डोनाल्ड ट्रंप की धमकी पर WHO के अधिकारी बोले, यह समय फंडिंग में कटौती करने का नहीं
डोनाल्ड ट्रंप की फंड को रोकने की धमकी के बाद World Health Organization यानी WHO के अधिकारियों ने कहा है कि यह फंडिंग रोकने का समय नहीं है।
जिनेवा, रॉयटर। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की फंड को रोकने की धमकी के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization यानी WHO) के अधिकारियों ने इसे 'चीन केंद्रित' संस्था होने के आरोपों से इनकार किया है। दरअसल, कोरोना वायरस से बेकाबू हो रहे हालातों के बीच कई देशों ने इस विश्व संस्था के खिलाफ आवाजें उठाने शुरू कर दी हैं। हाल ही में जापान ने चीन को लेकर डब्ल्यूएचओ के नजरिये पर सवाल खड़ा किया था। जापान के उप प्रधानमंत्री तारो असो ने कहा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का नाम बदलकर चीनी स्वास्थ्य संगठन कर देना चाहिए।
लगातार हो रही आलोचनाओं और ट्रंप के सख्त रुख के सामने आने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization यानी WHO) के यूरोप के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. हंस क्लूज (Dr Hans Kluge) ने कहा कि चूंकि हम एक महामारी के तीव्र चरण में हैं... ऐसे में यह फंडिंग में कटौती करने का समय नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रकोप के शुरुआती दौर में जमीन पर चीन की ओर से की गई कोशिशें बेहद महत्वपूर्ण थीं।
यही नहीं डब्लूएचओ के महानिदेशक के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. ब्रूस आयलवर्ड ने भी चीन का बचाव किया। उन्होंने कहा कि बीजिंग के अधिकारियों का वुहान में दिसंबर की शुरुआत में इस प्रकोप को समझना बेहद महत्वपूर्ण था। वुहान से शुरू हुई महामारी के बारे में समझने के लिए बीजिंग के साथ काम करना भी जरूरी था। वहीं फरवरी में चीन के लिए डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञ मिशन का नेतृत्व करने वाले आयलवर्ड (Aylward) ने सीमाओं को खुला रखने की सिफारिशों का बचाव करते हुए कहा कि चीन ने शुरुआती मामलों और उनके संपर्कों की पहचान करने और उनका पता लगाने के लिए बहुत मेहनत की और सुनिश्चित किया कि ऐसे लोग यात्रा नहीं करें।
वहीं लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रोफेसर डेविड हेमन जिन्होंने 2003 में SARS के प्रकोप के लिए WHO की प्रतिक्रिया का नेतृत्व किया था..., उन्होंने कहा कि अमेरिका की ओर से किसी तरह की फंडिंग में कटौती WHO के लिए एक बहुत बड़ा झटका साबित होगी। उन्होंने कहा कि यदि डब्ल्यूएचओ अमेरिकी फंडिंग खो देता है तो वह अपना काम करना जारी नहीं रख पाएगा। पहले से ही संस्था कम बजट में काम कर रही है। निश्चित रूप से डब्ल्यूएचओ के लिए फंडिंग खोना विनाशकारी होगा।
व्हाइट हाउस में नियमित प्रेस कांफ्रेंस में ट्रंप ने कहा है कि हम डब्ल्यूएचओ को दिए जाने वाले धन को रोकने जा रहे हैं। हम देखेंगे कि सख्ती के साथ उस पर रोक लगे। यह काम करता है तो बहुत अच्छी बात है। उनकी हर सलाह गलत हुई, जो सही नहीं है। दरअसल, ऐसा पहली बार नहीं है जब डब्ल्यूएचओ के प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति ने नाराजगी जताई है। इससे पहले उन्होंने विश्व संस्था पर चीन केंद्रित होने का आरोप लगाते हुए कहा था कि उसने महामारी के बारे में सही समय पर सही जानकारी नहीं दी।
जेनेवा में मुख्यालय वाले डब्ल्यूएचओ को अमेरिका से बहुत बड़ी रकम मिलती है। पिछले साल अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ को 40 करोड़ डॉलर (लगभग तीन हजार करोड़ रुपये) दिए थे, जबकि चीन से उसे मात्र चार करोड़ डॉलर (लगभग 280 करोड़ रुपये) मिले थे। अमेरिकी राष्ट्रपति का कहना है कि हम उनके पैसे के बहुत या ज्यादातर हिस्से का भुगतान करते हैं। मैंने जब यात्रा पाबंदियां लगाई तो उन्होंने इसकी आलोचना की या उससे असहमति जताई। वे गलत थे। वे बहुत सारी चीजों को लेकर भी गलत थे। शुरू में ही उनके पास बहुत सूचना थी, लेकिन वो देना नहीं चाहते थे, वे बहुत ज्यादा चीन केंद्रित जान पड़ते हैं।
वहीं, अमेरिकी संसद के उच्च सदन के विदेश मामलों संबंधित कमेटी के चेयरमैन सीनेटर जिम रिच ने कोविड-19 से निपटने में डब्ल्यूएचओ की भूमिका की निष्पक्ष जांच की मांग की है। वहीं, सीनेटर मार्को रूबियो ने चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी पर कोरोना को लेकर दुनिया को गलत जानकारी देने के लिए डब्ल्यूएचओ का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है।