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इस तरह से तो बर्बाद हो जाएगा ईरान! अर्थव्‍यवस्‍था चौपट करने में जुटा अमेरिका

अमेरिका की वजह से पश्चिम एशिया में तनाव फैला है। उसके निशाने पर ईरान है। अमेरिका ने ईरान को आर्थिक रूप से बदहाल करने का मन बना लिया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 07 May 2019 04:42 PM (IST)Updated: Wed, 08 May 2019 12:30 PM (IST)
इस तरह से तो बर्बाद हो जाएगा ईरान! अर्थव्‍यवस्‍था चौपट करने में जुटा अमेरिका
इस तरह से तो बर्बाद हो जाएगा ईरान! अर्थव्‍यवस्‍था चौपट करने में जुटा अमेरिका

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। ईरान से अमेरिका की अदावत कोई नहीं है। दोनों देशों के बीच परमाणु संधि से पहले और संधि के टूटने के बाद के समय में कोई खास फर्क नहीं आया है। संधि के कुछ समय तक दोनों देशों के बीच कोई तीखी बयानबाजी नहीं हुई, लेकिन डोनाल्‍ड ट्रंप के सत्‍ता में आने के बाद दोनों के रिश्‍ते लगातार खराब ही हुए हैं। इसके अलावा माना ये भी जा रहा है कि अमेरिका ने ईरान को आर्थिक रूप से बर्बाद करने का मन बना लिया है। अब इन खराब होते रिश्‍तों पर ट्रंप ने यह कहते हुए एक और हमला किया है कि वह पश्चिम एशिया में अपने विमानवाहक युद्धपोत और बमवर्षक विमान तैनात कर रहा है।

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दुनिया भर में इन जगहों पर तैनात है यूएस बेड़ा 
यदि ऐसा हुआ तो पूरी दुनिया में मौजूद अमेरिकी सेना का ग्‍यारहवां बेड़ा होगा जो यहां पर तैनात होगा। इससे पहले उत्तरी अटलांटिक महासागर, प्रशांत महासागर में जिसका मुख्‍यालय सैन डियागो में है, दक्षिण अटलांटिक महासागर में तैनात बेड़े का मुख्‍यालय फ्लोरिडा में है, मध्य पूर्व में तैनात अमेरिकी सेना का मुख्‍यालय बहरीन में है, इटली के गाएटा, पश्चिमी प्रशांत महासागर में तैनात बेड़े का मुख्यालय जापान के योकोशुका में है और मध्य अटलांटिक तट पर तैनात कर चुका है जिसको साइबर कमांड के नाम से जाना जाता है।

चिंता का विषय
अमेरिकी बेड़े की पश्चिम एशिया में तैनाती की बात ईरान के लिए बड़ी चिंता का विषय है। दरअसल, अमेरिका ने इस इलाके में विमानवाहक पोत यूएसएस अब्राहम लिंकन और बमवर्षक टास्क फोर्स को तैनात करने का फैसला लिया है। सबसे बड़ी चिंता की बात ये भी है कि कहीं पश्चिम एशिया इसकी वजह से जंग का नया अखाड़ा न बन जाए। इस आशंका की वजह अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जॉन बोल्टन की ईरान को दी गई वो चेतावनी है जिसमें उन्‍होंने कहा है कि यदि अमेरिकी हितों या उसके सहयोगी देशों के खिलाफ कोई हमला हुआ तो उसे भारी बल प्रयोग का सामना करना पड़ेगा।

ईरान से परमाणु समझौता रद
आपको बता दें कि पिछले साल 8 मई को अमेरिका ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को रद कर दिया था। हालांकि, इस समझौते से जुड़े दूसरे देश अब भी ईरान के साथ हैं, लेकिन अमेरिकी बेड़े की पश्चिम एशिया में तैनाती पर फिलहाल सभी चुप हैं। आपको बता दें कि अमेरिका ईरान को दुनिया में अलग-थलग करने की नीति पर काफी हद तक सफल हुआ है। वह भी तब, जबकि यूरोपीय संघ के कई देश परमाणु करार रद करने पर अमेरिका के खिलाफ दिखाई दिए थे। अमेरिका ने ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। इसके अलावा तेल खरीद पर भी अमेरिका ने ईरान के हाथ काट दिए हैं।

ईरान की अर्थव्‍यवस्‍था की टूट जाएगी कमर
इतना ही नहीं, भारत और चीन जो ईरान से तेल खरीद के सबसे बड़े खरीददार थे, को भी कोई राहत देने से इनकार कर दिया है। अमेरिका के इस फैसले का असर जापान, दक्षिण कोरिया और तुर्की पर भी पड़ेगा। इस फैसले के पीछे ट्रंप की मंशा ईरान की अर्थव्‍यवस्‍था की कमर तोड़ना है। आपको बता दें कि ईरान की कमाई का सबसे बड़ा जरिया कच्‍चा तेल ही है। ऐसे में यदि वह इस कारोबार से बाहर हो जाता है तो उसको दिवालिया होने से कोई रोक नहीं पाएगा।

इनसे है ईरान का छत्तीस का आंकड़ा
ऐसे में ईरान के पास कोई भी विकल्‍प नहीं बचा है। ईरान की समस्‍या एक ये भी है कि सऊदी अरब और अमेरिका के बेहतर संबंध हैं और ईरान-सऊदी अरब में छत्तीस का आंकड़ा है। इसके अलावा परमाणु करार से अमेरिका के बाहर होने के बाद ट्रंप ने पिछले माह ही ईरान के विशिष्ट बल रिवोल्यूशनरी गा‌र्ड्स को विदेशी आतंकी संगठन घोषित किया था। इसके जवाब में ईरान ने भी अमेरिकी सेना को इसी तरह का दर्जा दिया था।

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