चीन और अफगानिस्तान में शांति बहाली और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई पर हुई बातचीत
चीनी प्रवक्ता लू ने कहा कि अफगान के नेतृत्व वाली व्यापक और समावेशी शांति मेल-मिलाप और अफगानों के बीच आंतरिक संवाद का समर्थन करते हैं।
बीजिंग, प्रेट्र/आइएएनएस। चीन ने पहली बार माना है कि उसने हाल ही में अफगानिस्तान तालिबान के मुख्य शांति वार्ताकार मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को अपने देश में आमंत्रित किया था। बरादर के साथ उनका सहयोगी भी था। बरादर और चीनी अधिकारियों के बीच अफगानिस्तान में शांति बहाली और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के मुद्दे पर व्यापक बातचीत हुई।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने गुरुवार को यहां मीडिया से कहा, 'दोहा स्थित तालिबान के राजनीतिक दफ्तर के प्रमुख बरादर चीन आए थे। यात्रा के दौरान चीनी अधिकारियों के साथ उनकी अफगानिस्तान में शांति व सुलह प्रक्रिया के साथ ही साथ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के मुद्दे पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ।'
लू ने कहा कि बरादर को बताया गया कि चीन अफगानिस्तान में शांति बहाली के लिए रचनात्मक भूमिका निभा रहा है। प्रवक्ता ने कहा कि बरादर से चीन के रुख को स्पष्ट कर दिया गया है। लू ने कहा, 'हम हमेशा अफगान के नेतृत्व वाली व्यापक और समावेशी शांति, मेल-मिलाप और अफगानों के बीच आंतरिक संवाद का समर्थन करते हैं।'
अफगान पर भारत से भी बातचीत
लू ने कहा कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए चीन भारत के साथ भी बातचीत कर रहा है। अफगानिस्तान में चीन के विशेष दूत डेंग शिजून मई में नई दिल्ली भी गए थे और वहां विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बातचीत की थी। भारत और चीन ने अफगानिस्तान के राजनयिकों को प्रशिक्षित करने के लिए संयुक्त कार्यक्रम भी आयोजित किया था।
प्रभावशाली अफगान नेता हैं बरादर
मुल्ला बरादर ने चार अन्य नेताओं के साथ मिलकर 1994 में तालिबान का गठन किया था। पाकिस्तान सरकार ने पिछले साल ही बरादर को जेल से रिहा किया था। मुल्ला बरादर को तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्ला उमर के बाद सबसे प्रभावशाली नेता माना जाता था। 2001 में तालिबान सरकार के गिरने तक वह अफगानिस्तान में कई पदों पर रहे थे।
अमेरिकी प्रतिनिधि से कर रहे हैं बातचीत
पाकिस्तानी जेल से रिहाई के बाद मुल्ला बरादर अफगानिस्तान में शांति और सुलह के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि जाल्मे खलीलजाद के साथ बातचीत कर रहे हैं। तालिबान की मुख्य मांग है कि अफगानिस्तान से विदेशी सुरक्षा बल बाहर चले जाएं। तालिबान से उसकी इस मांग के बदले में यह सुनिश्चित करने को कहा जा रहा है कि वह अफगानिस्तान की धरती को आतंकवादियों के अड्डे के रूप में इस्तेमाल नहीं होने देगा।
अफगान-पाकिस्तान में सुलह कराना चाहता है चीन
आपको बता दें कि आतंकवाद को मसले पर अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच गहरे मतभेद हैं। अफगानिस्तान पाकिस्तान पर तालिबानी और हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों को अपने यहां सुरक्षित पनाह देने का आरोप लगाता रहा है। चीन पाकिस्तान का अभिन्न दोस्त है।
पाकिस्तान में उसने खरबों को रुपये का निवेश किया है इसलिए वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सुलह कराने की कोशिशों में भी जुटा है। इसके अलावा चीन के शिंजियांग प्रांत से प्रशासन की ज्यादतियों से भागकर उईगर मुसलमान अफगानिस्तान में शरण ले रहे हैं। वहां चीन के खिलाफ आवाज उठ रही है। इसको दबाना भी चीन की रणनीति है, इसलिए वह अफगानिस्तान शांति वार्ता में अपने लिए महत्वपूर्ण भूमिका की तलाश में भी है।
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