चालबाज ड्रैगन की इस खास रणनीति से सहमा ' बाहुबली ', जानें- इसका क्या है भारत लिंक
आइए जानते हैं कि आखिर ये वन बेल्ट वन रोड परियोजना क्या है। क्या है चीन की मंशा, इससे क्यों चिंतित है अमेरिका। पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से क्या है भारत को खतरा। आदि-अादि।
वाशिंगटन [ एजेंसी ]। चीन की 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना की आंच अमेरिका तक पहुंच गई है। पेंटागन ने ड्रैगन के बढ़ते प्रभाव पर एक रिपोर्ट जारी की है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की इस रिपोर्ट ( Pentagon Report) में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और सामरिक महत्व वाले स्थानों पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश से चिंता जाहिर की गई है। चीन की इस परियोजना पर भारत शुरू से अपनी आपत्ति जताया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष भारत ने इसका जोरदार ढ़ंग से विरोध किया था। आइए जानते हैं कि आखिर ये 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना क्या है। क्या है चीन की मंशा, इससे क्यों चिंतित है अमेरिका। पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से क्या है भारत को खतरा। आदि-अादि।
जानें क्या है अमेरिका की चिंता
- चीन जिस तरह से एक सुनियोजित ढ़ंग से अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाना चाहता है, उससे अमेरिका की चिंताएं बढ़ गईं हैं। अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी में व्यापार की आड़ में ड्रैगन अपने सामरिक स्थिति को भी मजबूत करने में जुटा है।
- दूसरे, इससे अमेरिकी बाजार को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। ऐसे में अमेरिका ने चीन की इस परियोजना पर अपनी आपत्ति जताई है।
- अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने चीन के विश्व में बढ़ रहे प्रभाव और उससे अमेरिका के लिए पैदा हो रही सैन्य चुनौतियों पर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की सुरक्षा को खतरा पैदा किया जा रहा है।
- इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ओबीओआर परियोजना के तहत चीन सैन्य लाभ के लिए कई बंदरगाह और सामरिक रूप से कई महत्वपूर्ण देशों में निवेश कर रहा है।
- यह हिंद महासागर, भुमध्य सागर अौर अपनी नौसैनिक मौजूदगी बढ़ाता जा रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन इसके जरिए कई देशों के निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता हासिल कर लेगा।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन सामरिक दृष्टि प्रमुख बंदरगाहों और अन्य सैन्य ठिकानों को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले रहा है। इस सिलसिले में पाकिस्तान के ग्वादर और श्रीलंका हंबनटोटा बंदरगाह का उदाहरण दिया गया है। इसमें अफ्रीका और मध्य पूर्व में स्थित बंदरगाहों पर उसके कब्जे का है। जिबूती में सैन्य ठिकाना बनाने की चीन की योजना उसकी सैन्य महात्वाकांक्षा का सुबूत है।
पाक का ग्वादर बंदरगाह और भारत
गहरे समुद्र में स्थित और भारतीय सीमा से नजदीक होने के कारण ग्वादर बंदरगाह चीन की कंपनी को सौंपे जाने का समझौता भारत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। भारत सीमा से केवल 460 किमी दूर स्थित इस पोर्ट से भारत पर निगरानी रखी जाना बेहद आसान है। चीन यहां अपनी नौसेना तैनात कर सकता है। चीन पहले ही भारत के दक्षिणी पड़ोसी श्रीलंका के हंबनटोटा और पूर्वी पड़ोसी बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाहों पर भी आर्थिक मदद देकर अपना प्रभाव स्थापित कर चुका है। दरअसल, चीन भारत को समुद्र में तीनों तरफ से घेरने की रणनीति बना रहा है। तीन तरफ से भारत को घेरने की तैयारी कर चौथी तरफ खुद चीन ही स्थित है। दरअसल, ग्वादर बंदरगाह ईरान से लगा हुआ है, जो कि भारत को कच्चे तेल का निर्यात करने वाला प्रमुख देश है। ग्वादर पर नियंत्रण बनाते ही चीन ईरान से भारत आने वाले कच्चे तेल की आपूर्ति में जब चाहे अड़ंगे डाल सकता है।
गौरतलब है कि चीन का 60 फीसदी कच्चा तेल खाड़ी देशों से आता है। ग्वादर पोर्ट पर चीनी नियंत्रण से अब तेल का आवागमन बेहद आसान हो जाएगा। इतना ही नहीं पोर्ट की रक्षा और पोतों की सुरक्षा के लिए चीनी नौसेना अब इसे इस्तेमाल करेगी। युद्ध की स्थिति में ग्वादर पोर्ट भारत के भारी मुसीबत खड़ी कर सकता है। उल्लेखनीय है कि 1971 के युद्ध में कराची बंदरगाह को भारतीय नौसेना के भारी नुकसान पहुंचाया था, जिसके बाद पाकिस्तानी सेना की कमर टूट गई थी।
इसके अलावा हिंद महासागर के देशों में चीन बंदरगाह, नौसेना बेस और निगरानी पोस्ट बनाना चाहता है। इससे एक तरह से भारत घिर जाएगा। इसे स्ट्रिंग ऑफ पल्स नाम दिया जा रहा है। परियोजना के तहत चीन दक्षिण एशिया के मुल्काें में श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश में पोर्ट बना रहा है। इसके जरिए वह बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में प्रभाव एवं प्रभुत्व बढ़ाएगा। इससे भारत के सामरिक हितों के साथ व्यापार पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
आर्थिक रूप से देशों पर कब्जा कर रहा चीन
चीन ओबीओआर के तहत श्रीलंका, म्यांमार, फिलीपींस, पाकिस्तान, थाईलैंड, बांग्लादेश और म्यांमार को बड़े लोन दे रहा है, लेकिन ये देश उसका कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं हैं। चीन उनकी इक्विटी खरीदकर अपनी कंपनियों को बेच रहा है। चीनी कंपनियां इन देशों पर आर्थिक रूप से कब्जा कर रही हैं। चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना में 78 देश शामिल हैं। पूरी दुनिया में अपने प्रभुत्व को कायम करने के लिए चीन ने यूरोप और अफ्रीका के 65 देशों को जोड़ने की योजना है।
चीन ने कहा- 'प्रोजेक्ट ऑफ द सेंचुरी'
उधर, इस परियोजना को लेकर चीन काफी उत्साहित है। भारत, अमेरिका की तमाम चिंताओं से बेखबर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना को 'प्रोजेक्ट ऑफ द सेंचुरी' कहा है। उन्होंने कहा था कि इससे वैश्वीकरण का स्वर्ण युग आएगा।