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NASA का दावा- तीन अरब साल पहले रहने लायक था शुक्र, जानें फिर किस कारण बदली स्थिति

सौर मंडल का दूसरा सबसे नजदीकी ग्रह शुक्र को लेकर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि तीन अरब साल पहले इस ग्रह पर भी पानी मौजूद था।

By TaniskEdited By: Published: Tue, 24 Sep 2019 08:52 AM (IST)Updated: Tue, 24 Sep 2019 12:56 PM (IST)
NASA का दावा- तीन अरब साल पहले रहने लायक था शुक्र, जानें फिर किस कारण बदली स्थिति
NASA का दावा- तीन अरब साल पहले रहने लायक था शुक्र, जानें फिर किस कारण बदली स्थिति

वाशिंगटन, प्रेट्र। वैज्ञानिकों का मानना है कि तीन अरब साल पहले शुक्र ग्रह पर भी पानी मौजूद था, लेकिन 700 मिलियन यानी 70 करोड़ साल पहले ब्रह्मांड में हुए नाटकीय बदलावों के कारण इस ग्रह के 80 फीसद क्षेत्र का निर्माण दोबारा हुआ। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अध्ययन में यह बात सामने आई है।शोधकर्ताओं ने कहा कि यह अध्ययन शुक्र ग्रह की जलवायु के इतिहास का एक नया दृष्टिकोण देता है और उम्मीद जताता है कि शुक्र के जैसे एक्सोप्लेनेट्स (सौरमंडल के बाहरी ग्रह) में जीवन की संभावनाएं हो सकती हैं।

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उथले महासागर का पानी हो सकता है

चालीस साल पहले नासा के पायनियर वीनस मिशन ने अध्ययन में यह पाया था कि पृथ्वी के नजदीकी ग्रह में उथले महासागर का पानी हो सकता है। यह देखने के लिए कि क्या शुक्र की जलवायु ऐसी है कि वहां कभी पानी ठहरा हो सकता है, अमेरिका में नासा गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज (जीआइएसएस) के शोधकर्ताओं ने सिमुलेशन के जरिये शुक्र में पानी के विभिन्न स्तरों की एक श्रृंखला बनाई, जिसे पांच भागों में बांटा गया।

शुक्र भी जीवन के लिए उपयुक्त रहा होगा

सभी पांच परिदृश्यों में उन्होंने पाया कि लगभग तीन अरब वर्ष तक शुक्र ग्रह अधिकतम 50 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 20 डिग्री सेल्सियस के बीच अपने तापमान को स्थिर बनाए रखने में सक्षम था। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसका मतलब है कि किसी समय में शुक्र भी जीवन के लिए उपयुक्त रहा होगा, पर आज भी यहां शीतोष्ण जलवायु को बनाए रखा जा सकता है।

उथल-पुथल के कारण गर्म हुआ शुक्र

जीआइएसएस के शोधकर्ता माइकल वे ने कहा ‘हमारा अनुमान है कि अरबों वषों तक शुक्र में एक स्थिर जलवायु रही होगी। यह संभव है कि लाखों वर्ष पूर्व ब्रह्मांड में हुई उथल-पुथल के कारण इस ग्रह की जलवायु गर्म हो गई हो। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि पांच में से तीन परिदृश्यों में शुक्र ग्रह की स्थलाकृति ठीक वैसी ही पाई गई जैसी आज इस ग्रह की आकृति है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसमें 310 मीटर की गहराई पर महासागर, 10 मीटर की गहराई में उथले पानी की परत और सतही मिट्टी में भी कुछ मात्र में पानी हो सकता है। शोधकर्ताओं ने अपने परिणामों की तुलना पृथ्वी की स्थलाकृति और इसके महासागरों की स्थिति से भी की। शुक्र सौर मंडल का दूसरा सबसे नजदीकी ग्रह है। हालांकि, कई शोधकर्ताओं का मानना है कि सूर्य के पास होने के कारण यहां रहने योग्य संभावनाएं नहीं हो सकतीं।

पृथ्वी की तुलना में दोगुना है सौर विकिरण

जीआइएसएस के माइकल वे ने कहा कि शुक्र ग्रह में पृथ्वी की तुलना में सौर विकिरण पहले से ही दोगुना है। फिर भी अध्ययन से पता चलता है कि शुक्र की सतह पर पानी होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि लगभग 420 करोड़ साल पहले जब ग्रह का निर्माण हुआ तो उस समय शुक्र भी गर्म था, लेकिन यह तेजी से ठंडा हो गया और इसके वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड हावी हो गई थी। यदि शुक्र को भी ठंडा होने में पृथ्वी जितना समय लगता तो संभव है कि इस ग्रह की कार्बन डाइऑक्साइड सिलिकेट चट्टानों द्वारा खींच ली जाती और आज यहां जीवन संभव होता।


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