चीन के प्रति नरम हुए दलाई लामा, कहा- ईयू की तरह चीन के साथ रह सकता है तिब्बत
चीनी शासन के खिलाफ एक क्रांति विफल होने के बाद दलाई लामा को 1959 में तिब्बत छोड़ना पड़ा था।
बीजिंग (रायटर)। तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने चीन के प्रति नरम रुख दिखाया है। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि तिब्बत उसी तरह चीन के साथ रह सकता है जिस तरह यूरोपीय यूनियन (ईयू) के देश एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। वह अपनी मातृभूमि के लिए स्वतंत्रता नहीं बल्कि स्वायत्तता चाहते हैं। भारत में 1959 से निर्वासित जीवन बिता रहे दलाई लामा ने तिब्बत लौटने की इच्छा भी जताई है।
82 वर्षीय दलाई लामा ने इंटरनेशनल कैंपेन फॉर तिब्बत की 30वीं वर्षगांठ के मौके पर गुरुवार को एक वीडियो संदेश में कहा, 'मैं यूरोपीय यूनियन की भावना की सदैव प्रशंसा करता हूं। किसी एक के राष्ट्रीय हित की अपेक्षा साझा हित ज्यादा महत्वूपर्ण हैं। इस तरह की अवधारणा के साथ मैं पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ रहने के लिए बेहद ख्वाहिशमंद हूं।' इंटरनेशनल कैंपेन फॉर तिब्बत तिब्बतियों की आजादी की पैरवी करने वाला संगठन है। इसका मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में है।
दलाई लामा को अलगाववादी मानता है चीन
चीनी शासन के खिलाफ एक क्रांति विफल होने के बाद दलाई लामा को 1959 में तिब्बत छोड़ना पड़ा था। वहां से भारत आने के बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित सरकार स्थापित की। इस घटना के नौ साल पहले ही चीन की सेना ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था।
चीन दलाई लामा को खतरनाक अलगाववादी मानता है और विदेशी नेताओं को उनसे नहीं मिलने की चेतावनी दे रखी है। इसके बावजूद दुनिया के कई देशों के नेताओं से उनकी मुलाकात हो चुकी है। अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हालांकि अभी तक दलाई लामा से मुलाकात नहीं की है। लेकिन पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा समेत कई पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति उनसे मिल चुके हैं।