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अब थायरॉइड कैंसर से भी बचाएगा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सिस्टम, जानें- कैसे करेगा काम

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) सिस्टम के उपयोग से ऐसा अतिरिक्त तरीका मिला है जिससे थायरॉइड कैंसर की जांच को बेहतर किया जा सकता है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 28 Oct 2019 11:38 PM (IST)Updated: Mon, 28 Oct 2019 11:44 PM (IST)
अब थायरॉइड कैंसर से भी बचाएगा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सिस्टम, जानें- कैसे करेगा काम
अब थायरॉइड कैंसर से भी बचाएगा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सिस्टम, जानें- कैसे करेगा काम

न्यूयॉर्क, आइएएनएस। वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) आधारित एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है, जिसकी मदद से थायरॉइड कैंसर के खतरे को भांपा जा सकता है। थायरॉइड के अल्ट्रासाउंड के साथ एआइ के उपयोग से इस बीमारी के खतरे का जल्द अनुमान लगाया जा सकता है।

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पीएलओएस पैथोजेंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, एआइ के उपयोग से ऐसा अतिरिक्त तरीका मिला है, जिससे थायरॉइड कैंसर की जांच को बेहतर किया जा सकता है। इस विधि में एआइ की मदद से किसी रोगी के थायरॉइड की अल्ट्रासाउंड तस्वीरों पर गौर किया जाता है। अमेरिका की थॉमस जेफरसन यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता जॉन इसेनबेरी ने कहा, 'मशीन लर्निग किफायती और प्रभावी टूल है, जिससे चिकित्सकों को जल्द किसी नतीजे पर पहुंचने में मदद मिल सकती है।'

शोधकर्ताओं ने कहा कि वर्तमान में जो अल्ट्रासाउंड किए जाते हैं वह ट्यूमर के ज्यादा खतरनाक दिखने पर यह बता सकते हैं कि क्या सुई से जरिये बायोप्सी करना ठीक है या नहीं। लेकिन बायोप्सी में केवल एक छेद बनाकर काम किया जाता है, जिससे यह पता नहीं लग पाता कि बीमारी की वास्तविक तस्वीर क्या है। नतीजतन, कुछ बायोप्सी में अच्छे परिणाम भी नहीं आ पाते हैं और वह यह भी नहीं बता पाते कि कैंसर भी या नहीं।

अल्ट्रासाउंड के परिणामों को और पुख्ता बनाने के लिए शोधकर्ताओं ने नई मशीन लर्निग विधि पर काम करना शुरू किया और मरीजों की थाइरॉइड ग्रंथि के अल्ट्रासाउंड की इमेजों पर इस एग्लोरिदम का प्रयोग किया।

ऐसे किया अध्ययन

शोधकर्ताओं ने इस एल्गोरिदम का प्रशिक्षण 121 मरीजों की अल्ट्रासाउंस के चित्रों पर किया, जो बाद में मॉलीक्यूलर परीक्षण के दौर से गुजरे थे। इस दौरान 43 मरीजों के नोड्यूल्स को उच्च जोखिम के रूप में और 91 को कम जोखिम के रूप में वर्गीकृत किया गया। ये आंकड़े मॉलीक्यूल परीक्षण में उपयोग किए गए जीनों के एक पैनल पर आधारित थे। इसके बाद शोधकर्ताओं ने नई विधि से भी नोड्यूल्स का परीक्षण किया जिसमें पाया, जिसके परिणाम 90 फीसद तक सही पाए गए।


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