पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन के असर को समझने में मदद करेगा ‘टाइटन’
लिमिंग ने कहा ‘पृथ्वी के ऊर्जा असंतुलन का थोड़ा-सा भाग भी ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर व्यापक असर डालता है।’
ह्यूस्टन, प्रेट्र। जलवायु परिवर्तन को लेकर वक्त-वक्त पर कई तरह की बातें कही जाती रही हैं। अब हालिया अध्ययन में कहा गया है कि धरती पर जलवायु परिवर्तन के लिहाज से शनि ग्रह का सबसे बड़ा चांद टाइटन बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। दरअसल, शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि शनि का चंद्रमा टाइटन ऊर्जा अवशोषित और उत्सर्जित करने के दौरान एक महत्वपूर्ण मौसमी बदलाव के दौर से गुजरता है।
इस प्रक्रिया के जरिये पृथ्वी पर जलवायु गतिविधियों के बारे में नई जानकारियां मिल सकती हैं। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि सौरमंडल में पृथ्वी के अलावा सिर्फ टाइटन ही है, जहां एक विशेष तरह का वातावरण होने के साथ-साथ तरल पदार्थों वाली सतह भी है।
इस तरह किया अध्ययन
अमेरिका की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी सहित शोध में शामिल अन्य शोधकर्ताओं का कहना है कि टाइटन के ऊर्जा स्नोत का इसके मौसम और जलवायु प्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यह पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में कैसिनी मिशन के 2004 और 2017 के बीच के इकट्ठा किए गए आंकड़ों का इस्तेमाल किया। उनका कहना है कि यह आंकड़ा शनि और टाइटन के लिए आधे पृथ्वी वर्ष या तीन मौसमों के बराबर है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इन आंकड़ों से पहली बार टाइटन की मौसम विविधता का व्यवस्थित तरीके से पता लगाने में मदद मिली है।
उत्सर्जन में आई गिरावट
अध्ययन में कहा गया है कि पिछले 14 वर्षों में चंद्रमा की उत्सर्जित तापीय ऊर्जा और अवशोषित सौर ऊर्जा दोनों घट गई है। टाइटन द्वारा अवशोषित 18.6 फीसद सौर ऊर्जा की तुलना में तापीय उत्सर्जन 6.8 फीसद गिरावट आई है। अध्ययन में कहा गया है कि टाइटन के उत्तरी और दक्षिणी पर्यावरण में इसके चलते बदलाव देखने को मिलता है। हालांकि, पृथ्वी और टाइटन के वातावरण में कुछ समानताएं भी हैं, जिनका प्रयोग पृथ्वी पर समान प्रभाव का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि हमारे ग्रह और टाइटन कई मामलों में बिल्कुल अलग हैं। उदाहरण के तौर पर टाइटन पर स्थित तरल असल में पानी न होकर मिथेन है। उन्होंने बताया कि शनि और इसके चंद्रमा को सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा पूरी करना में भी अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है।
ऊर्जा असंतुलन से पड़ता है ग्लोबल वार्मिंग पर असर
ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी की भौतिकी के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक लिमिंग ली का कहना है कि शनि को सूर्य परिक्रमा पूरी करने में 29 पृथ्वी वर्ष का समय लगता है। इसके बावजूद शोधकर्ताओं का कहना है कि टाइटन की ऊर्जा प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी हासिल कर पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन की समझ को और अधिक विकसित की जा सकती है। लिमिंग ने कहा, ‘पृथ्वी के ऊर्जा असंतुलन का थोड़ा-सा भाग भी ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर व्यापक असर डालता है।’
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