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रिसर्च में आया सामने इनफ्लेमेट्री बीमारियों और कैंसर की दो दवाएं कोविड-19 में भी कारगर

शोधकर्ताओं उन दवाओं को इलाज में परख रहे हैं जिनसे प्रतिरोधक क्षमता के कुछ तत्वों की भूमिका को कोविड-19 के लक्षणों को दूर करने में इस्तेमाल किया जा सकता है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Wed, 10 Jun 2020 06:28 PM (IST)Updated: Wed, 10 Jun 2020 06:28 PM (IST)
रिसर्च में आया सामने इनफ्लेमेट्री बीमारियों और कैंसर की दो दवाएं कोविड-19 में भी कारगर
रिसर्च में आया सामने इनफ्लेमेट्री बीमारियों और कैंसर की दो दवाएं कोविड-19 में भी कारगर

लंदन, रायटर। बर्मिघम और ऑक्सफोर्ड के विश्वविद्यालयों के अनुसार इनफ्लेमेट्री बीमारियों और कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दो दवाओं से अब कोविड-19 के इलाज की संभावना नजर आ रही है। वैज्ञानिक इन दवाओं का परीक्षण कर रहे हैं।

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दो दवाओं का हो सकेगा इस्तेमाल 

शोध के मुताबिक नोवल कोरोना वायरस से होने वाले कोविड-19 के बेहद गंभीर मरीजों के इलाज में इन दो दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकेगा। कोविड के बेहद गंभीर संक्रमण के मामले में देखा गया है कि यह प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टम) पर कड़ा प्रहार करता है। इस प्रक्रिया को सायटोकिन स्टार्म कहते हैं। शोधकर्ताओं उन दवाओं को इलाज में परख रहे हैं जिनसे प्रतिरोधक क्षमता के कुछ तत्वों की भूमिका को कोविड-19 के लक्षणों को दूर करने में इस्तेमाल किया जा सकता है। 

एंटीबॉडी का परीक्षण आखिरी चरणों में 

रियोनॉटड ऑर्थराइटिस और एंकीलूजिंग स्पॉंडलाइटिस जैसी इनफ्लेमेट्री बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एक एंटीबॉडी का परीक्षण आखिरी चरणों में है। मुख्य धारा के परीक्षणों में चार प्रमुख तत्वों में से यह पहला है। यह जीएम-सीएसएफ नाम के सायटोकिन को निशाना बनाता है। माना जाता है कि यह तत्व जब अनियंत्रित स्तर पर होता है तो कोविड-19 के मरीजों के फेफड़े में घातक इनफ्लेमेशन (जलन, दर्द और सूजन) हो जाती है। ब्रिटेन से पहले इटली में कोविड-19 के इलाज में इस दवा का इस्तेमाल किया जा चुका है।

कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल के लिए तैयार की गई दूसरी दवा इनफ्लीक्सीमैब (सीटी-पी13) है जिसे ब्रिटेन के सेल्ट्रीयान हेल्थकेयर ने विकसित किया है। यह एक एंटी ट्यूमर नेकरोसिस फैक्टर (टीएनएफ) थेरेपी है। इसका इस्तेमाल आठ केंद्रीकृत बीमारियों में होता है जिनमें रियोनॉटड ऑर्थराइटिस इरिटेबल बोल सिंड्रोम शामिल हैं।

देर तक सूरज की रोशनी में रहने से कोविड का खतरा

उधर टोरंटो में वैज्ञानिकों ने एक नए शोध में पाया है कि जिस तरह से देखा गया है कि अत्यधिक गरम तापमान और उमस के मौसम में वैश्विक महामारी कोविड-19 का संक्रमण कम होता है। लेकिन उनके नए शोध के मुताबिक सूरज की रोशनी में लंबे समय तक रहने से भी कोविड-19 होने का खतरा बढ़ जाता है। 

जरनल जियोग्राफिकल एनालिसिस में प्रकाशित शोध 

जरनल जियोग्राफिकल एनालिसिस में प्रकाशित नए शोध में मौसमी बदलाव यानी गर्म मौसम से कोविड-19 के संक्रमण को कम करने के दावों पर संशय जताया गया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि गरम मौसम में भले ही कोविड-19 का संक्रमण भले ही कम हो जाए लेकिन यह देखा गया है कि इंफ्लूएंजा और सार्स कम तापमान और उमस में भी बरकरार रहते हैं। हालांकि सार्स-कोव-2 घटक से होने वाले कोविड-19 के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है।

उन्होंने स्पेन में हुए शोध का हवाला देते हुए बताया कि वहां गर्मी का मौसम शुरू होते ही लॉकडाउन घोषित कर दिया गया था। उसके बाद वहां पर संक्रमण के फैलने में कमी दिखाई दी है। हालांकि इसका कारण अकेले गर्मी न होकर लोगों का लंबे समय तक सूरज की रोशनी से दूर रहना है। इस दौरान घनी आबादी में लोगों के बीच संक्रमण कम फैला है।


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