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अमेरिका ने अफगानिस्तान में दस सैन्य अड्डे किए बंद, तालिबानी हिंसा के बीच अमेरिकी सेना की वापसी शुरू

अफगानिस्तान में तालिबान आतंकियों के उपद्रव के बीच अमेरिका ने अपनी सेनाओं को बुलाना शुरू कर दिया है। समाचार एजेंसी एएनआइ के मुताबिक अमेरिका ने अफगानिस्‍तान में अपने दस सैन्य अड्डों को बंद कर दिए हैं। पढ़ें यह रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2020 05:46 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2020 05:46 PM (IST)
अमेरिका ने अफगानिस्तान में दस सैन्य अड्डे किए बंद, तालिबानी हिंसा के बीच अमेरिकी सेना की वापसी शुरू
अमेरिका ने अफगानिस्‍तान से अपनी सेना को धीरे-धीरे कम करना शुरू कर दिया है।

वाशिंगटन, एएनआइ। अफगानिस्तान में तालिबान की हिंसा में कोई कमी नहीं है। इसके बावजूद अमेरिका ने अपनी सेना को धीरे-धीरे कम करना शुरू कर दिया है। अमेरिका ने अपने दस सैन्य अड्डों को बंद कर दिया है। अफगानिस्तान में अमेरिका के कितने सैन्य अड्डे हैं, इसकी जानकारी सामने नहीं आई है। दस साल पहले अमेरिका के यहां पर सैकड़ों सैन्य अड्डे थे, लेकिन अब घटकर कुछ दर्जन ही रह गए हैं।

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मीडिया में आई खबरों के मुताबिक अमेरिका ने ऐसे प्रांतों में भी सैन्य अड्डे बंद किए हैं, जहां पर अभी भी हिंसा चल रही है। जिन दस स्थानों पर इन्हें बंद किया गया है, उनमें हेलमंद, काबुल और कुंदूज के सैन्य अड्डे भी हैं। अमेरिकी सेना ने अपनी बसों में से तमाम अफगान सेना को दे दी हैं और कुछ को सील कर दिया है। अमेरिका 15 जनवरी तक पांच हजार सैनिकों से घटाकर यह संख्या ढाई हजार करना चाहता है।

धीरे-धीरे सेना की वापसी अमेरिका के तालिबान से हुए समझौते की प्रमुख शर्त थी। यह समझौता फरवरी में हुआ था। ज्ञात हो कि पिछले सप्ताह अमेरिका के कार्यवाहक रक्षा मंत्री क्रिस्टोफर मिलर ने कहा था कि 15 जनवरी तक अमेरिका अपनी फौज की संख्या पांच हजार से घटाकर ढाई हजार कर देगा। पूरी सेना की वापसी मई तक संभावित है।

मौजूदा वक्‍त में अफगानिस्‍तान में हालात बेहद खराब हैं। यही वजह है कि हाल ही में संयुक्‍त राष्‍ट्र ने अफगानिस्‍तान में भारी हिंसा को लेकर गहरी चिंता जताते हुए तत्काल बिना शर्त संघर्षविराम के लिए कोशिशें तेज करने की गुजारिश की थी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने अफगानिस्तान के पड़ोसियों और उसके सहयोगी देशों से आग्रह किया था कि वे युद्धग्रस्त देश में शांति और उसके समृद्ध के लिए अपनी भूमिका निभाएं।  

पूर्व में अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सुलह परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने कहा था कि यदि तालिबान से शांति वार्ता सफल नहीं होती है तो अफगानिस्तान को लंबे समय तक युद्ध झेलना पड़ सकता है। उन्‍होंने यह भी कहा था कि केवल अमेरिका-तालिबान समझौते को ही दोहा की शांति वार्ता का आधार नहीं बनाया जा सकता है। शांति वार्ता में अन्य मसलों पर पर भी तालिबान को विचार करना पड़ेगा।  


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