगभग हर जैविक तत्व में इसका अंश होता है। विभिन्न पुरातत्व व भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों के दौरान वैज्ञानिक इसी कार्बन की मदद से उनके काल का पता लगाते हैं।
परमाणु परीक्षणों से बढ़ा स्तर
1950 और 1960 के दशक में हुए परमाणु हथियारों के परीक्षण के दौरान मुक्त हुए न्यूट्रॉन और वातावरण की नाइट्रोजन में क्रिया से कार्बन-14 का निर्माण हुआ। इससे वातावरण में मौजूद कार्बन-14 का स्तर करीब दोगुना हो गया। 1960 के दशक के मध्य में बम के कारण बने इस कार्बन का स्तर सर्वाधिक था। फिर परमाणु परीक्षणों का दौर थमने से इसमें गिरावट आने लगी। 1990 के दशक में कार्बन-14 का स्तर काफी हद तक कम हो गया था।
वातावरण से समुद्र में घुला
परमाणु बमों के परीक्षण के कारण बना कार्बन-14 वातावरण से नीचे गिरते हुए समुद्र के सतह के जल में मिल गया। उन दशकों में समुद्री सतह पर मौजूद जीवों की कोशिकाओं के निर्माण में कार्बन-14 ने भूमिका निभाई। परमाणु परीक्षणों के शुरुआत के कुछ वर्षो में वैज्ञानिकों ने समुद्री जीवों में कार्बन-14 का स्तर बढ़ा हुआ पाया था।
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