अब बनाई जा सकेगी ब्लड वेसेल्स से लैस 3डी प्रिंटेड त्वचा, वैज्ञानिकों ने विकसित की तकनीक
3D prints living skin अमेरिकी शोधकर्ताओं की टीम ने एक ऐसा तरीका विकसित किया है जिसके माध्यम से रक्त वाहिकाओं से लैस 3डी प्रिंटेड त्वचा तैयार की जा सकती है।
न्यूयॉर्क, पीटीआइ। अमेरिकी शोधकर्ताओं की टीम ने एक ऐसा तरीका विकसित किया है, जिसके माध्यम से रक्त वाहिकाओं से लैस 3डी प्रिंटेड त्वचा तैयार की जा सकती है। यह खोज बायोप्रिंटिंग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। इस तरह से निर्मित किए गए ऊतक सजीव ऊतकों के बहुत करीब होंगे। वर्तमान में 3डी प्रिंटिंग के जरिये बायोमेडिकल पार्ट बनाने के लिए कोशिकाओं, उनके बढ़ने के कारकों और अन्य बायोमैटेरियल्स का इस्तेमाल किया जाता है।
शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व करने वाले भारतीय मूल के शोधकर्ता और अमेरिका के रेनसेलर पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट के असिस्टेंट प्रोफेसर पंकज करांडे ने बताया कि अभी तक हमारे पास घावों की चिकित्सा के लिए जो उत्पाद (त्वचा) मौजूद हैं, वे किसी फैंसी एड की तरह मालूम पड़ते हैं क्योंकि यह घाव भरने में तो मदद करती है, लेकिन उसके बाद अपने आप गिर जाती है। इसकी सबसे बड़ी समस्या यही है कि इन्हें शरीर के ऊतकों के साथ जोड़ा नहीं जा सकता।
टिश्यू इंजीनियरिंग पार्ट ए नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि इसका एक कारण यह भी कि इस त्वचा में ‘संवहनी प्रणाली’ नहीं होती है, जिसकी मदद रक्त और अन्य पोषक तत्वों का त्वचा में निरंतर प्रवाह होता रहता है और त्वचा जीवित रहती है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि रक्त वाहिकाओं के अंदर रहने वाली मानव की एंडोथीलियल कोशिकाओं के इर्द-गिर्द रहने वाली पेरिसाइट कोशिकाओं सहित महत्वपूर्ण तत्वों को प्राणियों के कोलाजन और त्वचा प्रतिकृति के अंदर पाई जाने वाली संरचनात्मक कोशिकाओं के साथ जोड़ दिया जाए तो वे संवेदनशील हो जाती हैं। अमेरिका के याले स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं की एक टीम ने जब इस संरचना को एक विशेष प्रकार के चूहों में लगाया तो 3डी प्रिंट वाली त्वचा की वाहिकाएं संवेदी हो गई थीं और चूहों की कोशिकाओं से जुड़ने लगी थीं।
पंकज करांडे ने कहा, ‘यह अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रत्यारोपित की गई त्वचा में असल में रक्त और पोषक तत्वों का स्थानांतरण होने लगा था, जो उसे जीवित रखने में मदद करते हैं।’ उन्होंने कहा कि चिकित्सा के लिए इसे इस्तेमाल योग्य बनाने के लिए शोधकर्ताओं को ‘क्रिस्पर - जीन संपादन तकनीक’ जैसी चीज का इस्तेमाल करते हुए दानदाताओं की कोशिकाओं के साथ एडिटिंग करने में समर्थ होने की जरूरत है, जिससे कि रक्त वाहिकाएं एकीकृत हो सकें और रोगी के शरीर द्वारा स्वीकार की जा सकें। करांडे ने कहा, ‘अभी हम उस स्तर पर नहीं पुहंचे हैं, लेकिन उसके करीब हैं।’ उन्होंने कहा कि आग से झुलसे रोगियों से जुड़ी तंत्रिकाएं और वाहिकाएं खत्म हो जाने जैसी चुनौतियों के समाधान के लिए अधिक काम किए जाने की जरूरत है।