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वियतनाम और फ‍िलीपींस को लेकर लेकर अमेरिका ने चीन को उकसाया, कहा- शीत युद्ध के हालात, जानें क्‍या है कारण

चीनी दूतावास ने कहा है कि अमेरिका का यह कदम शीत युद्ध को उकसाने वाला है। हालांकि अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव के बाद राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप चुनाव हार चुके हैं लेकिन उनकी विदेश नीति और चीन के ख‍िलाफ रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 12:53 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 06:59 PM (IST)
वियतनाम और फ‍िलीपींस को लेकर लेकर अमेरिका ने चीन को उकसाया, कहा- शीत युद्ध के हालात, जानें क्‍या है कारण
दक्षिण चीन सागर में चीन और अमेरिका के बीच टकराव। फाइल फोटो।

बीजिंग, ऑनलाइन डेस्‍क। अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव में सियासत के बीच एक बार फ‍िर बीजिंग और वाशिंगटन के बीच ठन गई है। अमेरिका के राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन ने चीन के खिलाफ वियतनाम और फ‍िलीपींस के समर्थन का आश्‍वासन दिया है। उनके इस समर्थन पर सियासत गरमा गई है। इस समर्थन को लेकर चीन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। चीन ने कहा है कि अमेरिका का यह कदम शीत युद्ध को उकसाने वाला है। हालांकि, अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव के बाद राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप चुनाव हार चुके हैं, लेकिन उनकी विदेश नीति और चीन के ख‍िलाफ रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। आखिर है दक्षिण चीन सागर और चीन का फैक्‍टर। इस समुद्री क्षेत्र में चीन की दिलचस्‍पी की प्रमुख वजह।

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फ‍िलीपींस और चीन के बीच दरार को बढ़ाने वाला बयान

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्‍ट के अनुसार मनीला स्थित चीनी दूतावास ने सख्‍त बयान दिया है। उन्‍होंने कहा है कि अमेरिकी राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार द्वारा फ‍िलीपींस पर दिए गए बयान से दक्षिण चीन सागर में परेशानी बढ़ सकती है। अमेरिका का यह कदम फ‍िलीपींस और चीन के बीच दरार को बढ़ाने वाला है। इससे इस क्षेत्र में शीत युद्ध का खतरा उत्‍पन्‍न होगा। चीन के राजदूत ने अमेरिका को आगाह किया है कि अमेरिका को दक्षिण चीन में अपने दखल को बंद करना चाहिए। चीन का मानना है कि अमेरिका के इस कदम से दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ेगा। बयान में कहा गया है कि इसका उद्देश्य क्षेत्रीय देशों को विवाद को सुलझाने में मदद करना नहीं है, बल्कि क्षेत्र में अपना आधिपत्य बनाए रखना है।

दक्षिण चीन सागर में चीन की दिलचस्‍पी की बड़ी वजह

दक्षिण चीन सागर में चीन की दिलचस्‍पी बेवजह नहीं है। इस इलाके का सामरिक और व्‍यापारिक महत्‍व भी है। इस समुद्री क्षेत्र में तेल और प्राकृतिक गैस के अकूत भंडार है। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के मुताबिक 11 बिलियन बैरल्‍स तेल और 190 ट्रिलियन क्‍यूबिक फीट प्राकृतिक गैस संरक्ष‍ित है। इसके अलावा पूरी दुनिया के समुद्री व्‍यापार का करीब 70 फीसद कारोबार इसी इलाके से होता है। यही वजह है कि चीन इस इलाके को छोड़ने को राजी नहीं है। अगर इस क्षेत्र पर चीन का प्रभाव बना रहता है या दूसरे देश उसके प्रभुत्‍व को स्‍वीकार लेते हैं तो उसके लिए ये कमाई का बड़ा जरिया बन सकता है।

दक्षिण चीन सागर के 80 फीसद हिस्‍से पर चीन का दावा

चीन इस पूरे समुद्री क्षेत्र के करीब 80 फीसद हिस्‍से पर अपना दावा करता आया है। दरअसल, पहली बार 1947 में चीन ने इलेवन डैश लाइन के माध्यम से दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा पेश किया था। चीन ने लगभग पूरे इलाके को शामिल कर लिया था। वर्ष 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के गठन के बाद टोंकिन की खाड़ी को इलेवन डैश लाइन से बाहर कर नाईन डैश लाइन को अस्तित्‍व में लाया गया। इसके बाद 1958 में जारी चीन के घोषणा पत्र में भी नाइन डैश लाइन के आधार पर दक्षिण चीन सागर के द्वीपों पर अपना दावा किया गया। इस दावे के बाद वियतनाम के स्पार्टली और पार्सल द्वीप समूह, फिलीपींस का स्कारबोरो शोल द्वीप, इंडोनेशिया का नातुना सागर क्षेत्र भी नाईन डैश लाइन के अंतर्गत समाहित हो गए थे। इसके बाद कई एशियाई देशों ने चीन के इस कदम से असहमति जताई। तब से ही इस क्षेत्र पर विवाद कायम है। इस तरह से चीन इस पूरे समुद्री क्षेत्र के करीब 80 फीसद हिस्‍से पर अपना दावा करता आया है।


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