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म्यांमार के साथ बढ़ती भारत की दोस्ती से चीन को लगेगा एक और झटका, पेट्रोलियम क्षेत्र में बढ़ा निवेश

चीन ने गलवन घाटी में जिस तरह की नीति अपनाई उससे दोनों देशों के बीच संबंध तल्ख हुए हैं। म्यांमार न सिर्फ भारत का एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है बल्कि सुरक्षा और कूटनीति की दृष्टि से भी यह भारतीय विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान रखता रहा है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sat, 10 Oct 2020 03:46 PM (IST)Updated: Sat, 10 Oct 2020 03:46 PM (IST)
म्यांमार के साथ बढ़ती भारत की दोस्ती से चीन को लगेगा एक और झटका, पेट्रोलियम क्षेत्र में बढ़ा निवेश
म्यांमार की नेता से मिलते विदेश मंत्रालय और थल सेना के अधिकारी। (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क/एजेंसी। भारत के चीन के साथ इन दिनों किस तरह के संबंध चल रहे हैं ये किसी से छिपा हुआ नहीं है। वैसे भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ हमेशा से ही बेहतर संबंध रहे हैं मगर चीन ने गलवन घाटी में जिस तरह की नीति अपनाई उससे दोनों देशों के बीच संबंध तल्ख हुए हैं। वो अभी तक सामान्य नहीं हो पाए हैं। म्यांमार न सिर्फ भारत का एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है बल्कि सुरक्षा और कूटनीति की दृष्टि से भी यह भारतीय विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान रखता रहा है।

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विदेश सचिव और थलसेना प्रमुख पहुंचे थे दौरे पर

इसी हफ्ते भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवने एक साथ म्यांमार के दौरे पर गए थे। भारतीय विदेश नीति में ऐसा अवसर कभी कभार ही आता है जब सेना और विदेश सेवा के शीर्ष अधिकारी एक साथ किसी दूसरे देश के दौरे पर गए हो।  

यह भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है कि देश के विदेश मंत्रालय और थलसेना के शीर्षाधिकारी एक साथ विदेश यात्रा पर गए हैं इसलिए यह तो साफ है कि इन दोनों अधिकारियों का कोरोना महामारी के बीच हुआ म्यांमार दौरा यूं ही नहीं हुआ है, और यह भी कि म्यांमार का भारत के सामरिक और कूटनीतिक विचार-व्यवहार में बड़ा स्थान है। 

संभावनाओं से भरा रहा है दोनों का दौरा

इस यात्रा से पहले विदेश सचिव हर्षवर्धन सिर्फ बांग्लादेश की यात्रा पर गए थे, उस वक्त भी यात्रा के पीछे खास कूटनीतिक मकसद थे। दो दिन की अपनी म्यांमार यात्रा के दौरान श्रृंगला-नरवने आंग सान सू ची, सीनियर जनरल मिन आंग-लाइ और कई मंत्रियों और अधिकारियों से मिले। सुरक्षा, आतंकवाद और अलगाववाद से लड़ने में भारत के लिए म्यांमार बहुत महत्वपूर्ण है।

भारत की सीमा से सटे इलाकों में म्यांमार ने एक भरोसेमंद और मदद के लिए तत्पर पड़ोसी की भूमिका अदा की है। इसकी एक और झलक मई 2020 में तब देखने को मिली जब म्यांमार के अधिकारियों ने 22 अलगाववादियों को भारत को प्रत्यर्पित कर दिया। पूर्वोत्तर के कुछ अलगाववादी गुटों के चीन से संबंधों और भारत चीन सीमा विवाद के बीच भी नरवने का जाना महत्वपूर्ण हो जाता है।

पेट्रोलियम रिफायनरी

चीन के म्यांमार में बढ़ते निवेश को लेकर भी भारत की चिंताएं बढ़ी हैं। खास तौर पर ऊर्जा के क्षेत्र में चीन ने काफी निवेश किया है। भारत भी ऊर्जा क्षेत्र में म्यांमार के साथ सहयोग का फायदा उठाना चाहता है और शायद यही वजह है कि कभी म्यांमार की राजधानी और अभी भी व्यापार और वाणिज्य का केंद्र माने जाने वाले यांगून के नजदीक भारत 6 अरब डॉलर की एक पेट्रोलियम रिफायनरी प्रोजेक्ट लगाना चाहता है।

इस संदर्भ में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अपनी मंशा म्यांमार सरकार के समक्ष रखी है। यदि इस प्रस्ताव पर सहमति बनती है तो इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन भारत की तरफ से इसमें हिस्सेदार होगा, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के अलावा जीएआईएल और ओएनजीसी भी म्यांमार के ऊर्जा सेक्टर में सक्रिय हैं।

इसी साल नवंबर में चुनाव

कोरोना के दौरान भारत ने म्यांमार को रेमडेसिविर के 3000 वाइल भी उपलब्ध कराने का वादा किया है। कोविड महामारी की शुरुआत में म्यांमार में बहुत कम संक्रमित लोग पाए गए और लगा कि शायद म्यांमार इस महामारी की चपेट में पूरी तरह नहीं आएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हाल के दिनों में म्यांमार में भी संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं।

म्यांमार में 8 नवंबर को चुनाव भी होने हैं। वैसे तो औपचारिक स्तर पर कोई विशेष बात नहीं हुई लेकिन भारत में इस बात की दिलचस्पी कम नहीं है कि चुनावों के परिणाम क्या होंगे। म्यांमार भारत की नेबरहुड फर्स्ट और एक्ट ईस्ट दोनों ही का हिस्सा है। यह दुर्भाग्य ही है कि इन तमाम बातों और आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समानताओं के बावजूद म्यांमार अभी भी भारत के लिए उतना महत्वपूर्ण स्थान नहीं रखता जितना उसे रखना चाहिए।  


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