अमेरिका के लिए कैसे गले की फांस बना सीरिया का गृहयुद्ध, दुविधा में महाशक्ति
आखिर ट्रंप ने सीरिया से सैनिकों को बुलाने का फैसला क्याें लिया। अाखिर क्या है सीरिया की समस्या। क्या सीरिया में गृह युद्ध समाप्त हो चुका है।
वाशिंगटन [ एजेंसी ]। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते ऐलान किया था कि सीरिया से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाया जाएगा। इसके साथ ही ट्रंप ने अफगानिस्तान में भी सैनिकों की संख्या में कटौती का ऐलान किया है। इसके बाद यहां इस बात को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। पूरा अमेरिका इसे लेकर दो खेमों में बंट गया है। ट्रंप का पक्ष रहा है कि ये संघर्ष विराम के लिए सबसे महंगा और निरर्थक सैन्य अभियान है। उन्होंने कहा कि सीरिया में अमेरिका का लक्ष्य पूरा हाे चुका है। वहीं राजनीतिक जानकारों का कहना है सीरिया समस्या का समाधान सेना और बंदुक से नहीं, बल्कि वार्ता के जरिए होना चाहिए। आखिर ट्रंप ने सीरिया से सैनिकों को बुलाने का फैसला क्याें लिया। अाखिर क्या है सीरिया की समस्या। क्या सीरिया में गृह युद्ध समाप्त हो चुका है।
सीरिया- राजनीतिक आंदोलन से गृहयुद्ध तक
दरअसल, सात वर्ष पूर्व सीरिया में शुरू हुआ एक शांतिपूर्ण राजनीतिक आंदोलन देखते-देखते गृहयुद्ध में तब्दील हो गया। शुरुआत में यह पूरी तरह से सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद के खिलाफ शांतिपूर्ण विद्रोह था। सीरियाई लोग राजनीतिक व्यवस्था के प्रति असंतोष, देश में व्याप्त बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। दरअसल, यह विद्रोह उस वक्त राष्ट्रपति असद के समर्थकों और विरोधियों के बीच था। लेकिन अब इसका स्वरूप काफी जटिल हो गया है। सीरिया के अधिकतर समूह और दुनिया के देश अपने-अपने एंजेंडे के तहत इसमें कूद गए हैं। सत्ता पक्ष के साथ बढ़ते विरोध के बीच राष्ट्रपति असद ने विरोधों को कुचलने का संकल्प लिया था। उन्होंने इसे विदेश समर्थित आतंकवाद का नाम दिया। राष्ट्रपति के इस संकल्प के साथ सीरिया में हिंसा में तेजी से विस्तार हुआ और देखते-देखते पूरा देश गृहयुद्ध की चपेट में आ गया।
सीरिया में शिया-सुन्नी के बीच बड़ी खाई
सीरिया के राष्ट्रपति पर आरोप हैं कि वो सीरिया के विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच नफ़रत फैला रहे हैं। सीरिया के बहुसंख्यक सुन्नी मुस्लिमों और अल्पसंख्यक शिया मुसलमानों के बीच खाई पैदा कर रहे हैं। ये अल्पसंख्यक शिया मुसलमान राष्ट्रपति असद के समर्थक हैं। शिया-सुन्नी मुस्लिमों के विभाजन की वजह से दोनों पक्ष अत्याचार पर उतर आए हैं। उन्होंने जिहादी संगठन इस्लामिक स्टेट और अल-क़ायदा को भी फलने-फूलने की अनुमति दे दी है। सीरिया के क़ुर्द लड़ाकों ने इस संघर्ष में एक और आयाम जोड़ दिया है। वो स्वशासित सरकार चाहते हैं पर राष्ट्रपति असद के सैनिकों से लोहा नहीं लेते।
क़रीब दो हज़ार अमरीकी सैनिकों का दस्ता
सीरिया में क़रीब दो हज़ार अमरीकी सैनिकों का दस्ता तैनात हैं। उत्तरी-पूर्वी सीरिया में इन अमेरिकी सैनिकों का जमावड़ा है। अमेरिकी सैनिक विद्रोहियों को सीरिया को इस्लामिक स्टेट से मुक्त कराने में सहयोग कर रहे हैं। हाल ही में ट्रंप ने दावा किया था कि हमने सीरिया में आइएस को हरा दिया है। ट्रंप ने कहा कि अमेरिकी सैनिकों का मकसद भी यही था। लेकिन सच्चाई यह है कि यहां यह जंग अनवरत जारी है। इस इलाक़े से पूरी तरह आइएस का सफाया नहीं हो पाया है। अभी भी इनके कुछ टुकड़ियां वहां मौजूद हैं। अमरीकी रक्षा अधिकारी चाहते थे कि वहां आईएस चरमपंथी फिर से पैर नहीं जमा पाए।
सीरिया युद्ध में शामिल प्रमुख खिलाड़ी
अमेरिका और रूस के अलावा भी सीरिया में कई देशों की दिलचस्पी साफ-साफ दिखती है। इस तरह से सीरिया में रूस और अमेरिकी की मौजुदगी को शीत युद्ध के अवशेष के रूप में देखा जा सकता है। रूस की सीरिया में दिलचस्पी अनायास नहीं है। उसके यहां कई सैन्य ठिकाने हैं। रूस का दावा है कि वह अपने हमले में सिर्फ आतंकवादियों को निशाना बनाता है। रूस सीरियाई सरकार का समर्थक रहा है। ईरान भी यहां की सीरियाई सरकार के समर्थन में है। ईरान की दिलचस्पी यहां के शिया मुसलमान हैं। उसने हजारों शिया मुसलमानों को हथियार मुहैया कराया है। ईरान इन हथियारों की ट्रेनिंग भी देता है। इनके तार लेबनान और हिज़बुल्ला आंदोलन से जुड़े हैं।
जबकि अमेरिका और तुर्की विद्रोहियों के पक्ष में खड़े हैं। तुर्की लंबे समय से यहां के विद्रोहियों के साथ खड़ा है। वह यहां के विद्रोहियों का इस्तेमाल अपने यहां कुर्द अलगाववादियों के खिलाफ करता रहा है। उधर, सऊदी अरब यहां ईरान के प्रभाव काे सीमित करने के लिए विद्रोहियों को आर्थिक मदद के अलावा हथियार मुहैया कराता रहा है। इजराइल ने यहां ईरानी हस्तक्षेप से काफी चिंतित है। यही कारण है कि उसने समय-समय पर हिज़ुबुल्ला ठिकानों को ध्वस्त किया है।
लंबे गृहयुद्ध के चलते करोड़ों लोगों का जीवन हुआ बद्तर
सीरिया में लंबे गृहयुद्ध के चलते लाखों लोग देश छोड़कर चुके हैं। वह अन्य मुल्कों में शरण लिए हुए हैं। करीब 30 लाख लोग जंग के बीच में घिरे हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि यहां करीब एक करोड़ से ज्याद लोग बद्तर जीवन जी रहे हैं। इनको मदद की जरूरत है। इसके अलावा 56 लाख लोग देश के बाहर शरण ले चुके हैं। इनमें से 92 फ़ीसद सीरियाई पड़ोसी लेबनान, तुर्की और जॉर्डन में शरण लिए हुए हैं। कम से कम 61 लाख सीरियाई लोग देश के भीतर विस्थापित हो चुके हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2011 से सीरिया की आधी से अधिक आबादी विस्थापित हो चुकी है। इस युद्ध ने 15 लाख लोगों को स्थाई रूप से विकलांग कर दिया है। इनमें से 86 हज़ार लोगों के हाथ या पैर काटने पड़े हैं।