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अमेरिका ने विकसित किया सस्ता वेंटीलेटर, लागत तीन सौ डालर से भी कम

पारंपरिक वेंटीलेटर के मुकाबले इसकी कीमत भी बहुत कम है। कोरोना से दुनिया भर में अब तक 37550 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 31 Mar 2020 04:49 PM (IST)Updated: Tue, 31 Mar 2020 04:49 PM (IST)
अमेरिका ने विकसित किया सस्ता वेंटीलेटर, लागत तीन सौ डालर से भी कम
अमेरिका ने विकसित किया सस्ता वेंटीलेटर, लागत तीन सौ डालर से भी कम

ह्युस्टन, प्रेट्र। अमेरिका में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच टेक्सास विश्वविद्यालय ने एक स्वचालित, हाथ में पकड़े जा सकने वाला वेंटीलेटर विकसित किया है। पारंपरिक वेंटीलेटर के मुकाबले इसकी कीमत भी बहुत कम है। कोरोना से दुनिया भर में अब तक 37,550 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

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अमेरिका में इस बीमारी का व्यापक प्रकोप होने से अस्पतालों में संसाधनों की किल्लत हो गई है। मरीजों की भारी तादाद के आगे वेंटीलेटर भी बहुत कम पड़ रहे हैं। मेडिकल उपकरण बनाने वाली फिलिप्स समेत कई कंपनियों ने अपनी सप्लाई बढ़ाने के लिए कमर कस ली है। लेकिन जिस तेजी से मरीज बढ़ रहे हैं और इन उपकरणों की जरूरत है उतनी जल्दी ये कंपनियां आपूर्ति शायद नहीं कर पायेंगी।

इस बीच टेक्सास स्थित राइस यूनिवर्सिटी और कनाडा की वैश्विक हेल्थ डिजाइन फर्म मीट्रिक टेक्नालीजीस ने मिलकर स्वचालित बैग वाल्व मास्क वेंटीलेशन यूनिट तैयार की है। इसकी लागत 300 डालर से भी कम है। यह मरीजों के इलाज में सक्षम है। दुनिया भर में इसे आनलाइन बिक्री के जरिये उपलब्ध कराने की दिशा में दोनों संस्थाएं योजना तैयार कर रही हैं।

इस वेंटीलेटर को विकसित करने वाली टीम के सदस्य प्रोफेसर वेटरग्रीन ने बताया कि यह बिजली से चलने वाला स्वचालित उपकरण है। यह उन लोगों के लिए नहीं जिनकी हालत बहुत गंभीर है बल्कि उनके लिए है जिनको सांस लेने में दिक्कत है।

टीम ने ऐसा उपकरण बनाया है जिसे प्रोग्राम करके बैग वाल्व मास्क को बार बार पंप किया जा सकता है। इन मास्क को मरीजों को राहत देने के लिए इमरजेंसी मेडिकल स्टाफ हाथ में भी लेकर चल सकता है। लेकिन हाथ से इसे कुछ मिनट तक ही दबाया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि जिन मरीजों की हालत में सुधार हो रहा हो उन्हें पारंपरिक वेंटीलेटर से हटाकर इस उपकरण पर शिफ्ट किया जा सकता है। प्रोफेसर वेटरग्रीन ने कहा कि हमारे उपकरण से रक्षा विभाग भी प्रभावित है। वह भविष्य में इसे नौसेना में इस्तेमाल करने की इजाजत दे सकता है।

उन्होंने बताया कि यह उपकरण विकसित करने वाली टीम जिसे हम लोगों ने 'अपोलो बीवीएम टीम' का नाम दिया है के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। इससे जुड़े छात्रों ने अपना प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए दिन रात एक कर दिया।

अपोलो बीवीएम नाम, बेयर कालेज के इमरजेंसी मेडिसिन के असिस्टेंट प्रोफेसर, राइस यूनिवर्सिटी में बायोइंजीनियरिंग के असिस्टेंट प्रोफेसर और मीट्रिक टेक्नालाजीस से संबद्ध रोहित माल्या ने दिया है। उन्होंने राइस विवि के नासा से पुराने रिश्तों व पूर्व राष्ट्रपति राष्ट्रपति जेएफ केनेडी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए ऐसा किया है।


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