Move to Jagran APP

ड्रैगन के चंगुल में फंसा नेपाल, पाकिस्‍तान भी डाल रहा डोरे, भारत की बढ़ाएगा परेशानी

अब राजनयिक नीतियां, आर्थिक अपरिहार्यताओं के तले सांस लेने लगी हैं। इसी के दायरे में इन दिनों नेपाल को चीन से संबंध बढ़ाने के तौर पर देखा जा सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 29 Jun 2018 12:24 PM (IST)Updated: Sat, 30 Jun 2018 09:59 PM (IST)
ड्रैगन के चंगुल में फंसा नेपाल, पाकिस्‍तान भी डाल रहा डोरे, भारत की बढ़ाएगा परेशानी
ड्रैगन के चंगुल में फंसा नेपाल, पाकिस्‍तान भी डाल रहा डोरे, भारत की बढ़ाएगा परेशानी

[सुशील कुमार सिंह] अब राजनयिक नीतियां, आर्थिक अपरिहार्यताओं के तले सांस लेने लगी हैं। इसी के दायरे में इन दिनों नेपाल को चीन से संबंध बढ़ाने के तौर पर देखा जा सकता है। हालांकि ऐसे ही परिप्रेक्ष्य के साथ नेपाल का संबंध भारत से भी है और कई मायनों में कहीं अधिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भी। चीन के छह दिन के दौरे पर गए नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली और चीन के बीच दोनों देशों को जोड़ने के लिए सड़क, रेल और हवाई मार्ग बनाने के बारे में समझौता हुआ और यह भरोसा जताया गया कि इससे एक नए युग की शुरुआत होगी। इतना ही नहीं ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से भी दोनों देशों के संबंध में सहमति हुई है।

loksabha election banner

गौरतलब है कि ओली का चीन जाना कुछ हद तक भारत के लिए चिंता का विषय है। दरअसल चीन की नजर हमेशा नेपाल पर रही है और जब-जब नेपाल में ओली की सत्ता हुई तब-तब यह चिंता तुलनात्मक बढ़े हुए दर के साथ रही है। ओली के दौरे से वन बेल्ट, वन रोड़ के तहत राजनीतिक साझेदारी बढ़ सकती हैं जिसका संदर्भ चीनी विदेश मंत्रालय दर्शा रहा है। जाहिर है यह भारत के लिए सही नहीं है। इस परियोजना को लेकर भारत का विरोध आज भी कायम है। ऐसे दौरों एवं मुलाकातों से चीन और नेपाल के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मेल-जोल भी गहरे होंगे जिसका कूटनीतिक लाभ चीन अधिक उठाएगा और नेपाल का उपयोग वह कूटनीतिक संतुलन में भारत के प्रति कर सकता है।

गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच नेपाल एक बफर स्टेट है। ऐसे में चीन किसी भी कीमत पर नेपाल के साथ दोस्ती करना चाहता है और यह काम केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री रहने के समय कहीं अधिक आसान हो जाता है। केपी शर्मा ओली के हाथ में नेपाल की कमान दूसरी बार आई है जिनके बारे में यह कहा जाता है कि नेपाल को चीन के करीब ले जाने में उनकी दिलचस्पी रही है। इतना ही नहीं ओली जब दोबारा नेपाल के प्रधानमंत्री बने तो इसी साल मार्च के दूसरे सप्ताह में उन्होंने तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खाकन अब्बासी का अपने देश में स्वागत किया था।

अब्बासी ओली की सत्ता संभालने के बाद नेपाल पहुंचने वाले किसी भी देश के पहले प्रधानमंत्री थे। भारत और नेपाल के मामले में यदि नेपाल को चीन की ओर झुके हुए परिप्रेक्ष्य में परखें तो माथे पर बल पड़ता है, पर चीन तो यही सोचता है कि नफे-नुकसान के समीकरण से भारत को बाज आना चाहिए। देखा जाय तो नेपाल की अर्थव्यवस्था काफी हद तक भारत पर निर्भर है ऐसे में चीन की ओर उसका झुकाव एकतरफा नहीं हो सकता। भारत के लिए यह बात असहज करने वाली होगी यदि वन बेल्ट, वन रोड़ परियोजना को नेपाल द्वारा समर्थन मिलता है। चीनी रेलवे का विस्तार हिमालय के जरिये नेपाल तक ले जाने की बात हो रही है। जो हर लिहाज से चीन के लिए ही बेहतर है।

हालांकि नेपाल को यह भी डर होगा कि परियोजना में भारी खर्च होगा। ऐसे में तजाकिस्तान, लाओस, मालदीव, किर्गिस्तान, पाकिस्तान समेत मंगोलिया व अन्य देशों की तरह कहीं वह भी चीन के कर्ज के बोझ के तले दब न जाए। ओली के बारे में यह भी स्पष्ट है कि नेपाल में चुनाव कुछ हद तक भारत विरोधी भावना के कारण ही जीते हैं जबकि भारत नेपाल को लेकर हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रहा है और जरूरी आर्थिक मदद भी करता रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दौरे में नेपाल के लिए एक और सहज काम किया कि उन्होंने दोनों देशों के बीच हुए 1950 के समझौते में नेपाल द्वारा संशोधन की चाह रखने को सकारात्मक लिया। बहरहाल नेपाल एक संप्रभु देश है और वह अपनी विदेश नीति को किसी देश के मातहत होकर शायद ही आगे बढ़ाए, पर कुछ भी ऐसा हुआ तो भारत के लिए चिंतित होना लाजमी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.