युद्ध झेल रहे खाड़ी देशों में दुश्मन से ज्यादा घातक साबित हो रहा ये अनजान वायरस
ये वायरस कहां से आया है और क्यों फैल रहा है, इसकी वजह अभी स्पष्ट नहीं है। विशेषज्ञों की टीम इसकी वजह जानने का प्रयास कर रही हैं, ताकि इस समस्या का स्थाई समाधान तलाशा जा सके।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। वर्षों से युद्ध की मार झेल रहे अफगानिस्तान और इराक में सैनिक व आम लोग इन दिनों एक अजीब वायरस से जूझ रहे हैं। सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार ये वायरस (सुपरबग) प्रभावित व्यक्ति पर दवाओं का असर कम कर देता है। एंटीबायोटिक का असर कम होने की वजह से इसकी चपेट में आने वालों का इलाज मुश्किल होता जा रहा है। युद्ध क्षेत्र में मौजूद डॉक्टरों के पास फिलहाल इस वायरस का कोई सटीक इलाज नहीं है।
यूएस आर्मी के कर्नल क्लिंटन मुरेय, संक्रामक रोगों के डॉक्टर हैं। वह वर्ष 2003 से 2015 के बीच चार बार इस वार क्षेत्र मंक तैनात रह चुके हैं। उन्होंने यहां के सैनिक अस्पतालों और क्लीनिकों में लंबे समय तक काम किया है। वह बताते हैं कि दवा प्रतिरोधी या सुपरबग संक्रमण होने का मतलब है कि सैनिकों को कई सालों तक समस्या का सामना करना पड़ेगा।
इन सैनिकों पर जब सामान्य एंटीबायोटिक का असर फेल हो जाता है तो इन्हें एंटीबायोटिक की ज्यादा खुराक देनी पड़ती है या नई दवाओं अथवा वैकल्पिक दवाओं का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिनके साइड इफेक्ट काफी ज्यादा होते हैं। बावजूद कई दोबारा संक्रमित हो जाते हैं, जबकि वैक्टीरिया को बढ़ने से रोकने के लिए कईयों को अतिरिक्त ऑपरेशन आदि कराने पड़ते हैं।
2009 में US आर्मी ने निकाला तोड़
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक इस अनजान वायरस का असर वर्ष 2003 के आसपास से अफगानिस्तान और इराक के युद्ध क्षेत्र में है। यूएस आर्मी को वर्ष 2009 में इस वायरस का पता चला। इसके बाद यूएस आर्मी ने अपने सैनिक अस्पताल में इससे निपटने की कवायद शुरू की। हालांकि अब भी आसपास के नागरिक अस्पतालों में स्थिति पहले की तरह बदतर बनी हुई है। उधर यूएस आर्मी वायरस से बुरी तरह से प्रभावित होने वाले सैनिकों को इलाज के लिए अमेरीका के दो अस्पतालों में भेजती है। इसमें एक टेक्सास स्थित ब्रुक आर्मी मेडिकल सेंटर है। इसके विपरीत आम लोगों के पास बेहद कम संसाधन और सुविधाएं हैं।
इस इराकीबैक्टर से जूझ रही सेना
सीएनएन के अनुसार मिलिट्री डॉक्टरों ने वर्ष 2003 से इस तरह के वैक्टीरिया के असर को नोटिस करना शुरू कर दिया था, जो एंटीबायोटिक का असर कम कर रहा था। हालांकि इसका हल तलाशने में कई वर्षों का समय लग गया। एसिनेटोबैक्टर बाउमानी, एक प्रकार के बैक्टीरिया के प्रतिरोधी संक्रमण के रूप में इरान और फिर अफगानिस्तान में इतना सामान्य हो गया है कि सैनिकों ने इसे उपनाम इराकबैक्टर दिया है। पहले ये संक्रमण बुजुर्ग और बहुत बीमार लोगों को अपना शिकार बनाता था, जो महीनों अस्पताल में भर्ती रहते थे। अब इस संक्रमण का असर उन युवा और सैनिकों पर भी दिखने लगा है जो बम धमाकों में घायल हो रहे हैं। वर्ष 2004 से 2006 के बीच इस संक्रमण का असर सबसे ज्यादा रहा। इस दौरान इस युद्ध क्षेत्र में एक खास तरह के एंटीबायोटिक का बजट 400 फीसद बढ़ गया।
पूरे अस्पताल को संक्रमित कर सकता है वायरस
युद्ध क्षेत्र में काम करने वाले स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैगनमिलर के अनुसार ये वायरस इतना खतरनाक है कि पूरे अस्पताल को संक्रमित कर सकता है। ये बहुत भयावह स्थिति होगी। ऐसे में अस्पताल इस वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज नहीं कर सकते। इसके विपरीत अस्पताल में आने वाले अन्य मरीजों पर भी इस वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। यही वजह है कि बहुत से सैनिक अस्पताल कई बार सामान्य मरीजों का इलाज करने से इंकार कर देते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि वह मरीज कहीं उस खतरनाक वायरस से संक्रमित न हो। इससे घायल सैनिकों के लिए विशेष तौर पर तैयार किया गया उनके अस्पताल का आइसीयू संक्रमित हो सकता है। ऐसे में अगर उन्हें बाहरी मरीजों का इलाज करना भी पड़ता है तो उन्हें मुख्य अस्पताल परिसर से काफी दूर आइसोलेसन टेंट में रखा जाता है।
कहां से आया वायरस
सेना को परेशान करने वाला ये वायरस कहां से आया है और क्यों फैल रहा है, इसकी वजह अभी स्पष्ट नहीं है। विशेषज्ञों की टीम इसकी वजह जानने का प्रयास कर रही हैं, ताकि इस समस्या का स्थाई समाधान तलाशा जा सके। विशेषज्ञों के अनुसार इस तरह के वायरस ज्यादातर उन घायलों में पाए जा रहे हैं, जो सड़क किनारे रखे गए बमों से घायल हो रहे हैं।