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संयुक्त राष्ट्र 2017 में अहम मुद्दों से जूझता रहा, भारत ने जीते अहम चुना

संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में भारत तीन सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में एक रहा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुतारेस ने वैश्विक नेताओं के 'सर्किल ऑफ लीडरशीप' में शामिल किया।

By Tilak RajEdited By: Published: Thu, 28 Dec 2017 03:08 PM (IST)Updated: Thu, 28 Dec 2017 03:08 PM (IST)
संयुक्त राष्ट्र 2017 में अहम मुद्दों से जूझता रहा, भारत ने जीते अहम चुना
संयुक्त राष्ट्र 2017 में अहम मुद्दों से जूझता रहा, भारत ने जीते अहम चुना

संयुक्त राष्ट्र, पीटीआइ। इस साल नया प्रमुख पाने वाला संयुक्त राष्ट्र उत्तर कोरिया की बढ़ती परमाणु महत्वाकांक्षा एवं म्यामांर के रोहिंग्या संकट जैसे मुद्दों से जूझता रहा तथा सुरक्षा परिषद में बहुप्रतीक्षित सुधार की मंद गति के कारण भारत ने उसे निशाने पर लिया।

साल की शुरुआत पुर्तगाली नेता एवं राजनयिक एंतानियो गुतारेस के संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के पदभार संभालने के साथ हुई। संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिकता खो देने संबंधी आलोचना पर सितंबर में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, '21वीं सदी में हमारा साझा उद्देश्य प्रक्रिया पर कम, लोगों पर अधिक, नौकरशाही पर कम, आपूर्ति पर अधिक केंद्रित है।' सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के इच्छुक भारत ने कहा कि पुराने ढ़र्रे वाली नहीं, बल्कि अद्यतन परिषद ही संघर्ष रोकथाम एवं निरंतर शांति की वर्तमान चुनौतियों का हल करने में प्रभावी हो सकता है। उसने ‘थम गयी’ सुरक्षा परिषद की आलोचना की जो बस विश्व की जनसंख्या के महज थोड़े से हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है।

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सुरक्षा परिषद में सुधार की गति बहुत धीमी होने से भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान तथा तृतीय विश्व के देशों की झुंझलाहट बढ़ गयी। उनकी मांग है कि इस 15 सदस्यीय निकाय की संरचना 20वीं सदी नहीं, बल्कि 21वीं सदी की जमीनी हकीकत को परिलक्षित करे। भारत सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए आलेख आधारित वार्ता यथाशीघ्र शुरू किये जाने के पक्ष में है।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सितंबर में कहा, 'यदि हम वाकई गंभीर हैं तो हम कम से कम यह कर सकते है कि एक आलेख तैयार करें जो वार्ता का आधार हो सकता है।' भारत संयुक्त राष्ट्र में एक कैलेंडर वर्ष में तीन अहम चुनाव जीतने वाला शायद पहला देश है। संयुक्त राष्ट्र की प्राथमिक न्यायिक शाखा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में कड़े मुकाबले में भारत ने जमीनी हकीकत और 21 वीं सदी में बदलते सत्ता समीकरण की झलक पेश की। उसके उम्मीदवार न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी फिर से निर्वाचित हुए तथा ब्रिटेन ने आखिर घड़ी में मैदान छोड़ दिया।



जून में डॉ. नीरु चड्ढ़ा अंतराष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण में 2017-2026 के लिए न्यायाधीश निर्वाचित होने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। उसी माह भारत 183 वोट पाकर आर्थिक एवं सामाजिक परिषद में पुनर्निर्वाचित हुआ जो संयुक्त राष्ट्र के छह मुख्य अंगों में एक है। इस वैश्विक मंच पर जहां भारत अपनी अहमियत दर्ज कराते हुए ताकत के रूप में उभरा वहीं पाकिस्तान लगातार अलग-थलग पड़ता गया। लगातार दूसरे साल उसे उसके कश्मीर एजेंडे पर कोई महत्व नहीं मिला। यह संभवत: कश्मीर और आतंकवाद के मुद्दे पर अपने पश्चिमी पड़ोसी को अलग-थलग करने की भारत की आक्रामक कूटनीति का संकेत है।



कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की शीर्ष राजनयिक मलीहा लोधी की सबसे बड़ी चूक सामने आयी। उन्होंने फलस्तीन की एक महिला की तस्वीर को भारतीय सुरक्षाबलों की पेलेट गन गोलीबारी की शिकार कश्मीरी महिला के रूप में पेश किया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खकान अब्बासी और विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भी संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर राग अलापा। लेकिन लगातार दूसरे साल संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के पक्ष में कोई सामने नहीं आया।



संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में भारत तीन सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में एक रहा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुतारेस ने वैश्विक नेताओं के 'सर्किल ऑफ लीडरशीप' में शामिल किया। यह निकाय संघर्ष वाले क्षेत्रों में यौन शोषण रोकथाम एवं शांति मिशन पर संयुक्त राष्ट्र का सहयोग करेगा। चीन को छोड़कर सुरक्षा परिषद के बाकी चार स्थायी सदस्यों ने- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रुस ने इस निकाय में प्रवेश करने के भारत के प्रयास पर मुहर लगायी। चीन ने परिषद द्वारा मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने में भी अडंगा लगाया।

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