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बराबरी के साथ खड़े होने वाले राष्ट्र के रूप में विकसित करने में जुटा भारत, तय कर सकता है दुनिया का एजेंडा : श्वाब

व‌र्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के चेयरमैन क्लॉस श्वाब ने कहा कि भारत खुद को मजबूत करने और बराबरी के साथ खड़े होने वाले राष्ट्र के रूप में विकसित करने में जुटा है। आने वाले दिनों में भारत दुनिया का एजेंडा भी तय कर सकता है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 08:20 PM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 08:20 PM (IST)
बराबरी के साथ खड़े होने वाले राष्ट्र के रूप में विकसित करने में जुटा भारत, तय कर सकता है दुनिया का एजेंडा : श्वाब
व‌र्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के चेयरमैन क्लॉस श्वाब ने कहा है कि भारत दुनिया का एजेंडा तय कर सकता है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। व‌र्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (World Economic Forum, WEF) के संस्थापक एवं चेयरमैन क्लॉस श्वाब ने कहा है कि भारत ने कोविड-19 महामारी से निपटने में तत्परता दिखाई और समय रहते कदम उठाए। उनकी राय में भारत के अंदर इतनी संभावनाएं है कि वह दुनिया का एजेंडा तय कर सकता है। भारत के सामने अब अधिक डिजिटल और मजबूत अर्थव्यवस्था की ओर छलांग लगाने का सबसे बड़ा अवसर है।

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जेनेवा में श्वाब ने एक साक्षात्कार में कहा कि वह भारत को लेकर आशावान हैं। भारत खुद को मजबूत तथा बराबरी के साथ खड़े होने वाले राष्ट्र के रूप में विकसित करने में जुटा है। दुनिया भारत को एक प्रेरणा के रूप में देखेगी। श्वाब ने कहा कि जनसंख्या आधारित फायदों और गहन विविधता की वजह से भारत के पास वैश्विक एजेंडा को आकार देने और सामूहिक भविष्य को परिभाषित करने की ताकत है।

भारत ने कोविड-19 महामारी के प्रकोप से निपटने के लिए शुरुआत में काफी मजबूत प्रतिक्रिया दी। समय पर लॉकडाउन के साथ लोगों को रोटी के संभावित संकट से बचाने के लिए 80 करोड़ लोगों को राशन दिया गया। छोटे कारोबार के लिए गारंटी मुक्त कर्ज की सुविधा उपलब्ध कराई गई। हालांकि यह सही है कि भारत महामारी के कारण असंगठित क्षेत्र, निम्न आय वर्ग तथा दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लाखों लोगों को अत्यंत असुरक्षित स्थिति में पहुंचने से नहीं रोक पाया।

आज उनके जीवन और आजीविका की सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता है क्यों कि इससे अधिक गहरा और मानवीय संकट पैदा हो सकता है। श्वाब ने इसके साथ ही इस बात पर दुख जताया कि दुनिया के कई देशों में महामारी से निपटने की तैयारियों में कमी थी। उन्होंने कहा कि आम धारणा यह थी कि महामारी सदियों में एक बार की घटना है। यही वजह है कि कई देशों की सरकारों और उद्योग जगत के लोगों ने शुरुआत में इसे खतरे के रूप में नहीं लिया जिसकी हमें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।


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