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अनुसंधान: कोरोना वायरस से पीड़ित बुजुर्गों में बढ़ रहा कार्डिएक अरेस्ट का खतरा

अध्ययन के नतीजों से यह जाहिर होता है कि आइसीयू में भर्ती किए गए जाने के 14 दिन के अंदर 14 फीसद यानी 701 रोगियों को कार्डियक अरेस्ट का सामना करना पड़ा था। शोधकर्ताओं ने बताया कि अस्पताल में कार्डियक अरेस्ट का सामना का करने वाले बुजुर्ग लोग थे।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 06:16 PM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 06:16 PM (IST)
अनुसंधान: कोरोना वायरस से पीड़ित बुजुर्गों में बढ़ रहा कार्डिएक अरेस्ट का खतरा
कोरोना से पीड़ित लोगों में कार्डियक अरेस्ट का खतरा पाया गया। (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, आइएएनएस। कोरोना वायरस को लेकर दुनिया भर के तमाम देश नए-नए रिसर्च कर रहे हैं। कई देश तो कोरोना वायरस वैक्सीन की खोज करने के बहुत ही करीब है। ये उम्मीद जताई जा रही है कि अगले साल तक कोरोना वायरस की वैक्सीन भी बाजार में उपलब्ध होगी।

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शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना वायरस (कोविड-19) से गंभीर रूप से पीडि़त लोगों में कार्डियक अरेस्ट का खतरा पाया गया है। यह खतरा सबसे ज्यादा 80 साल या ज्यादा उम्र के रोगियों में देखा जा रहा है। अध्ययन के इस निष्कर्ष से उन कोरोना रोगियों की देखभाल पर ज्यादा ध्यान देने में मदद मिल सकती है, जिनकी हालत काफी नाजुक होती है। 

कार्डियक अरेस्ट में हृदय अचानक काम करना बंद कर देता है। शीघ्र उपचार नहीं होने पर मौत भी हो सकती है।बीएमजे पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष गंभीर रूप से संक्रमित 18 साल से ज्यादा उम्र के 5,019 लोगों पर किए गए एक शोध के आधार पर निकाला है। इन्हें अमेरिका के 68 अस्पतालों के आइसीयू में भर्ती किया गया था।

अध्ययन के नतीजों से यह जाहिर होता है कि आइसीयू में भर्ती किए गए जाने के 14 दिन के अंदर 14 फीसद यानी 701 रोगियों को कार्डियक अरेस्ट का सामना करना पड़ा था। शोधकर्ताओं ने बताया कि अस्पताल में कार्डियक अरेस्ट का सामना का करने वाले बुजुर्ग लोग थे। गंभीर रूप से पीडि़त लोगों में कार्डियक अरेस्ट का खतरा सामान्य तौर पर पाया जा रहा है। ऐसे लोगों के बचने की संभावना कम देखी जा रही है। हालांकि अध्ययन के नतीजों से गंभीर मामलों में इस तरह के खतरों को टालने में मदद मिल सकती है। 

दरअसल जो लोग कोरोना वायरस से गंभीर रूप से संक्रमित हो जाते हैं उनको सांस लेने जैसी समस्या का भी सामना करना पड़ता है। इस वजह से ऐसे मरीजों को ऑक्सीजन भी दिया जाता है। तभी उनकी जान बच पाती है। अन्यथा मृत्यु हो जाती है। सांस लेने की समस्या की वजह से फेफेड़ों पर भी असर पड़ता है। ऐसे में अटैक पड़ना मौत का कारण बन जाता है। 


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