आप भी जानें हांगकांग के मुद्दे पर क्यों पश्चिमी देशों को आंख दिखा रहा है चीन
एक तरफ जहां चीन के खिलाफ हांगकांग में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं तो दूसरी तरफ पश्चिमी देश भी इस मुद्दे को भुनाने में लगे हैं। चीन इसको लेकर दोहरी मार झेल रहा है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। हांगकांग चीन के लिए गले की फांस बनता जा रहा है। लगातार हो रहे प्रदर्शनों की वजह से चीन के लिए यह अब बड़ी समस्या बन चुका है। आलम ये है कि लगातार विदेशी मीडिया में प्रकाशित हो रही खबरों के बाद अब चीन ने इसका जवाब देना शुरू कर दिया है। इसकी शुरुआत चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स से हुई है। अखबार ने इस मामले में सरकार के पक्ष को रखते हुए इसको अंतरराष्ट्रीय नहीं बल्कि चीन का अंदरुणी मामला बताया है। अखबार ने लिखा है कि हांगकांग के मामले से अमेरिका समेत पूरी दुनिया का कोई लेना-देना नहीं है। यह चीन का अंदरूणी मामला है। इससे कैसे निपटना है इससे भी किसी अन्य देश को कोई मतलब नहीं होना चाहिए।
इतना हीं नहीं अखबार ने उन देशों पर भी निशाना साधा है जो हांगकांग का पक्ष ले रहे हैं। इसमें कहा गया है जिन देशों को अपने यहां पर होने वाले धरना प्रदर्शनों से निपटना नहीं आता है वह आज चीन को सीख देने में लगे हुए हैं। वह बता रहे हैं कि इस मामले में चीन को क्या करना चाहिए, यह वास्तव में बेहद शर्मनाक है। अखबार में लिखा है पश्चिमी देश अपनी पुरानी मानसिकता से अब तक बाहर नहीं निकल सके हैं। लेकिन 12 जून की घटना के बाद अब यह सिर्फ चीन का अंदरुणी मामला बना नहीं रह गया है। कुछ देश हांगकांग के मामले को आगामी जी20 की बैठक जो शुक्रवार-शनिवार को होने वाली है, में उठाना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि वह दुनिया के जज हैं। वैश्विक मंच पर यह नए लिबास पहने नए शासक हैं।
दरअसल, चीन के अखबार ने पश्चिमी देशों को खासकर अमेरिका को इशारों ही इशारों में इतनी खरी-खोटी जो सुनाई है उसके पीछे अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो का एक बयान है। इसमें पांपियों ने कहा था कि 12 जून को हांगकांग में हुए प्रदर्शन के बाद 16 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उनसे इस बारे में बात की थी। इसी दौरान इस मसले को जी20 में उठाने की बात की गई थी। इसके अलावा जर्मनी की संसद में भी इस मामले की गूंज सुनाई दी थी। इसमें संसद ने चांसलर एंजेला मर्केल को यह मसला चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के समक्ष उठाने को कहा है। चीन की सरकार की तरफ से इसमें कहा गया है पश्चिमी देश हमेशा से ही चीन के मसलों को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश करते रहे हैं। चीन का कहना है कि ट्रेड वार के दौरान अमेरिका कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता है। लेकिन चीन इस अमेरिका को इस तरह की हरकत नहीं करने देगा।
आपको बता दें कि हांगकांग चीन का स्पेशल एडमिनिसट्रेटिव रीजन (special administrative region) या स्वायत्त क्षेत्र है। चीन इसे अपने संप्रभु राज्य का हिस्सा मानता है। हांगकांग के लोग कई बार इसको चीन से आजाद करने की मांग कर चुके हैं। 12 जून को हांगकांग में हुए विशाल प्रदर्शन में भी कहीं न कहीं इसकी चिंगारी ने काम किया। इस दिन जो विशाल प्रदर्शन हांगकांग की सड़कों पर देखने को मिला वह एक नए कानून को लेकर था। दरअसल, हांगकांग के लोग प्रत्यर्पण कानून में संशोधन के प्रस्ताव का जमकर विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि इसके बाद हांगकांग के लोगों पर चीन का कानून लागू हो जाएगा और लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया जाएगा और उन्हें यातनाएं दी जाएंगी।
पूरी दुनिया में हांगकांग को सुर्खियों में लाने वाले इस प्रदर्शन की वजह थी कि एक शख्स ताईवान में एक महिला की हत्या कर हांगकांग वापस आ गया था। मुकदमा चलाने के लिए जरूरी था कि उसको ताइवान भेजा जाए, लेकिन ताइवान के साथ हांगकांग की प्रत्यर्पण संधि नहीं है। इस वजह से शख्स को ताइवान भेजना मुश्किल है। वर्तमान में हांगकांग का जो कानून है वह अंग्रेज़ों के समय का बनाया हुआ है। इसकी करीब एक दर्जन से अधिक देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है। इसमें अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर शामिल हैं। चीन ने मौजूदा कानून में जो बदलाव किया है उसके तहत चीन को किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेकर पूछताछ करने उसको वापस भेजने संबंधी अधिकार प्राप्त हो जाएंगे। इसका ही हांगकांग के लोग विरोध कर रहे हैं।
हांगकांग पर मचे बवाल को लेकर इससे जुड़ी कुछ दूसरी बातों को भी जान लेना बेहद जरूरी है। आपको बता दें कि साल 1997 में जब हांगकांग को चीन के हवाले किया गया था तब बीजिंग ने 'एक देश-दो व्यवस्था' की अवधारणा के तहत कम से कम 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी क़ानूनी व्यवस्था को बनाए रखने की गारंटी दी थी। लेकिन हांगकांग के लोगों को आजतक भी ऐसा नहीं लगा है कि चीन इस दिशा में काम कर रहा है। वर्ष 2014 में इसको लेकर हांगकांग में 79 दिनों तक चले 'अम्ब्रेला मूवमेंट' भी चला था, जिसके बाद लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर चीनी सरकार कार्रवाई की थी।
चीन का कहना है कि जी20 का मंच किसी देश के अंदरूणी मामलों पर विचार करने का नहीं है। यह एक ऐसा मंच है जहां पर विश्व के समक्ष आने वाले साझा चुनौतियों और उनके समाधान पर विचार किया जाता है। लिहाजा पश्चिमी देशों का रवैया इस बारे में पूरी तरह से नकारात्मक है। चीन का कहना है कि अमेरिका में हर साल गन कल्चर की वजह से सैकड़ों की जान जाती हैं, लेकिन यदि चीन इस मुद्दे को जी20 में उठाने लगे तो फिर अमेरिका के लोगों को कैसा लगेगा।
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