अब चाहकर भी नहीं हो पाएंगे ट्रोल, वैज्ञानिकों ने तलाश लिया जारिया
वैज्ञानिकों ने इसके लिए विकिपीडिया पर सैकड़ों वार्तालाप का विश्लेषण कर एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार किया जो शब्दों को स्कैन कर सकता है।
न्यूयॉर्क [प्रेट्र]। इंटरनेट पर एक-दूसरे को भला-बुरा कहने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इससे नामचीन शख्सियतें भी नहीं बचीं हैं। देखा जाए तो उन्हें ही ज्यादा निशाना बनाया जाता है। इस पर निगरानी के लिए वैज्ञानिकों ने राह तलाश ली है। उन्होंने एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम विकसित किया है, जो बता देगा कि कौन सी सभ्य और रचनात्मक बातचीत आगे चलकर झगड़े में बदल सकती है और फिर व्यक्ति विशेष पर निजी हमले शुरू हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रोग्राम के जरिये ऑनलाइन ट्रोल्स पर निगरानी रखने में मदद मिल सकती है।
इंटरनेट ने संवाद स्थापित करने के लिए एक बेमिसाल मंच उपलब्ध कराया है। यहां हर कोई अपने मन की बात कह सकता है और किसी भी व्यक्ति तक अपनी बात पहुंचा सकता है। हालांकि इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। अक्सर कोई अच्छी बातचीत आगे चलकर आक्रोशित हो जाती है। इस पर निगरानी के लिए ही वैज्ञानिकों ने एक प्रोग्राम तैयार किया है।
इस तरह किया तैयार
वैज्ञानिकों ने इसके लिए विकिपीडिया पर सैकड़ों वार्तालाप का विश्लेषण कर एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार किया जो शब्दों को स्कैन कर सकता है। बतौर उदाहरण, यह पकड़ सकता है कि कब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति विशेष पर सवाल दाग रहा है। इसके लिए अमूमन अंग्रेजी के यू (तुम) शब्द से शुरू हुए दो पोस्ट आगे चलकर अभद्र हो गए, जिनकी शुरुआत एक सभ्य संवाद से हुई थी। शुरुआत में बातचीत के दौरान एक-दूसरे का अभिवादन किया गया था और इसमें सम्मानजनक बातें और अच्छे शब्दों का प्रयोग किया जा रहा था। मसलन, अंग्रेजी के आइ (मैं), वी (हम) आदि जो एक सभ्य संवाद को जाहिर करते हैं।
मनुष्यों से थोड़ा पीछे
वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब इस मॉडल की जांच की गई तो यह करीब 65 फीसद सही साबित हुआ। यानी इसने 65 फीसद उन संवादों की पहचान सही की जो आगे चलकर विवाद का रूप ले सकते थे। वहीं, मनुष्यों में यह क्षमता 72 फीसद होती है।