Move to Jagran APP

जानिए कितने दशकों से भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर इलाके में जमीन को लेकर चीन के साथ है अनबन

साल 2003 में भी चीन ने सिक्किम के भारत में विलय को अवैध करार दिया था चीन सिक्किम पर भी दावा करता रहा है। अरुणाचल प्रदेश को तो वह अब भी दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता रहा है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 12 Jul 2020 05:03 PM (IST)Updated: Sun, 12 Jul 2020 05:03 PM (IST)
जानिए कितने दशकों से भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर इलाके में जमीन को लेकर चीन के साथ है अनबन
जानिए कितने दशकों से भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर इलाके में जमीन को लेकर चीन के साथ है अनबन

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क (एजेंसियां)। ये पहला मौका नहीं है जब चीन ने भारत-चीन सीमा पर विवाद खड़ा किया हो। भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर इलाके में बीते लगभग सात दशकों से इस मुद्दे पर चीन की भारत के साथ अनबन रही है।

loksabha election banner

इस बार लद्दाख की गलवन घाटी में बीते दिनों हुई हिंसक झड़प की वजह से सीमा विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा, इससे पहले साल 2003 में भी चीन ने सिक्किम के भारत में विलय को अवैध करार दिया था, चीन सिक्किम पर भी दावा करता रहा है। पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश को तो वह अब भी दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है। तिब्बत से लगी सिक्किम की नाथुला सीमा पर अक्सर छोटे-मोटे विवाद होते रहे हैं। 

दरअसल, भारत की सीमा चीन नहीं, बल्कि तिब्बत से सटी है। इन तमाम विवादों की शुरुआत 1950 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद ही शुरू हुई। 1959 में तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के अरुणाचल सीमा से होकर पैदल ही भारत पहुंचने के बाद सीमा को लेकर कटुता और बढ़ी। अब ताजा मामले में भूटान के साथ सीमा विवाद छेड़ना अरुणाचल के मामले पर भारत पर दबाव बनाने की चीनी रणनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है।

1950 के बाद शुरू हुआ विवाद

चीन के साथ भारत का साल 1950 तक कोई विवाद था ही नहीं, इसकी वजह यह है कि पूर्व में भारत की सीमा चीन से लगी ही नहीं है। उस समय सिक्किम के नाथुला से तिब्बत होकर दक्षिण पश्चिम चीन तक पहुंचने वाले 543 किलोमीटर लंबे इस मार्ग को सिल्क रूट कहा जाता था।

यह सड़क 1900 साल से भी ज्यादा समय तक इन तीनों क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा रही लेकिन 1950 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद जहां सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा को लेकर विवाद शुरू हुआ, वहीं 1962 की लड़ाई के बाद देश-विदेश में मशहूर सिल्क रूट भी बंद हो गया हालांकि बाद में 2006 में उसे दोबारा खोला जरूर गया था लेकिन वह अक्सर बंद ही रहता है। कुछ साल पहले उसी सड़क से मानसरोवर यात्रा की भी शुरुआत हुई थी।

तिब्बत पर कब्जे के बाद चीन की निगाहें हमेशा सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर रही हैं। तिब्बत पर कब्जे के बाद माओ और दूसरे चीनी नेताओं ने कहा था कि तिब्बत हथेली है, अब इसके बाद इन पांचों अंगुलियों पर कब्जा करना है। पूर्वी क्षेत्र में भारतीय और चीनी सेना के बीच झड़पों का भी लंबा इतिहास रहा है।

सिक्किम की नाथुला सीमा चौकी पर 11 सितंबर से 15 सितंबर 1967 के बीच हिंसक झड़प हुई थी। उसके बाद उसी साल अक्टूबर में चो ला में भी हमले हुए। 20 अक्तूबर 1975 को अरुणाचल के तुलुंग ला में चीनी सैनिकों के हमले में चार भारतीय जवान शहीद हो गए थे। उसके बाद इस मई में भी चीनी सीमा पर हुई झड़प में 10 जवान घायल हो गए थे।

चीन ने फिर किया विवादित क्षेत्र पर दावा

भूटान के साथ ताजा सीमा विवाद की शुरुआत बीते महीने उस समय हुई थी जब चीन ने ग्लोबल एनवायरनमेंट फेसिलिटी काउंसिल (जीईएफसी) की बैठक में भूटान के पूर्वी इलाके में स्थित साकटेंग वन्यजीव अभयारण्य परियोजना के लिए धन के आवंटन पर आपत्ति जताई थी।

इसमें कहा गया था कि वह विवादित क्षेत्र है। तब भूटान ने इसका कड़ा विरोध किया था, उसके बाद एक बार फिर चीन ने उस विवादित क्षेत्र पर अपना दावा किया है। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि भूटान के पूर्वी क्षेत्र में ट्रासीगांग जिले में 650 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैली उक्त वन्यजीव अभयारण्य की सीमा अरुणाचल प्रदेश से सटी है, चीन ने अरुणाचल को 2014 में अपने नक्शे में दिखाया था।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चीन का मकसद अरुणाचल के मुद्दे पर भारत पर दबाव बढ़ाना है, इसकी वजह यह है कि पूर्वी क्षेत्र में भूटान के साथ उसका कभी कोई सीमा विवाद था ही नहीं, मध्य और पश्चिमी भूटान में चीन के साथ सीमा विवाद रहा है और दोनों देश इस मुद्दे पर 1984 से 24 बार बैठक कर चुके हैं लेकिन पहले कभी चीन ने उक्त अभयारण्य पर अपना दावा नहीं किया था। भूटान के साथ चीन के राजनयिक संबंध नहीं हैं इसके लिए भी चीनी नेतृत्व और मीडिया का एक हिस्सा भारत को ही जिम्मेदार ठहराता रहा है।

कोरोनावायरस से दुनिया में हो रही आलोचना, फिर कब्जे की वजह से हुई फजीहत

गलवन घाटी में हमले की वजह से पूरी दुनिया में चीन की फजीहत हो रही है। इसके अलावा कोविड-19 के मुद्दे पर भी उसे चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ रही है इसलिए उसने इन मुद्दों से ध्यान भटकाने और भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए इस विवाद को हवा दी है।

वैसे, चीन इससे पहले भी 2017 में डोकलाम विवाद के जरिए भारत पर दबाव बनाने का प्रयास कर चुका है। भूटान के राजनीतिक विश्लेषकों को आशंका है कि सीमा पर चीन के साथ अगले दौर की बातचीत शुरू होने पर अभायरण्य विवाद भी प्रमुख मुद्दा होगा।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.