Move to Jagran APP

डोकलाम के बाद चीन ने पहली बार तिब्बत में किया सैन्य अभ्यास

भारत-चीन के बीच डोकलाम तनाव के बाद तिब्बत में यह चीन का पहला सैन्य अभ्यास है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Fri, 29 Jun 2018 07:46 PM (IST)Updated: Fri, 29 Jun 2018 09:55 PM (IST)
डोकलाम के बाद चीन ने पहली बार तिब्बत में किया सैन्य अभ्यास
डोकलाम के बाद चीन ने पहली बार तिब्बत में किया सैन्य अभ्यास

बीजिंग [प्रेट्र]। तिब्बत में तैनात चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने मंगलवार को एक सैन्य अभ्यास किया। इसमें चीनी सेना ने अपनी रसद आपूर्ति, अस्त्र-शस्त्रों की क्षमताओं और सैन्य-नागरिक सहयोग को आजमाया। भारत-चीन के बीच डोकलाम तनाव के बाद तिब्बत में यह चीन का पहला सैन्य अभ्यास है।

prime article banner

चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' ने इस अभ्यास की खबर प्रकाशित की है। खबर में पिछले साल अगस्त में 4,600 मीटर की ऊंचाई पर किए गए 13 घंटे के अभ्यास का भी उल्लेख किया गया है। स्थानीय कंपनियों और सरकार के सहयोग से किए गए इस हालिया अभ्यास की सराहना करते हुए विश्लेषकों ने इसे सैन्य-नागरिक सहयोग के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण करार दिया है। इसकी वजह यह है कि तिब्बत में अभी भी दलाई लामा का प्रभाव है।

बता दें कि क्विंगहाई-तिब्बत पठार की जलवायु बेहद प्रतिकूल और भौगोलिक स्थिति काफी जटिल है। रसद आपूर्ति विभाग के कमान प्रमुख झांग वेनलांग ने बताया कि लंबे समय से सैनिकों को रसद और अस्त्र-शस्त्रों की आपूर्ति करना बेहद मुश्किल रहा है। इस कठिनाई से पार पाने के लिए ही पीएलए ने सैन्य-नागरिक सहयोग की रणनीति को अपनाया है और लगातार अपनी रसद आपूर्ति क्षमताओं को उन्नत किया है।

सैन्य अभ्यास के दौरान जब सेना की सशस्त्र इकाई के पास ईंधन खत्म हो गया तो स्थानीय पेट्रोलियम कंपनियों ने तुरंत उन्हें ईंधन की आपूर्ति की। इसी तरह ल्हासा की स्थानीय सरकार ने दिनभर के सैन्य अभ्यास के बाद सैनिकों को त्वरित रूप से भोजन की आपूर्ति की।

सैन्य विशेषज्ञ सोंग झोंगपिंग ने 'ग्लोबल टाइम्स' से कहा, 'बहुत ऊंचाई वाले इलाकों में लड़ाई के दौरान सबसे बड़ी चुनौती रसद और हथियारों की आपूर्ति को लगातार बनाए रखने की होती है। 1962 में चीन-भारत सीमा संघर्ष के दौरान चीन अपनी जीत को बरकरार रखने में विफल रहा था क्योंकि रसद आपूर्ति व्यवस्था बेहद खराब थी। यद्यपि स्थानीय तिब्बती निवासियों ने सैनिकों को तात्कालिक सहायता प्रदान की थी, लेकिन यह स्थायी नहीं थी। इस सैन्य अभ्यास से स्पष्ट है कि सैन्य-नागरिक सहयोग एक व्यवहारिक रणनीति है और मजबूत युद्धक शक्ति बनने में यह बेहद मददगार है।'


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.