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UN के 37 हजार कर्मियों को नहीं मिलेगी नवंबर के बाद तनख्‍वाह, छाया जबरदस्‍त आर्थिक संकट!

दुनिया भर में विभान्‍य स्‍तरों पर काम करने वाले संयुक्‍त राष्‍ट्र को फंड की कमी का सामना करना पड़ रहा है। आलम ये है कि उसके पास कर्मियों को तनख्‍वाह देने के भी लाले पड़ सकते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 09 Oct 2019 11:35 AM (IST)Updated: Thu, 10 Oct 2019 07:58 AM (IST)
UN के 37 हजार कर्मियों को नहीं मिलेगी नवंबर के बाद तनख्‍वाह, छाया जबरदस्‍त आर्थिक संकट!
UN के 37 हजार कर्मियों को नहीं मिलेगी नवंबर के बाद तनख्‍वाह, छाया जबरदस्‍त आर्थिक संकट!

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। संयुक्‍त राष्‍ट्र (United Nation) इन दिनों आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। इसकी वजह बनी है कई देशों द्वारा तय भुगतान न करना। संयुक्‍त राष्‍ट्र महासचिव (United Nation Secretary General António Guterres) एंटोनियो गुतारेस ने इस पर गहरी चिंता जताई है। उनके मुताबिक यून फिलहाल 23 करोड़ डॉलर की नगदी की कमी से जूझ रहा है। इसकी वजह से इसके संचालन में भी परेशानी खड़ी हो सकती है। इतना ही नहीं इसको लेकर गुतारेस ने संयुक्‍त राष्‍ट्र के करीब 37 हजार कर्मियों को पत्र लिखकर कहा है कि फंड की कमी के चलते वेतन और और अन्‍य भत्‍तों में कमी की जा सकती है।  

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सभी देशों के अंशदान पर टिका है संयुक्‍त राष्‍ट्र 

आपको बता दें कि इसी 24 अक्‍टूबर को संयुक्‍त राष्‍ट्र के 74 वर्ष (United Nation complete 74 years) पूरे हो रहे हैं। द्वितीय विश्‍व युद्ध बाद दुनिया में शांति बहाली के लिए बनाए गए इस महासंगठन को लेकर भारत ने निजी तौर पर काफी सार्थक प्रयास किए थे। वर्तमान में संयुक्‍त राष्‍ट्र आम सभा (UNGA), आर्थिक व सामाजिक परिषद, सचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice), संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (United Nation Security Council) समेत कुल 17 संस्‍थाएं इसकी स्‍वतंत्र इकाई के तौर पर काम करती हैं। इसके गठन का मकसद विभिन्‍न मसलों पर एक अंतरराष्‍ट्रीय राय बनाना, शांति स्‍थापना, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, मानवाधिकार कायम करना था। वर्तमान में इसके 193 देश सदस्‍य हैं। ये सभी देश वो हैं जिन्‍हें एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र के रूप में अंतरराष्‍ट्रीय मान्‍यता प्राप्‍त है।

देशों की यूएन को फंडिंग

संयुक्‍त राष्‍ट्र की स्‍थापना के साथ ही इसके विभिन्‍न जरूरतों को पूरा करने के लिए फंड बनाया गया था, जिसमें सभी देश अंशदान करते हैं। इनमें विकसित देशों की राशि विकासशील देशों के अनुरूप कम होती है। वर्तमान में जो संकट संयुक्‍त राष्‍ट्र के समक्ष खड़ा हुआ है उसकी एक बड़ी वजह विकसित देशों द्वारा इसमें अपना पूरा अंशदान न करना है। भारत ने भी यूएन के सामने 1.3 अरब अमेरिकी डॉलर के बकाये भुगतान पर गहरी चिंता जाहिर की है।

भारत ने अगस्‍त में दिया था एक मिलियन डॉलर 

जहांं तक भारत के अंशदान की बात है तो इसी वर्ष अगस्‍त में ही भारत ने इसके स्‍पेशल पर्पज ट्रस्‍ट फंड फोर रेजिडेंट कॉर्डिनेटर सिस्‍टम (UN Special Purpose Trust Fund for the Resident Coordinator System) में एक मिलियन डॉलर का योगदान दिया था। इस वित्‍तीय वर्ष की बात करें तो इसके सदस्‍य देशों ने संयुक्‍त राष्‍ट्र के नियमित बजट का केवल 70 प्रतिशत ही भुगतान किया है। इसी वजह से संयुक्‍त राष्‍ट्र में नगदी की कमी की समस्‍या खड़ी हुई है।

केवल तीन माह का फंड

वर्तमान में संयुक्‍त राष्‍ट्र के पास केवल तीन माह का ही फंड शेष बचा है। संयुक्‍त राष्‍ट्र महासचिव ने वित्‍तीय संकट को देखते हुए विभिन्‍न सम्‍मेलनों और बैठकों को टालने का भी संकेत दिया है। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र का 2018-19 के लिए करीब 5.4 अरब डॉलर बजट निर्धारित था। इसमें अमेरिका का योगदान करीब 22 फीसद था।  

ये है फंड एकत्रित करने की प्रक्रिया 

संयुक्‍त राष्‍ट्र आम सभा में इसका आम बजट पारित किया जाता है। इसमें ही इसके सदस्‍य देशों का अंशदान भी तय होता है। यह अंशदान किसी देश की Gross National Income या GNI से तय किया जाता है। वर्ष 2000 में अमेरिकी दबाव में संयुक्‍त राष्‍ट्र ने अंशदान प्राप्‍त करने के अपने नियमों में कुछ फेरबदल किया था। इसमें रेगुलर बजट सीलिंग को 25 फीसद से घटाकर 22 फीसद किया गया था। इसका सीधा असर इसमें शामिल विकसित देशों के अशंदान पर पड़ा था। इस बदलाव के बाद अमेरिका द्वारा दी जाने वाली राशि भी कम को गई थी। 

शांति मिशन पर सबसे अधिक खर्च

आपको यहां पर बता दें‍ कि संयुक्‍त राष्‍ट्र फंड का बड़ा हिस्‍सा उसके शांति और सुरक्षा मिशन पर खर्च होता है। शांति मिशन की बात करें तो इसमें भारत का योगदान सबसे अधिक है। विभिन्‍न देशों में चल रहे संयुक्‍त राष्‍ट्र के शांति मिशन में भारतीय जवानों की संख्‍या सबसे अधिक है। यही वजह है कि इसका बजट भी अलग से रखा जाता है। वर्ष 2015-16 में विभिन्‍न देशों में मौजूद करीब 82318 जवानों के लिए यह बजट 8.27 बिलियन डॉलर का था। वर्तमान में 2019-21 के लिए इसमें अमेरिका का अंशदान 27.89, चीन का अंशदान 15.21 फीसद, जापान 8.56 फीसद, जर्मनी 6.09 फीसद, ब्रिटेन 5.78 फीसद, फ्रांस 5.61 फीसद, इटली 3.30 फीसद रूस 3.04 फीसद है। 

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